राजेश पांडेय। न्यूज लाइव
एक समय था, जब घर के पास वाले बाजार में खरीदारी करने पर दुकानदार सामान के साथ कभी नमकीन तो कभी टॉफी थमा देते थे। हम इसको रुंगा कहते थे।
यह परंपरा कब से थी, पता नहीं। पर, माना जाता है, यह परंपरा ग्राहक और व्यापारी के बीच व्यक्तिगत एवं भावनात्मक संबंध बनाती थी।
यह मार्केटिंग का बहुत पुराना तरीका था,जो ग्राहक को फिर से दुकान पर आने के लिए प्रेरित करता था। कुल मिलाकर रुंगा हमारे बचपन की यादों में से एक है। दुकानदार से मिलने वाली एक छोटी सी चीज कहो या उपहार, हमारे लिए खुशी का कारण थी।
साइकिल से घर-घर जाकर दूध बेचने वाले अपने पास खाली गिलास लेकर आने वाले छोटे बच्चों को फ्री में दूध देते थे। यह एक तरह का रुंगा है, जो अपनत्व पैदा करता है।
इसी तरह, किताबों की दुकान पर नई क्लास की किताबें, कॉपियां खरीदने पर दुकानदार पेंसिल बॉक्स या फिर एक पेन फ्री में देते थे। यह भी ग्राहक के साथ आत्मीयता बढ़ाने और मार्केटिंग का एक खास तरीका था।
दुकानदार सब्जी खरीदते समय ग्राहक को थोड़ा सा धनिया या फिर मुट्ठीभर मिर्च दे देते थे।
पर, अब महंगाई का दौर है, इसलिए ग्राहक और दुकानदार के बीच संबंध सामान खरीदने और बेचने तक सीमित रह गया।
ग्राहक और दुकानदार के बीच परस्पर सामंजस्य एवं अपनेपन का रिश्ता केवल छोटे शहरों, कस्बों के बाजार में ही देखने को मिला। यह परंपरा पहले से कम हुई है।
हालांकि, शादी विवाह और अन्य किसी मौके पर कुछ दुकानदार अब भी ग्राहकों के साथ सहयोग का रुख अपनाते हैं। वक्त पर उधार में सामान उपलब्ध कराते हैं।
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पर, जब से मॉल और ऑनलाइन खरीदारी की संस्कृति ने विस्तार लिया, तब से ग्राहक और स्थानीय दुकानदार के बीच दूरी बढ़ने लगी। इसकी वजह दुकानदार के पास स्थानीय और पुराने ग्राहकों की संख्या कम होना है।
जब स्थानीय लोगों की परचेजिंग पावर बढ़ रही है तो दुकानों पर ग्राहकों की संख्या कम क्यों हो रही है, इस सवाल का एक ही जवाब है, आसपास मॉल की संख्या बढ़ना और ऑनलाइन खरीदारी का बढ़ता ट्रेंड। ऑनलाइन खरीदारी बढ़ने के कुछ कारण, जो ग्राहक बताते हैं- डिजीटल लिटरेसी बढ़ना, ऑनलाइन मनी ट्रांजेक्शन आसान होना तथा ऑनलाइन बिकने वाले प्रोडक्ट्स की विविधता, ज्यादा ऑप्शन्स, अन्य कंपनियों से रेट कंपैरिजन की सुविधा, ग्राहकों का फीडबैक, कंपनियों की रिटर्न पॉलिसी, बाजार जाए बिना घर बैठे एक क्लिक पर खरीदारी…, जैसी सुविधाएं।
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स्थानीय छोटे बाजारों में ई कॉमर्स के बढ़ते प्रभाव पर चर्चा के दौरान, डोईवाला के प्रमुख व्यापारी मनीष नारंग बताते हैं, ऑनलाइन खरीदारी का प्रभाव पड़ा है, पर आज भी उनकी दुकान पर बहुत सारे पुराने ग्राहक आते हैं, जिनसे व्यापारिक एवं आत्मिक संबंधों में कोई कमी नहीं है। जहां तक ऑनलाइन की बात है, कई ऐसे ग्राहक भी आते हैं, जो कहते हैं, बच्चों ने शादी का सारा सामान दूसरे शहरों और ऑनलाइन खरीद लिया है, पर पूरे सामान की पैकिंग आपने ही करनी है। यह स्थिति मेरे सामने नहीं बल्कि और दुकानदारों के सामने भी आती है। पुराने संबंध हैं, इसलिए हमें उनको सहयोग करना होता है। पर, ये हालात स्थानीय बाजार की आर्थिक मजबूती के अनुकूल नहीं हैं।
