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सौ दिन में भी नारे ही लगा रही सरकार….

मैंने तो सुना था कि सरकार को कुछ करना हो तो निर्णय लेने की भी जरूरत नहीं होती और न ही ढोल बजाने की, काम होते ही दिखने लगता है। मैं तो ठहरा पहाड़ के दूरदराज का शख्स, मुझे तो सूचनाएं भी देरी से मिलती हैं। सौ दिन हो गए नई सरकार को, यह भी मुझे कहीं से मालूम पड़ा। मुझे यह भी पता चला है कि इस सरकार ने सौ दिन में वो सभी काम कर दिेए, जो पहले कभी नहीं हुए, सरकार के लोगों ने ही ऐसा कुछ बताया है। पहाड़ पर रेलगाड़ी तो मैं पहले भी सुन रहा था, पर आज नई सरकार से मुझे जानकारी मिली है कि वो ऐेसा करा रही है। यहां के खास स्थानों को रेल से जोड़ने का काम उसने ही शुरू कराया है और अब रेल को कर्णप्रयाग से बदरीनाथ धाम और सोनप्रयाग तक बढ़ा देगी। मैं भले ही दूर रहता हूं पर मुझे मालूम है कि यह काम यहां की नहीं बल्कि दिल्ली की सरकार ने किया होगा। ये ट्रेन को पहाड़ पर चढ़ाने में उनकी मदद कर दें तो भला होगा। मुजफ्फरनगर से देवबंद तक रेल लाइन बिछाने का काम भी दिल्लीवालों का ही है। हुजूर आप बता दो इसमें आपने क्या किया।

हम तो उत्तराखंड बनने के बाद से आज तक अपने बच्चों के लिए कुछ कामकाज मांग रहे हैं। पिछली सरकार ने 30 हजार नौकरियां देने की बात कही थी, पर मेरे बच्चे को तो कुछ नहीं मिला। वो आज भी देहरादून में पार्ट टाइम करके किसी तरह गुजर बसर कर रहा है। मैंने उसे कह दिया है कि अगर कुछ कमा सके तो अपने लिए कर ले, मुझे यहां मेरे हाल पर छोड़ दे। रोज उसकी राह देखता हूं, कब आएगा। मुझे मालूम है कि मेरे पास आने के लिए उसको छुट्टी चाहिए, जो पार्ट टाइम में नहीं मिलती। आप ने देहरादून में कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय का क्षेत्रीय कार्यालय खोलने     को अपने सौ दिन में जोड़ दिया। यह तो दिल्लीवालों का कमाल है। आपको तो तब मानेंगे, जब मेरा बच्चा भटकने की बजाय कुछ कामधंधा करने लगा। मुझे किसी दफ्तर से नहीं, रोजी रोटी से मतलब है सरकार। दफ्तर तो अफसरों के लिए है, जहां वो प्लानिंग करेंगे और बहुत सारे काम होंगे, भले ही वो मेरे गांव तक दिखें या नहीं। अगर दिखेंगे तो मान लूंगा कि आपने कुछ अच्छा कर दिया।

एडीबी से पावर सेक्टर के लिए 819.20 करोड़ के लोन की सैद्धांतिक स्वीकृति आपको केंद्र सरकार से मिल गई। लोन कब मिलेगा और काम कब होंगे, यह तो वक्त बताएगा। फिलहाल इसको सौ दिन में गिनाकर आपने अपना काम चला लिया। ऐेसा आपने ही नहीं किया, पहले भी बिजली के तमाम काम पर करोड़ों खर्च हो गए। मुझे इसका फायदा इसलिए नहीं मालूम, क्योंकि मेरे यहां आंधी, तूफान और तेज बारिश में जाने वाली बिजली बड़ी मुश्किल से लौटकर आती है।

आपने बताया कि देहरादून, हल्द्वानी और हरिद्वार को जल्द रिंग रोड मिल जाएगी। गढ़वाल और कुमाऊं को जोड़ने के लिए कंडी रोड खुलेगा।यह भी पहले से सुनते आ रहे हैं। हुजूर यह आप करा रहे हैं तो अच्छी बात है, पर सुना है हरिद्वार से लेकर देहरादून तक सड़क चौड़ी करने के काम में सरकार के कम, लोगों के पसीने ज्यादा छुट रहे। जब हो जाएगा, तभी इसे अपना काम बताना, तो जनता पर ज्यादा प्रभाव जमेगा।

यहां तो कुछ उल्टा ही दिख रहा है, दिल्ली वालों ने आपकी सल्तनत की 22 सड़कों को राष्ट्रीय हाईवे बनाने की बात मंजूर कर ली। यह कैसे हो सकता है, आपको तो नेशनल हाईवे को जिला मार्ग बनाने में विकास नजर आता है। यह राज्य की भलाई के लिए है तो वो क्या था, जब आपने कई राष्ट्रीय हाईवे को जिला मार्ग बनाने का फरमान सुना डाला था। अच्छा समझ में आ गया वो भी राजस्व बढ़ाने के लिए था, शराब से। यह भी आपके सौ दिन की बड़ी सौगात है साहब, इसको भी गिना दीजिए। चलिये लोकल ठेकेदारों का भला हो जाएगा, उनको पांच करोड़ तक के काम मिल जाएंगे। इसे आप स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर बताते हैं तो अच्छी बात है।

