Blog LiveFeaturedUttarakhandवीडियो न्यूज़

लक्ष्मणझूला में भीमल के रेशों से बदल रही जिंदगी

इंस्टाग्राम पर प्रचार, व्हाट्सएप पर मिलता है भीमल क्राफ्ट का आर्डर

राजेश पांडेय। न्यूज लाइव

“मैंने लगभग 18-19 साल पहले ढालवाला में भीमल के रेशों (Bheemal fiber) से चप्पलें बनानी सीखी थीं। यह कार्य हमारी आजीविका का साधन बन गया है। हम कच्चा माल यमकेश्वर के गांवों से लाते हैं, खुद ही चप्पलें बनाते हैं और मार्केटिंग भी खुद ही करते हैं। घर पर, प्रतिदिन चार से पांच घंटे कार्य करके सामान्य दिनों में, सात से आठ हजार रुपये कमा लेते हैं। जब डिमांड होती है, तब हम दिनरात चप्पलें बनाते हैं, तब हमारी आय अधिक होती है। हम आत्मनिर्भर हैं और खुश हैं।”

किरमोला गांव की दीपा देवी घर की छत पर अन्य महिलाओं के साथ भीमल की चप्पलें (Bheemal slippers) बना रही हैं। किरमोला गांव (Kirmola Village) में महिलाओं का समूह हैंडीक्राफ्ट के उत्पाद (Handicraft products) बनाता है। खासकर, भीमल के रेशों से बने उत्पाद। इस काम को शुरू करने के लिए बहुत ज्यादा पूंजी की भी आवश्यकता नहीं है, क्योंकि इसमें मशीनों का इस्तेमाल नहीं होता।

दीपा देवी बताती हैं, “रेशों से रस्सियां बनाना, जिसे हम चोटी बनाना (Braided work) भी कहते हैं, सबसे महत्वपूर्ण काम है। लगातार अभ्यास की वजह से एक दिन में 40 से 50 मीटर तक रस्सी बना लेते हैं। भावना आर्य, जो कुछ साल पहले ही हमारे समूह से जुड़ी हैं, रस्सियां बनाती हैं। इन रस्सियों से हम चप्पलें बनाते हैं। एक जोड़ी चप्पल बनाने में लगभग 12 मीटर रस्सी लगती है।”

“प्रतिदिन चार से पांच घंटे कार्य करती हूं। दो दिन में चार से पांच जोड़ी चप्पलें बना लेती हूं। एक दिन रस्सी बनाने (Braided work) में लगता है। दूसरे दिन चप्पलें बनाते हैं। हम लोगों ने काम बांटा हुआ है, कोई रस्सियां बनाता है और कोई तले बनाता है। किसी का कार्य तले में तने लगाना होता है। वर्तमान में प्रति जोड़ी चप्पल 90 रुपये का रेट है। इससे ज्यादा भी दाम मिल जाते हैं, यदि डिमांड पर आर्डर पूरा करना हो।”

पौड़ी गढ़वाल जिला के लक्ष्मणझूला क्षेत्र के किरमोला गांव में भीमल उत्पादों पर महिलाओं से संवाद। फोटो- नेहा

किरमोला गांव, लक्ष्मणझूला क्षेत्र में है, जो कि पौड़ी गढ़वाल जिले के यमकेश्वर ब्लाक का हिस्सा है। रामझूला से लक्ष्मणझूला जाते समय सीधे हाथ पर, संकरी गली है, जिस पर बाइक ही चल सकती है, वो भी बड़ी सावधानी से। गली में आगे बढ़ते हुए आप ऊंचाई पर होते हैं। बाइक रुकने का मतलब सीधा ढलान। मैं यहां से जब वापस लौट रहा था, मेरी बाइक ढलान पर स्किट कर गई, वो तो शुक्र है मैं बच गया। कुछ युवा मौके पर ही थे, उन्होंने मेरी बाइक को मुख्य सड़क तक पहुंचाया। उनके लिए, थैंक्यू दोस्त।

दीपा बताती हैं, “चप्पल बनाने के लिए रस्सी को सिलना होता है, जिसमें कई बार अंगुलियों पर सुई चुभ जाती है। पर, हम इस कार्य से खुश हैं। हम खाली नहीं रहते, हमारे पास हमेशा काम रहता है। जरूरत के अनुसार आय हो जाती है। घर के खर्चे चल जाते हैं। बच्चों के स्कूल की फीस, ट्यूशन की फीस आसानी से चुका देते हैं। हमारे पास हमेशा पैसा रहता है।”

