हरियाणा से कांवड़ लेकर आए सचिन ने सांस थमने से पहले तीन लोगों को जीवन दिया
एम्स ऋषिकेश में पहली बार हुई केडवरिक ऑर्गन डोनेशन प्रक्रिया
ऋषिकेश। न्यूज लाइव ब्यूरो
25 वर्षीय सचिन के कोमा में जाने के बाद जब वापस आने की उम्मीद नहीं बची तो एम्स ऋषिकेश के डाॅक्टरों ने उसके परिजनों से अंगदान की अपील की। परिवार वाले राजी हो गए और ब्रेन डेड युवक के अंगदान का फैसला लिया गया। प्रक्रिया के बाद सचिन के अंगदान से न केवल 3 लोगों की जिंदगी वापस लौटी है, अपितु दृष्टि खो चुके दो अन्य लोग भी अब सचिन द्वारा किए गए नेत्रदान से जीवन का उजाला देख सकेंगे।
एम्स ऋषिकेश में ‘केडवरिक ऑर्गन डोनेशन‘ की यह सम्पूर्ण प्रक्रिया पहली बार हुई है जो पूर्ण तौर से सफल रही। उत्तराखंड में इस प्रकार का यह पहला मामला है।
महेन्द्रगढ़ (हरियाणा) के रहने वाले सचिन को 23 जुलाई को रुड़की मे हुई सड़क दुर्घटना के बाद गंभीर हालत में एम्स ऋषिकेश में भर्ती कराया गया था। अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक प्रो. संजीव कुमार मित्तल ने बताया कि सचिन के सिर में गंभीर चोट लगने के कारण उन्हें ट्राॅमा सेन्टर के न्यूरो सर्जरी आईसीयू में रखा गया, लेकिन कोमा में चले जाने के कारण इलाज कर रहे विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमेटी ने उन्हें 30 जुलाई को ब्रेन डेड घोषित कर दिया।
संस्थान की कार्यकारी निदेशक प्रो. मीनू सिंह के सुपरविजन में चिकित्सकों की एक टीम ने तत्काल प्रभाव से सचिन के परिवार वालों से संपर्क किया और उन्हें अंगदान के प्रति प्रेरित किया। चिकित्सा अधीक्षक प्रो. मित्तल ने बताया कि ब्रेन डेड युवक के अंगदान का यह फैसला कई लोगों का जीवन लौटाने के काम आया।
डॉक्टर्स के मुताबिक सचिन के अंगदान से दो अलग-अलग अस्पतालों में भर्ती 3 लोगों को नया जीवन मिला है। इनमें पीजीआई चंडीगढ़ में भर्ती एक व्यक्ति को किडनी और पेन्क्रियाज तथा दिल्ली स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर एंड बिलरी साइंसेज (आई.एल.बी.एस.) में भर्ती दो अलग-अलग व्यक्तियों को किडनी और लिवर प्रत्यारोपित किए गए हैं।
प्रो. मित्तल ने बताया कि विभिन्न अंगों को निर्धारित समय के भीतर चण्डीगढ़ और दिल्ली के अस्पतालों तक पहुंचाने के लिए जिला प्रशासन के सहयोग से एम्स ऋषिकेश से देहरादून एयरपोर्ट तक ग्रीन काॅरिडोर बनाया गया था।
उन्होंने बताया कि सचिन द्वारा नेत्रदान भी किया गया है। दोनों काॅर्निया को आई बैंक में सुरक्षित रखवाया गया है जिन्हें, शीघ्र ही जरूरतमंद की आंखों में प्रत्यारोपित कर दिया जाएगा।
अंगदान के लिए एम्स प्रशासन ने सचिन के परिजनों का भी धन्यवाद किया और बताया कि किस प्रकार वह मृत्यु के बाद भी कई लोगों को जीवनदान दे गया है।
गुरुवार को अपराह्न अस्पताल प्रशासन द्वारा सम्मान के साथ सचिन के पार्थिव शरीर को एम्स ऋषिकेश से हरियाणा के लिए भेजा।
इन डाॅक्टरों की रही विशेष भूमिका
ऋषिकेश। इस प्रक्रिया में न्यूरो सर्जन डाॅ. रजनीश अरोड़ा के अलावा, डाॅ. संजय अग्रवाल, डाॅ. रोहित गुप्ता, डाॅ. अंकुर मित्तल, डाॅ. शेरोन कण्डारी और डाॅ. निर्झर राकेश, डॉ. कर्मवीर और कॉआर्डिनेटर देशराज सोलंकी सहित ट्रांसप्लांट डिवीजन के अन्य विशेषज्ञ चिकित्सक शामिल थे।
इनके अलावा, अस्पताल प्रशासन के तीनों उप चिकित्सा अधीक्षक डाॅ. भारत भूषण, डीएमएस डाॅ. नरेन्द्र कुमार और डीएमएस डाॅ. यतिन तलवार आदि ने राष्ट्रीय अंग एवं ऊतक प्रत्यारोपण संगठन ( नोटो ), जिला प्रशासन और चण्डीगढ़ तथा दिल्ली के संबन्धित अस्पतालों सहित विभिन्न विभागों के साथ समन्वय स्थापित कर पूरी प्रक्रिया में विशेष भूमिका निभाई।
कांवड़ लेकर आया था सचिन, फरिश्ता बनकर आई फैमिली
ऋषिकेश। श्रावण मास में शिवालय में जल चढ़ाने के लिए सचिन हरियाणा से कांवड़ लेकर जल भरने हरिद्वार के लिए निकला था। इस दौरान 23 जुलाई को रुड़की में वह सड़क दुर्घटना का शिकार हो गया। उसके पिता की टायर पंक्चर की दुकान है। परिवार में पिता के अलावा उनकी पत्नी, 2 बच्चे और एक छोटा भाई है। वह अपने पिता के साथ दुकान में हाथ बंटाया करते थे।
एम्स के डाॅक्टरों ने जब परिवार वालों से अंगदान कराने के लिए अपील की तो सचिन के परिवार वाले उन लोगों के लिए फरिश्ते की भूमिका निभाई जिन्हें सचिन के विभिन्न अंग प्रत्यारोपित किए गए।