
Soil and water conservation: ICAR-IISWC ने किसानों को बताईं, मृदा एवं जल संरक्षण की तकनीक
Uttarakhand soil and water conservation: देहरादून, 05 जून 2025: उत्तराखंड के किसानों के लिए मृदा और जल संरक्षण गंभीर चुनौती बना हुआ है। इसी को ध्यान में रखते हुए, भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान (ICAR–IISWC), देहरादून, 29 मई से 12 जून 2025 तक चल रहे विकसित कृषि संकल्प अभियान (VKSA)-2025 में सक्रिय भूमिका निभा रहा है। इस अभियान के सातवें दिन (4 जून 2025) संस्थान के वैज्ञानिकों ने किसानों के खेतों का गहन दौरा किया और मृदा क्षरण, नमी तनाव, स्थानीय बाढ़, अवरुद्ध जल निकासी लाइनें, सुरक्षित जल निकासी तथा बाढ़ नियंत्रण जैसी प्रमुख समस्याओं की पहचान की।
व्यापक क्षेत्र भ्रमण और किसानों से सीधा संवाद
4 जून को संस्थान की पाँच वैज्ञानिक टीमों ने देहरादून के 12 गाँवों का व्यापक दौरा किया। इन टीमों का नेतृत्व इंजीनियर एस. एस. श्रीमाली, डॉ. लेखचंद, डॉ. विभा सिंघल, डॉ. श्रीधर पात्रा और डॉ. रमनजीत सिंह ने किया। दौरे में शामिल गाँव सहसपुर ब्लॉक (चाँद चक, ढाकी, इंद्रीपुर, लखनवाला मेवात, लक्ष्मीपुर), विकासनगर ब्लॉक (बालूवाला, बरोठीवाला, ढाकोवाला-बदमवाला, गोकुलवाला), रायपुर ब्लॉक (तलई), डोईवाला ब्लॉक (भानियावाला) और भगवानपुर ब्लॉक (बड़ोवाला) थे।
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वैज्ञानिकों ने 593 किसानों से सीधा संवाद स्थापित किया और उन्हें क्षेत्र विशेष के अनुसार खरीफ फसल संबंधी महत्वपूर्ण सलाह तथा तकनीकी मार्गदर्शन प्रदान किया। इस दौरान किसानों द्वारा उठाई गई प्रमुख समस्याएँ निम्नलिखित थीं:
- निजी कंपनियों से धान बीज की अत्यधिक कीमत।
- मक्का, अरबी, टमाटर, अदरक, सेम और धान में कीटनाशकों/दवाओं के उपयोग के बावजूद प्रभावहीनता।
- दुग्ध उत्पाद का कम मूल्य।
- गन्ने की दूसरी फसल में अत्यधिक कीटनाशक उपयोग और कम उपज।
- मृदा उर्वरता में कमी और मृदा स्वास्थ्य कार्ड का अभाव।
- जंगली जानवरों से फसल को नुकसान, खराब ट्यूबवेल और मानसून पूर्व चारे की कमी।
- टूटी हुई सिंचाई नहरें और इसके बावजूद जल कर की वसूली।
- खेतों की सड़कों पर अतिक्रमण।
- कुछ किसानों को पीएम-किसान सम्मान निधि का न मिलना (विशेषकर जिनके पिता का निधन हो चुका है या संपत्ति का नामांतरण हुआ है)।
VKSA-2025 का समन्वय एवं दृष्टिकोण
यह राष्ट्रव्यापी पहल डॉ. मधु (निदेशक), डॉ. बांके बिहारी, डॉ. एम. मुरुगानंदम (प्रधान वैज्ञानिक), अनिल चौहान (सीटीओ), इंजीनियर अमित चौहान (एसीटीओ), प्रवीण तोमर (एसटीओ), और मीनाक्षी पंत (पीए) द्वारा समन्वित की जा रही है। इसका मुख्य उद्देश्य वैज्ञानिक ज्ञान और टिकाऊ कृषि पद्धतियों के माध्यम से किसानों को सशक्त बनाना है।
Uttarakhand soil and water conservation