आपने सौ दिन में एक काम और बढ़िया कर दिया वो जनता के विभागों को नियमित बजट के अलावा 250 करोड़ अलग से दे दिए, ताकि छोटे-छोटे कार्यों के लिए उनको बजट की कमी न हो। मेरी एक बात का जवाब दे दो। मुझे पता चला है कि ये वो विभाग हैं, जिनके पास इतना पैसा होता है कि ये साल के आखिर में बहुत सारा लैप्स कर जाते हैं। अगर सरकार इस पैसे का हिसाब लेगी तो यह भी तय किया होगा, कि जनता की कौन सी मांग पूरी करने के लिए पैसा दिया है। नहीं तो फिर लैप्स कर जाएंगे या फिर…

क्या डॉक्टरों को पहाड़ पर भेजकर ही स्वास्थ्य सेवाएं सुधरेंगी। जब भी हेल्थ की बात करो, सरकार कहती है कि डॉक्टरों की भर्ती कर रहे हैं। मैदानों में तैनात डॉक्टरों को पहाड़ पर भेजा गया है। यह कसरत पहले भी हुई, हाल जानते हैं हमारे गांवों का। चिकित्सा चयन बोर्ड 200 डॉक्टर भर्ती करेगा। अस्पतालों और डिस्पेंसरियों की हालत भी सुधार दो। आपने तो यह भी नहीं बताया कि कब डॉक्टर भर्ती होंगे और कब मेरे गांव में इनमें से कोई दिखेगा।

सीमांत औऱ छोटे किसानों को दो प्रतिशत ब्याज पर लोन देंगे, पर यह नहीं बताया कि इस पैसे से मुझे क्या करना होगा। मेरी फसल खेत से मंडी तक कैसे पहुंचेगी। मेरे जैसे तमाम गांव सूनेपन का अहसास करते हैं और आप कहते हैं कि एक लाख किसानों को स्वरोजगार से जोड़ेंगे। पहाड़ के अंतिम व्यक्ति को सरकारी योजनाओं का लाभ पहुंचाने के नारे बहुत लगे हैं। आप जानते हैं कि नारों से पेट नहीं भरता, रोजी-रोटी चाहिए। हम यह सबकुछ फ्री में नहीं मांग रहे, हम मेहनतकश लोग हैं। सरकार के भरोसे नहीं बल्कि अपनी जीवटता के सहारे जीते हैं।

2022 तक हर बेघर को घर देंगे, अच्छा चुनावी नारा है। साथ ही यह भी बता देते कि यह घर कैसे मिलेगा। 2019 तक बिजली दोगे। उज्ज्वला से छूटे बीपीएल को गैस कनेक्शन देंगे। पटवारियों के 1100 पदों  के साथ अन्य पदों पर नियुक्तियां करेंगे। उच्च शिक्षा में लोक सेवा आयोग की बजाय उच्च शिक्षा चयन आयोग के जरिये नौकरियां दोगे। एक और आयोग बना दिया। पशुपालन विभाग में सौ पदों पर भर्ती होगी। यह तो घोषणाएं हैं, मुझे इनमें उपलब्धि नहीं दिखती।

यूपी से संपत्तियों  के लिए आपके अफसर बैठकों पर बैठकें करके समाधान ही तलाश रहे हैं। सौ दिन हो गए, पर कुछ नहीं मिला। आगे क्या होगा, पता नहीं। जब कुछ मिला ही नहीं तो काहे की उपलिब्ध। जहां तक उम्मीद की बात है, वह तो 17 साल से बरकरार है। आपके बाद किसी और से उम्मीद रख लेंगे, पहले भी तो ऐसा ही किया है।

आपने ठीक किया विवादास्पद यूपी राजकीय निर्माण निगम को राज्य में निर्माण के लिए प्रतिबंधित कर दिया। जब बात जीरो टॉलरेंस की हो ही रही है तो उनको भी सुधार दीजिए, जिनकी वजह से यह कदम उठाना पड़ा। जनता तब मानेगी, जब आप विवादास्पद निगम के दोषियों को सरेआम कर दोगे। एनएच 74 मुआवजा मामला तो एक बानगी है, यहां तो और भी हैं, जिनको सामने लाना जरूरी है। चाहे आपदा राहत का मामला हो या फिर एनआरएचएम दवा घोटाला या फिर जल संस्थान के बाइकों से भारीभरकम पाइप ढुलवाने का कमाल हो, खनन माफिया का जोर हो, ऐसे और भी तमाम काम हैं, जिनमें आपके जीरो टॉलरेंस की जरूरत है।

एनआईएफटी, सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ प्लास्टिक इंजीनियरिंग टेक्नोलॉजी और हॉस्पिटैलिटी यूनिवर्सिटी आपकी उपलब्धि नहीं हैं। यह केंद्र सरकार की सौगात हैं। आईटी पार्क, स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट भी आपकी सरकार की देन नहीं हैं। आपने अभी कोई सौगात नहीं दी, बल्कि घोषणाएं की हैं। घोषणाएं तब ही उपलब्धियों में गिनाने लायक होती हैं, जब वो धरातल पर आकर लोगों को भला करें। हुजूर, आपने क्या किया, यह तो बता देते।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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