मनीष कहते हैं, ऑनलाइन खरीदारी दुकानदार ही नहीं, बल्कि क्षेत्र की आर्थिकी को भी कमजोर करती है, क्योंकि व्यापारी को मिलने वाला पैसा, उनके स्टाफ की तनख्वाह तथा प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष तौर पर स्थानीय बाजार एवं क्षेत्र में ही निवेश होता है। ऑनलाइन परचेजिंग की वजह से पैसा बाहर जा रहा है, जो लोकल इकोनॉमी के लिए अच्छा संकेत नहीं है।
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उनका यह मानना है कि दुकान तक ग्राहकों का एक्सेस उतना आसान नहीं है, जितना पहले था। डोईवाला बाजार में पार्किंग की सुविधा नहीं होने से ग्राहकों एवं व्यापारियों की दिक्कतें बढ़ी हैं। स्थानीय प्रशासन को पार्किंग की सुविधा उपलब्ध करानी चाहिए।
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डोईवाला के प्रमुख व्यापारी गौरव मल्होत्रा बताते हैं, ऑनलाइन पर उत्पादों की कीमत बाजार से कम है, यह कैसे संभव हो रहा है, यह समझने योग्य बात है। किसी एयर कंडीशनर पर पहले 40 हजार रुपये निवेश करते हैं। फिर कुछ दिन बाद वो प्रोडक्ट मात्र 500 रुपये मार्जिन के साथ बिक पाता है। लेकिन अब इतना मार्जिन भी मुश्किल हो रहा है। क्योंकि उसी कंपनी का वही प्रोडक्ट इससे कम दाम पर ऑनलाइन उपलब्ध है। ग्राहक महंगे प्रोडक्ट खरीदारी करते समय बहुत रिसर्च करते हैं, उनको लगता है कि हम उनसे ज्यादा पैसे ले रहे हैं। जबकि हमारा मार्जिन बहुत कम होता है। ऐसे हालात में ग्राहक और व्यापारी के बीच संबंधों में खटास आना तय है।
गौरव एक ऑनलाइन उत्पाद का हवाला देते हुए कहते हैं, बाजार में उस उत्पाद की कीमत 38 से 40 हजार है, पर आपको ऑनलाइन उसी ब्रांड का उत्पाद साढ़े चार हजार में मिल जाएगा। उनकी बात को आगे बढ़ाते हुए भानियावाला के व्यापारी राहुल सैनी का कहना है, ऑनलाइन में ब्रांड की डुप्लीकेट कॉपी मिल रही हैं। ब्रांड में कीमत दस हजार रुपये, पर दिखने में बिल्कुल वैसा ही लगने वाले डुप्लीकेट डेढ़ हजार में उपलब्ध है। पर, जब इस्तेमाल करो तो दस दिन भी ढंग से नहीं चल पाता। डुप्लीकेट तो डुप्लीकेट ही रहेगा। इस ठगी से ग्राहकों को कौन बचाएगा।
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गौरव बताते हैं, हमारे बाजार में दुकानदारों के बीच कोई प्रतिस्पर्धा नहीं है। हमारी प्रतिस्पर्धा आसपास खुल आए मॉल्स और ऑनलाइन के बढ़ते ट्रेंड से है।
भानियावाला के व्यापारी राहुल सैनी कहते हैं, लोकल बाजार में खरीदारी करने से स्थानीय लोगों को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से कई लाभ हासिल होते हैं। डोईवाला की ही बात करें, दुकानों से सामान खरीदने वाले लोग महीने भर के सामान का पर्चा व्यापारी को देते हैं और सामान के बैग तैयार हो जाते हैं। दुकानदार उधार भी कर लेते हैं। आप मॉल में चले जाइए, वहां का गेट पार करने से पहले आपको पूरा हिसाब चुकता करना होगा। पर, लोकल बाजार में ऐसा नहीं होता, कुछ दिन की रियायत भी मिल जाती है। बाजार में बिना किसी गारंटी या गारंटर के, बिना किसी लिखा पढ़ी के आपको किस्तों में सामान मिल जाता है। यह राहत केवल आपको जानने वाले, आपके दुख सुख के साथी दुकानदार ही कर सकते हैं।