उत्तराखंड में मृदा अपरदन की गंभीर चुनौती: ICAR-IISWC के आंकड़ें
ICAR-IISWC के अनुसार, उत्तराखंड में मृदा अपरदन एक गंभीर चुनौती है:
- राज्य का 61% भौगोलिक क्षेत्र 10 टन/हेक्टेयर/वर्ष से अधिक की अपरदन दर से प्रभावित है।
- 47% क्षेत्र ‘गंभीर’ (20-40 टन/हेक्टेयर/वर्ष) से ‘अत्यंत गंभीर’ (>40 टन/हेक्टेयर/वर्ष) श्रेणी में है।
- 44% क्षेत्र में मृदा हृास सहनशीलता सीमा (15–35+ टन/हेक्टेयर/वर्ष) से अधिक क्षरण हो रहा है, जिससे तत्काल संरक्षण कार्य आवश्यक है। इन क्षेत्रों में शीघ्र उपाय कर क्षरण को स्वीकार्य सीमा में लाना बेहद ज़रूरी है।
सुझाए गए मृदा संरक्षण उपाय और ICAR-IISWC की तकनीकें
संस्थान ने किसानों को कई महत्वपूर्ण मृदा संरक्षण उपायों का सुझाव दिया है:
- धारा किनारों के लिए गैबियन संरचनाओं का निर्माण।
- जल निकासी लाइनों की प्राथमिकता के आधार पर सफाई।
- क्षतिग्रस्त सीढ़ीनुमा खेतों की मरम्मत और कंधे की मेढ़ों का निर्माण।
- सिल्टयुक्त नालियों की सफाई, क्षरण ग्रस्त क्षेत्रों में घास एवं पौधारोपण।
- मानसून पूर्व रोपित फसलों से अतिरिक्त जल की निकासी, खरपतवार हटाने के बाद नाइट्रोजन की बंटवारा खुराक।
- पौधों की मृत्यु की स्थिति में गैप फिलिंग।
- सतही बहाव व पत्ती क्षरण से पोषक तत्वों की क्षति की भरपाई हेतु नाइट्रोजन व पोटाश का समय पर प्रयोग।
ICAR-IISWC ने स्थायी समाधानों के लिए अरण्य व कृषि भूमि हेतु अनेक मृदा एवं जल संरक्षण तकनीकें विकसित की हैं, जिनमें वर्षा जल संचयन एवं पुनः उपयोग, दलहनी आधारित मिश्रित फसल प्रणाली, एकीकृत खेती प्रणाली, सतही बहाव कम करने हेतु ट्रेंचिंग, वनस्पति अवरोधक एवं सीढ़ीदार खेतों का जीर्णोद्धार, धारा उपचार एवं धारा किनारे की स्थिरीकरण, जैव-प्रौद्योगिकी उपायों द्वारा बड़े क्षेत्र में क्षरण नियंत्रण, और जलवायु अनुकूल संरक्षण कृषि में क्षेत्रीय कर्मियों की क्षमता निर्माण शामिल हैं।
खरीफ मौसम की स्थिरता हेतु रणनीतिक दिशा-निर्देश
ICAR-IISWC ने खरीफ मौसम की स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए निम्नलिखित रणनीतिक दिशा-निर्देश भी दिए हैं:
- भूमि उपयोग नियोजन को भूमि क्षमता वर्गीकरण के अनुसार करें।
- पर्यावरणीय उपायों को सभी विकास कार्यों में शामिल करें।
- मानसून पूर्व नमी संरक्षण व खाली क्षेत्रों में हरित आवरण (बीजारोपण और पौधरोपण) करें।
- यांत्रिक व वनस्पति उपायों से धारा तट उपचार करें।
- सभी मृदा और जल संरक्षण कार्य वैज्ञानिक विधियों से हों, जिससे पारिस्थितिक संतुलन और जलवायु अनुकूलन सुनिश्चित हो सके।
यह व्यापक क्षेत्रीय पहुँच और तकनीकी मार्गदर्शन ICAR-IISWC की किसानों की समस्याओं को हल करने और हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र में टिकाऊ, जलवायु-स्मार्ट कृषि को बढ़ावा देने की गहन प्रतिबद्धता को दर्शाता है।