चलो, चांद की ओर चलो
भारत ने अंतरिक्ष मिशन में एक और बड़ी कामयाबी हासिल करते हुए 22 जुलाई 2019 को 3840 किलोग्राम भार वाले चन्द्रयान-2 अंतरिक्षयान को चांद की ओर रवाना कर दिया। जीएसएलवी एमके III-एम1 यान ने आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र एसएचएआर (एसडीएससी एसएचएआर) में दूसरे लॉन्च पैड से 22 जुलाई 2019 को निर्धारित भारतीय समयानुसार दो बजकर 43 मिनट पर शानदार ढंग से उड़ान भरी। कई जटिल तकनीकी प्रक्रियाओं के बाद लैंडर 07 सितंबर, 2019 को चांद के दक्षिण ध्रुव की सतह पर क्षेत्र में सॉफ्ट-लैंड करेगा। चंद्रयान-2 भारत का चंद्रयान मिशन है, जो चांद के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में उतरेगा, जहां अभी तक कोई देश नहीं पहुंचा है।
उड़ान भरने के लगभग 16 मिनट 14 सैकेंड के बाद यान ने चन्द्रयान-2 अंतरिक्ष यान को पृथ्वी की एक अंडाकार कक्षा में पहुंचा दिया। अंतरिक्ष यान के प्रक्षेपण यान से पृथक होने के फौरन बाद अंतरिक्ष यान की सौर श्रृंखला यानी सोलर ऐरे स्वचालित रूप से तैनात हो गई और इसरो टेलिमिट्री, ट्रैकिंग एंड कमांड नेटवर्क (आईएसटीआरएसी), बेंगलूरू ने अंतरिक्ष यान का नियंत्रण सफलतापूर्वक ग्रहण कर लिया।
इसरो के अध्यक्ष डॉ. के.सिवन ने इस चुनौतीपूर्ण मिशन में शामिल रही प्रक्षेपण यान और उपग्रह टीमों को बधाई देते हुए कहा कि ‘भारत में अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी के लिए 22 जुलाई एक ऐतिहासिक दिन है। मुझे यह घोषित करते हुए बेहद खुशी हो रही है कि जीएसएलवी एमके III-एम1 यान ने चन्द्रयान-2 को 6,000 किलोमीटर की एक कक्षा तक सफलतापूर्वक पहुंचा दिया, जो वांछित कक्षा से अधिक एवं बेहतर है।
डॉ. सिवन ने कहा, आज चंद्रमा तक पहुंचने की भारत की ऐतिहासिक यात्रा तथा अब तक खोजे नहीं गये तथ्यों का पता लगाने के लिए वैज्ञानिक प्रयोग करने के लिए दक्षिणी ध्रुव के निकटवर्ती स्थान पर उतरने की शुरूआत है। 15 जुलाई, 2019 को इसरो ने बड़ी कुशलता के साथ एक तकनीकी गड़बड़ी का पता लगा लिया था। टीम इसरो ने 24 घंटे के भीतर ही इस गड़बड़ी पर काम करके, उसमें सुधार किया था। अगले डेढ़ दिन तक इस बात का पता लगाने के लिए आवश्यक परीक्षण किए गए कि सुधार उचित और सही दिशा में किये गये हैं अथवा नहीं। आने वाले दिनों में, चन्द्रयान-2 के ऑनबोर्ड प्रणोदन प्रणाली का उपयोग करते हुए सिलसिलेवार ढंग से ऑर्बिट मॅनूवॅर्स किए जाएंगे। इस कदम से अंतरिक्ष यान चंद्रमा के निकट यात्रा कर सकेगा।
क्या है जीएसएलवी एमके III
यह इसरो द्वारा विकसित किया गया तीन अवस्थाओं वाला एक प्रक्षेपण यान है। इस यान में दो सॉलिड स्ट्रैप-ऑन, एक कोर लिक्विड बूस्टर और क्रायोजनिक ऊपरी अवस्था है। यह यान 4 टन के उपग्रहों को लगभग 10 टन लो अर्थ ऑर्बिट (एलईओ) का वहन करने के लिए डिजाइन किया गया है। चंद्रयान-2 भारत का चांद पर दूसरा मिशन है। इसमें पूरी तरह से स्वदेशी ऑर्बिटर, लैंडर (विक्रम) और रोवर (प्रज्ञान) का इस्तेमाल किया गया है। रोवर प्रज्ञान विक्रम लैंडर के अंदर स्थित है।
क्या है उद्देश्य
चंद्रयान-2 मिशन का उद्देश्य महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकी को विकसित करना और इसका प्रदर्शन करना है। विज्ञान के संबंध में यह मिशन चांद के बारे में हमारे ज्ञान को बढ़ाएगा। चांद की भौगोलिक स्थिति, खनिज, सतह की रासायनिक संरचना, ताप-भौगोलिक गुण तथा परिमण्डल के अध्ययन से चांद की उत्पत्ति और विकास की समझ बेहतर होगी। मीडिया रिपोर्ट से हासिल कुछ और जानकारियां-
- · चांद की सतह का नक्शा तैयार करना। इससे चांद के अस्तित्व और उसके विकास का पता लगाना।