ऑनलाइन खरीदारी पर एक नजर
इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स या ई-कॉमर्स आजकल लगभग हर घर की पसंद बन रहा है। ऑनलाइन खरीदो, बाजार जाने का कोई झंझट नहीं। मोबाइल स्क्रीन पर दिखते उत्पाद अपनी चमक और कलर्स से लुभाते हैं। महज, मार्केटिंग प्लेटफॉर्म पर वन टच खरीद और बिक्री तक, इस सुविधा ने भारत में ई-कॉमर्स बाजार में जबरदस्त वृद्धि की है।
एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में ई-कॉमर्स उद्योग में बहुत संभावनाएं हैं। भारत में ई-कॉमर्स उद्योग का बाजार 2024 में 123 बिलियन अमेरिकी डॉलर था। यह 2030 तक 300 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है।
कैसे हुई ई कॉमर्स की शुरुआत
भारत में ई-कॉमर्स की शुरुआत इंटरनेट सेवाएं आने के तुरंत बाद 1995 में हुई। 90 के दशक की शुरुआत में ई-कॉमर्स ज्यादातर बी2बी यानी बिजनेस टू बिजनेस और व्यवसाय प्रबंधन तक सीमित था। 90 के दशक के अंत तक इसका दायरा बी2सी यानी बिजनेस टू क्लाइंट या कंज्यूमर तक बढ़ा, जैसे वैवाहिक साइट्स और ऑनलाइन भर्ती पोर्टल आदि।
बी2बी ई-कॉमर्स आम तौर पर दो कंपनियों या एक निर्माता और एक थोक व्यापारी के बीच इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से व्यापार को कहा जाता है। जबकि इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से व्यवसाय की पहुंच सीधे उपयोगकर्ताओं (ग्राहक) तक ले जाना बी 2 सी ई-कॉमर्स कहलाता है।
जब 2002 में आईआरसीटीसी का ई-टिकटिंग पोर्टल लांच हुआ, जो घर बैठे ही टिकट खरीदने की सुविधा प्रदान करता है। इससे भारत में ई-कॉमर्स का एक नया युग शुरू हुआ। ऑनलाइन टिकट बिक्री ने भारतीय ई-कॉमर्स बाजार पर दबदबा बना लिया।
2013 से ऑनलाइन रिटेल मार्केट ने ई-कॉमर्स उद्योग में पैर जमाना शुरू किया। भारतीय ई-कॉमर्स क्षेत्र तेजी से विकास के लिए तैयार है। 2015 के अंत तक, ऑनलाइन रिटेलिंग या ई-टेलिंग ने ई-कॉमर्स बाजार में ऑनलाइन ट्रैवल के बराबर योगदान दिया।
बाद के वर्षों में, भारतीय ई-कॉमर्स बाजार में मोबाइल/डीटीएच रिचार्ज, लक्जरी उत्पादों की ऑनलाइन बिक्री, फैशन ई-कॉमर्स जैसे कई प्रकार के सेगमेंट शामिल हो गए, जिसमें अधिकतर रिटेल ब्रांड ई-कॉमर्स में प्रवेश करते हुए ऑनलाइन चैनलों से कारोबार में काफी हिस्सेदारी की उम्मीद की।
इंटरनेट सेवाओं में वृद्धि और बढ़ती मांग ने ई-कॉमर्स बाजार की तरक्की का रास्ता साफ कर दिया। इनमें चाहे ई-टेल, यात्रा, उपभोक्ता सेवाएं या ऑनलाइन वित्तीय सेवाएं हों।
भारत में ई-कॉमर्स बाजार के लिए अपार संभावनाएं देखी जा रही हैं। डिजिटल इंडिया, ई-मार्केट, स्किल-इंडिया और लगभग सभी राष्ट्रीय प्लेटफार्मों पर यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) को बढ़ावा देने जैसी सरकार की पहल भारत को एक डिजिटल रूप से सशक्त समाज के रूप में आकार देने की दिशा में कदम हैं।