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महापौरों को समय निकालकर शहरों का जन्मदिन मनाना चाहिएः मोदी

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से अखिल भारतीय महापौर सम्मेलन का उद्घाटन किया। उन्होंने सुझाव दिया कि महापौरों को समय निकालकर शहरों का जन्मदिन मनाना चाहिए। नदियों वाले शहरों को नदी उत्सव मनाना चाहिए। उन्होंने नदियों की महिमा को फैलाने की आवश्यकता पर बल दिया, ताकि लोग उन पर गर्व करें और उन्हें स्वच्छ रखें। प्रधानमंत्री ने कहा, “नदियों को शहरी जीवन के केंद्र में वापस लाया जाना चाहिए। इससे आपके शहरों को एक नया जीवन मिलेगा।”
सभा को संबोधित करते हुए, प्रधानमंत्री ने प्राचीन शहर वाराणसी में हाल के घटनाक्रमों पर चर्चा की। उन्होंने अपने वक्तव्य को दोहराया कि काशी का विकास पूरे देश का रोडमैप हो सकता है। प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारे देश में ज़्यादातर शहर पारंपरिक शहर ही हैं, पारंपरिक तरीके से ही विकसित हुए हैं।
आधुनिकीकरण के इस दौर में हमारे इन शहरों की प्राचीनता की भी उतनी ही अहमियत है। उन्होंने कहा कि ये शहर हमें विरासत और स्थानीय कौशल को संरक्षित करना सिखा सकते हैं। मौजूदा संरचनाओं को नष्ट करना कोई समाधान नहीं है, बल्कि कायाकल्प और संरक्षण पर जोर दिया जाना चाहिए। इसे आधुनिक समय की आवश्यकताओं के अनुरूप किया जाना चाहिए।
प्रधानमंत्री ने स्वच्छता के लिए शहरों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्धा का आह्वान किया और उत्सुकता व्यक्त करते हुए कहा कि क्या उन शहरों को मान्यता देने के लिए नई श्रेणियां हो सकती हैं जो सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाले शहरों के साथ-साथ स्वच्छता हासिल करने के लिए सबसे अच्छा प्रयास कर रहे हैं।
उन्होंने स्वच्छता के साथ-साथ शहरों के सौंदर्यीकरण पर भी जोर दिया। महापौर से इस संबंध में अपने शहरों में वार्डों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्धा की भावना पैदा करने को कहा। स्वतंत्रता संग्राम पर आधारित ‘रंगोली’, स्वतंत्रता संग्राम पर गीत और लोरी (लोरी) प्रतियोगिता जैसे ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ से संबंधित कार्यक्रम चलाने के लिए भी कहा।
सुझाव दिया कि महापौरों को समय निकालकर शहरों का जन्मदिन मनाना चाहिए। नदियों वाले शहरों को नदी उत्सव मनाना चाहिए। उन्होंने नदियों की महिमा को फैलाने की आवश्यकता पर बल दिया ताकि लोग उन पर गर्व करें और उन्हें स्वच्छ रखें। “नदियों को शहरी जीवन के केंद्र में वापस लाया जाना चाहिए। इससे आपके शहरों को एक नया जीवन मिलेगा।”
उन्होंने सिंगल यूज प्लास्टिक के खात्मे के खिलाफ अभियान को फिर से शुरू करने को कहा। कचरे से धन बनाने के तरीके तलाशने को कहा। उन्होंने कहा, “हमारा शहर स्वच्छ रहे और स्वस्थ भी रहे, ये हमारा प्रयास होना चाहिए।”
प्रधानमंत्री ने यह सुनिश्चित करने को कहा कि शहरों की स्ट्रीट लाइटों और घरों में एलईडी बल्बों का व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाए। इसे एक मिशन मोड में लेने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि हमें हमेशा मौजूदा योजनाओं को नए उपयोग के लिए इस्तेमाल करने और उन्हें आगे ले जाने के बारे में सोचना चाहिए।
उन्होंने शहर की एनसीसी इकाइयों से संपर्क करने और शहरों की मूर्तियों को साफ करने के उद्देश्य से समूह बनाने तथा ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ की भावना से नायकों पर केंद्रित भाषण आयोजित करने के लिए कहा।
इसी तरह, महापौर अपने शहर में एक जगह का चयन  कर सकते हैं और पीपीपी मोड के माध्यम से आजादी का अमृत महोत्सव के दौरान एक स्मारक बना सकते हैं। प्रधानमंत्री ने ‘एक जिला एक उत्पाद’ कार्यक्रम का जिक्र करते हुए शहर में किसी विशिष्ट उत्पाद या स्थान द्वारा प्रचारित अपने शहरों की एक विशिष्ट पहचान के लिए जोर देने को कहा।

प्रधानमंत्री ने  कहा कि हमें सार्वजनिक परिवहन के उपयोग को बढ़ावा देने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि उनके शहर में हर सुविधा दिव्यांगों के अनुकूल हो। उन्होंने कहा कि “हमारे शहर हमारी अर्थव्यवस्था की प्रेरक शक्ति हैं। हमें शहर को वाइब्रेंट इकोनॉमी का हब बनाना चाहिए।”
प्रधानमंत्री ने कहा, “रेहड़ी-पटरी वाले हमारी अपनी ही यात्रा के अंग है, इनकी मुसीबतों को हम हर पल देखेंगे। उनके लिए हम पीएम स्वनिधि योजना लाए हैं। यह योजना बहुत ही उत्तम है। आप अपने नगर में उनकी लिस्ट बनाइए और उनको मोबाइल फोन से लेन-देन सिखा दीजिए। इससे बेहतर शर्तों पर बैंक वित्त की सुविधा होगी।” उन्होंने कहा कि महामारी ने स्ट्रीट वेंडर्स के महत्व को दिखाया है।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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