किरमोला गांव की ही शीला देवी बताती हैं, “20 साल से भीमल की चप्पलें बना रही हैं। पहले ढालवाला के भारतीय ग्रामोत्थान संस्थान से सीखा और कच्चा माल भी वहीं से मिलता था। अब हम कच्चा माल यानी भीमल का रेशा यमकेश्वर के गांवों से लेकर आते हैं।”

उत्पादों की मार्केटिंग का जिम्मा संभाल रहीं पूजा आर्य, जो हैंडीक्राफ्ट प्रोडक्ट्स के आउटलेट का संचालन भी करती हैं, का कहना है, “हम सभी महिलाएं भीमल का रेशा खरीदने के लिए गांव जाते हैं। गांव की महिलाएं, हमारे लिए रेशा इकट्ठा करके रखती हैं। इस कार्य से हमें ही नहीं, बल्कि गांवों की महिलाओं, जिनसे हम रेशा खरीदते हैं, को भी रोजगार मिल रहा है। जिस भीमल को, वो फेंक देते थे, अब यह सोचकर संभालकर रखते हैं कि लक्ष्मणझूला क्षेत्र की महिलाएं इसको खरीदकर ले जाएंगी। भले ही, उनको दस रुपये प्रति किलो का रेट मिल रहा हो, पर उनको कुछ तो आय हो रही है। हम यहां से सुबह गाड़ी में भीमल खरीदने निकल जाते हैं। गांव-गांव जाते हैं। बोझा सिर पर रखकर सड़क तक पहुंचते हैं। कई बार बारिश में भी भीमल लेकर आए हैं। हमने इसको धोना भी सीखा है। पर, अब हम संतुष्ट हैं, क्योंकि हम भीमल के उत्पाद उस रेट पर बेचते हैं,जो हमने खुद तय किया है।”

दीपा बताती हैं, “हम एक बार में लगभग दो से तीन कुंतल रेशा खरीदकर लाते हैं, जो परिवहन सहित हमें 30 रुपये प्रति किलो के हिसाब से पड़ता है। यहां आकर हम रेशों को आपस में बांट लेते हैं। हम छह महिलाएं हैं, एक महिला को 30 से 40 किलो रेशा मिल जाता है।एक महीने में एक महिला लगभग 30 किलो रेशे के उत्पाद बना लेती है। कभी इससे कम भी इस्तेमाल होता है। हम और अन्य महिलाओं को 40 से 50 रुपये प्रति किलो के हिसाब से रेशा बेच देते हैं।”पूजा आर्य के अनुसार, “एक किलो में दो से तीन गुच्छी रेशा आता है। इसमें 50 मीटर रस्सी बन जाती है। इसमें पांच जोड़ी चप्पलें बन जाती हैं। हम मीडियम साइज की रस्सी बनाते हैं, जिससे चप्पल पहनने में कम्फर्टेबल होती है। हालांकि, कुछ रेशा खराब निकल जाता है, पर हम अच्छे रेशे का चयन करते हैं। इसलिए एक किलो में पांच जोड़ी चप्पलें बन जाती हैं।”

पौड़ी गढ़वाल जिला के लक्ष्मणझूला क्षेत्र के किरमोला गांव में भीमल उत्पादों पर महिलाओं से संवाद। फोटो- नेहा

उत्पादों की मार्केटिंग और प्राइस पर बात करते हुए पूजा बताती हैं, “बल्क में खरीदारी पर, एक जोड़ी चप्पल का रेट 90 रुपये है, पर हम खुदरा में एक जोड़ी चप्पल 200 रुपये में बिक्री करते हैं। यह नॉर्मल स्लीपर का रेट है। खासियत की वजह से मार्केटिंग आसान हो जाती है, भीमल स्लीपर्स ब्लड प्रेशर में आरामदायक है। पैरों में दर्द नहीं होता। आप इनको पहनकर मंदिर में भी जा सकते हैं। अधिकतर घरों में पत्थर के फर्श हैं, जिन पर भीमल की चप्पलें नहीं फिसलतीं।”