- · मैग्नीशियम, एल्युमीनियम, सिलिकॉन, कैल्शियम, टाइटेनियम, आयरन और सोडियम की मौजूदगी का पता लगाना।
- · सूरज की किरणों में मौजूद सोलर रेडिएशन की तीव्रता को मापना।
- · चांद की सतह की हाई रेजोल्यूशन तस्वीरें खींचना।
- · सतह पर चट्टान या गड्ढे को पहचानना, ताकि लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग हो।
- · चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पानी की मौजूदगी और खनिजों का पता लगाना।
- · ध्रुवीय क्षेत्र के गड्ढों में बर्फ के रूप में जमा पानी का पता लगाना।
- चंद्रमा के बाहरी वातावरण को स्कैन करना।
- चंद्रयान मिशन के बारे में कुछ और जानकारियां
पृथ्वी की कक्षा छोड़ने और चांद के प्रभाव वाले क्षेत्र में प्रवेश करने के बाद चंद्रयान-2 की प्रणोदन प्रणाली प्रज्ज्वलित होगी ताकि यान की गति को कम किया जा सके। इससे यह चांद की प्राथमिक कक्षा में प्रवेश करने में सक्षम होगा। इसके बाद कई तकनीकी कार्य होंगे और चांद की सतह से 100 किलोमीटर ऊपर चंद्रयान-2 की वृत्ताकार कक्षा स्थापित हो जाएगी।
इसके बाद लैंडर, ऑर्बिटर से अलग हो जाएगा और 100 कि.मी. x 30 कि.मी. की कक्षा में प्रवेश कर जाएगा। कई जटिल तकनीकी प्रक्रियाओं के बाद लैंडर 07 सितंबर, 2019 को चांद के दक्षिण ध्रुव की सतह पर क्षेत्र में सॉफ्ट-लैंड करेगा।
इसके बाद रोवर, लैंडर से अलग होगा और चांद की सतह पर एक चंद्र दिवस (पृथ्वी के 14 दिन) तक परीक्षण करेगा। लैंडर का मिशन जीवन भी एक चंद्र दिवस के बराबर है। ऑर्बिटर एक साल की अवधि के लिए अपना मिशन जारी रखेगा।
ऑर्बिटर का वजन लगभग 2,369 किलोग्राम है जबकि लैंडर और रोवर के वजन क्रमशः 1477 किलोग्राम और 26 किलोग्राम है। रोवर 500मीटर तक की यात्रा कर सकता है और इसके लिए रोवर में लगे सोलर पैनल से इसे बिजली मिलती है।
चंद्रयान-2 में कई विज्ञान पैलोड लगे हैं जो चांद की उत्पत्ति और विकास के बारे में विस्तृत ब्यौरा प्रदान करेगा। ऑर्बिटर में 8 पैलोड लगे हैं, लैंडर में तीन और रोवर में 2 पैलोड लगे हैं। ऑर्बिटर पैलोड 100 किलोमीटर की कक्षा से रिमोर्ट सेंसिंग संचालित करेगा जबकि लैंडर और रोवर पैलोड, लैंडिंग साइट के निकट मापने का कार्य करेगा।
चंद्रयान-2 मिशन का तीसरा महत्वपूर्ण आयाम पृथ्वी पर स्थापित सुविधाएं हैं। ये सुविधाएं अंतरिक्ष यान से वैज्ञानिक डेटा और स्वास्थ्य जानकारी प्राप्त करेंगी। ये अंतरिक्ष यान को रेडियो कमांड भी भेजेंगी। चंद्रयान-2 के पृथ्वी पर स्थित सुविधाओं में शामिल हैं – इंडियन डीप स्पेस नेटवर्क, अंतरिक्ष यान नियंत्रण केन्द्र और भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान डेटा केंद्र।
आठ उपकरणों से शोध करेगा ऑर्बिटर-
1. टेरेन मैपिंग कैमरा-2 : चांद का डिजिटल मॉडल तैयार करने के लिए।
2. चंद्रयान-2 लार्ज एरिया सॉफ्ट एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (क्लास) : चांद की सतह पर मौजूद तत्वों की जांच के लिए।
3. सोलर एक्स-रे मॉनीटर क्लास: सोलर एक्स-रे स्पेक्ट्रम इनपुट मुहैया कराने के लिए।
4. इमेजिंग आईआर स्पेक्ट्रोमीटर: चांद पर पानी की मौजूदगी का पता लगाने और वहां मौजूद मिनरल्स पर शोध के लिए।
5. डुअल फ्रीक्वेंसी सिंथेटिक अपर्चर रडार: चांद के ध्रुवों की मैपिंग करने और सतह व सतह के नीचे जमी बर्फ का पता लगाने के लिए।
6. एटमॉसफेयरिक कंपोजिशन एक्सप्लोरर-2: चांद की ऊपरी सतह पर शोध के लिए।
7. ऑर्बिटर हाई रेजॉल्यूशन कैमरा: हाई रेस्टोपोग्राफी मैपिंग के लिए।
8. डुअल फ्रीक्वेंसी रेडियो : चांद के वातावरण की निचली परत की जांच करने के लिए।