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बीमारियों से बचाने के लिए मिट्टी की जगह हवा में उगाया जाएगा आलू का बीज

आलू विश्व की सबसे महत्वपूर्ण गैर-अनाज फसल है, जिसकी वैश्विक खाद्य प्रणाली में महत्वपूर्ण भूमिका है

नई दिल्ली। आलू जमीन में पैदा होने वाली फसल है, पर वैज्ञानिक अनुसंधान ने आलू को रोगों और कीटो से बचाने के लिए इसके बीज को हवा में उगाने की तैयारी कर ली है। आलू का बीज अब एरोपॉनिक पद्धति से हवा में उगेगा। एक नई पहल के अंतर्गत विषाणु रोग से मुक्त आलू बीज के उत्पादन के लिए एरोपॉनिक पद्धति को बढ़ावा देने के लिए ग्वालियर में एक नया केंद्र स्थापित किया जाएगा, जहाँ आलू के बीजों का उत्पादन करने के लिए खेतों की जुताई, गुड़ाई, और निराई जैसी परंपरागत प्रक्रियाओं की आवश्यकता नहीं होगी।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) की शिमला स्थित प्रयोगशाला केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने आलू बीज उत्पादन की यह तकनीक विकसित की है।

ग्वालियर में एरोपॉनिक पद्धति आधारित आलू बीज उत्पादन केंद्र स्थापित करने के लिए केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर एवं मध्य प्रदेश के उद्यानिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) भारत सिंह कुशवाह की उपस्थिति में बुधवार को नई दिल्ली में एक अनुबंध किया गया।

क्या है एरोपॉनिक्स

एरोपॉनिक्स, मिट्टी या समग्र माध्यम के उपयोग के बिना हवा या पानी की सूक्ष्म बूंदों (Mist) के वातावरण में पौधों को उगाने की प्रक्रिया है। एरोपॉनिक के जरिये पोषक तत्वों का छिड़काव मिस्टिंग के रूप में जड़ों में किया जाता है। पौधे का ऊपरी भाग खुली हवा व प्रकाश के संपर्क में रहता है। एक पौधे से औसत 35-60 मिनिकन्द (3-10 ग्राम) प्राप्त किए जाते हैं। चूंकि, इस पद्धति में मिट्टी का उपयोग नहीं होता, तो मिट्टी से जुड़ें रोग भी फसलों में नहीं होते। वैज्ञानिकों का कहना है कि पारंपरिक प्रणाली की तुलना में एरोपॉनिक पद्धति प्रजनक बीज के विकास में दो साल की बचत करती है।

यह पद्धति पारंपरिक रूप से प्रचलित हाइड्रोपोनिक्स, एक्वापॉनिक्स और इन-विट्रो (प्लांट टिशू कल्चर) से अलग है। हाइड्रोपॉनिक्स पद्धति में पौधों की वृद्धि के लिए आवश्यक खनिजों की आपूर्ति के लिए माध्यम के रूप में तरल पोषक तत्व सॉल्यूशन का उपयोग होता है। एक्वापॉनिक्स में भी पानी और मछली के कचरे का उपयोग होता है। जबकि, एरोपॉनिक्स पद्धति में किसी ग्रोइंग मीडियम के बिना फसल उत्पादन किया जाता है। इसे कभी-कभी एक प्रकार का हाइड्रोपॉनिक्स मान लिया जाता है, क्योंकि पोषक तत्वों को प्रसारित करने के लिए एरोपॉनिक्स में पानी का उपयोग किया जाता है।

केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि विषाणु रोग रहित आलू बीज उत्पादन की एरोपॉनिक पद्धति के माध्यम से उत्पादित आलू के बीजों की उपलब्धता देश के कई भागों में सुनिश्चित की गई है। यह नई तकनीक आलू के बीज की आवश्यकता को पूरा करेगी, और मध्य प्रदेश के साथ-साथ संपूर्ण देश में आलू उत्पादन बढ़ाने में मददगार होगी।

मध्य प्रदेश के बागवानी आयुक्त ई. रमेश कुमार ने कहा कि ग्वालियर में ‘एक जिला- एक उत्पाद’ पहल के अंतर्गत आलू फसल का चयन किया गया है। उन्होंने बताया कि राज्य को लगभग चार लाख टन बीज की आवश्यकता है, जिसे 10 लाख मिनी ट्यूबर उत्पादन क्षमता वाली इस तकनीक से पूरा किया जाएगा।

आलू विश्व की सबसे महत्वपूर्ण गैर-अनाज फसल है, जिसकी वैश्विक खाद्य प्रणाली में महत्वपूर्ण भूमिका है। मध्य प्रदेश आलू का छठा प्रमुख उत्पादक राज्य है, और राज्य का मालवा क्षेत्र आलू उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आलू प्रसंस्करण के आदर्श गंतव्य के रूप में भी मध्य प्रदेश उभरा है। इंदौर, ग्वालियर, उज्जैन, देवास, शाजापुर एवं भोपाल के अलावा छिंदवाड़ा, सीधी, सतना, रीवा, सरगुजा, राजगढ़, सागर, दमोह, जबलपुर, पन्ना, मुरैना, छतरपुर, विदिशा, रतलाम और बैतूल प्रदेश के प्रमुख आलू उत्पादक क्षेत्रों में शामिल हैं।- साभार- इंडिया साइंस वायर

Rajesh Pandey

उत्तराखंड के देहरादून जिला अंतर्गत डोईवाला नगर पालिका का रहने वाला हूं। 1996 से पत्रकारिता का छात्र हूं। हर दिन कुछ नया सीखने की कोशिश आज भी जारी है। लगभग 20 साल हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। बच्चों सहित हर आयु वर्ग के लिए सौ से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। स्कूलों एवं संस्थाओं के माध्यम से बच्चों के बीच जाकर उनको कहानियां सुनाने का सिलसिला आज भी जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। रुद्रप्रयाग के खड़पतियाखाल स्थित मानव भारती संस्था की पहल सामुदायिक रेडियो ‘रेडियो केदार’ के लिए काम करने के दौरान पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया। सामुदायिक जुड़ाव के लिए गांवों में जाकर लोगों से संवाद करना, विभिन्न मुद्दों पर उनको जागरूक करना, कुछ अपनी कहना और बहुत सारी बातें उनकी सुनना अच्छा लगता है। ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम के स्वच्छता का संदेश देने की पहल की। छह माह ढालवाला, जिला टिहरी गढ़वाल स्थित रेडियो ऋषिकेश में सेवाएं प्रदान कीं। बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी संपर्क कर सकते हैं: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला जिला- देहरादून, उत्तराखंड-248140 राजेश पांडेय Email: rajeshpandeydw@gmail.com Phone: +91 9760097344

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