“यही वजह है कि हमारी बनाई भीमल की चप्पलें विदेश तक जाती हैं। हमारे पास कभी तीन हजार, कभी पांच हजार जोड़ी चप्पलों का आर्डर आ जाता है। महिलाएं दिनरात मेहनत करके उत्पाद तैयार करती हैं। हम चाहते हैं, अधिक से अधिक महिलाएं इस कौशल में दक्ष हों और आत्मनिर्भर बनें। हम भीमल के रेशों से शूज बनाने की दिशा में भी कार्य कर रहे हैं।”

“मुझे तो कम ही समय हुआ है इस समूह से जुड़े हुए। मैं ग्रेजुएट हूं औऱ पहले एक एनजीओ में कार्य करती थी। दीपा मिश्रा और शीला देवी ने मुझे यह काम सिखाया। और, मैंने मार्केटिंग की जिम्मेदारी संभाली है।”

महीने में बिक्री के सवाल पर पूजा बताती हैं, “सेल इतनी हो जाती है कि एक महिला अपने साथ- साथ घर परिवार की जरूरतों को पूरा कर लेती हैं। यहां हम ही लोग है, जो 3000 चप्पलों का आर्डर पूरा कर लेते हैं। हम इंस्टाग्राम पर फ्रीडम हैंडीक्राफ्ट पेज पर अपने प्रोडक्ट शेयर करते हैं, हमें व्हाट्सएप पर आर्डर मिल जाता है।”

मीना बताती हैं, “हम आत्मनिर्भर हैं। घर की हर जरूरत को पूरा कर लेते हैं। घर में किसी से पैसे नहीं मांगने पड़ते। हम खुद में बहुत बदलाव देखते हैं। मैं घर के कामकाज करती हूं। एक दुकान हैं, उसको भी देखती हूं। भीमल की चप्पलें बनाकर महीने में लगभग तीन हजार रुपये आय हो जाती है, जबकि में दो घंटे ही यह काम करती हूं। जो चार घंटे या इससे ज्यादा समय काम करते हैं, उनकी आय का आप हिसाब लगा सकते हैं।”

भीमल क्राफ्ट बनाने वालीं लक्ष्मी आर्य भी 19 साल से चप्पलें बना रही हैं। बताती हैं, “हमें घर बैठकर यह काम करना अच्छा लगता है, साथ ही हम कुछ पैसे भी कमा रहे हैं। घर के कामकाज निपटाने के बाद भीमल की चप्पलें, बास्केट बनाते हैं।”

मीनू लक्ष्मणझूला रोड पर चाय की दुकान में पति का हाथ बंटाती हैं। घर की जिम्मेदारियां भी निभाती हैं और समय मिलने पर भीमल क्राफ्ट बनाती हैं। बताती हैं, “मैंने संस्था की ट्रेनिंग नहीं ली, पर दीपा ने मुझे सिखाया। यह हमारी आजीविका का एक स्रोत बना है।”

भावना बताती हैं, ” मेरा काम रस्सियां बनाना है। एक दिन में 50 मीटर तक रस्सी बना लेती हूं। तीन रुपये प्रति मीटर की दर से पैसा मिलता है। इस काम में खुश रहती हूं।”

 

ई बुक के लिए इस विज्ञापन पर क्लिक करें

Rajesh Pandey

उत्तराखंड के देहरादून जिला अंतर्गत डोईवाला नगर पालिका का रहने वाला हूं। 1996 से पत्रकारिता का छात्र हूं। हर दिन कुछ नया सीखने की कोशिश आज भी जारी है। लगभग 20 साल हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। बच्चों सहित हर आयु वर्ग के लिए सौ से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। स्कूलों एवं संस्थाओं के माध्यम से बच्चों के बीच जाकर उनको कहानियां सुनाने का सिलसिला आज भी जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। रुद्रप्रयाग के खड़पतियाखाल स्थित मानव भारती संस्था की पहल सामुदायिक रेडियो ‘रेडियो केदार’ के लिए काम करने के दौरान पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया। सामुदायिक जुड़ाव के लिए गांवों में जाकर लोगों से संवाद करना, विभिन्न मुद्दों पर उनको जागरूक करना, कुछ अपनी कहना और बहुत सारी बातें उनकी सुनना अच्छा लगता है। ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम के स्वच्छता का संदेश देने की पहल की। छह माह ढालवाला, जिला टिहरी गढ़वाल स्थित रेडियो ऋषिकेश में सेवाएं प्रदान कीं। बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी संपर्क कर सकते हैं: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला जिला- देहरादून, उत्तराखंड-248140 राजेश पांडेय Email: rajeshpandeydw@gmail.com Phone: +91 9760097344

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker