Inspirational story

भागो नहीं कुछ इस तरह करो सामना

मैं आपसे एक कहानी शेयर कर रहा हूं, जिसमें एक युवती जीवन की सबसे बड़ी चुनौती का सामना करती है। एक तरफ उसके पिता हैं और दूसरी तरफ उससे शादी करने की जिद पर अड़ा बूढ़ा और बदसूरत साहूकार। युवती के पास केवल एक ही विकल्प है, जो उसका जीवन बचा सकता है। यह विकल्प ठीक उस लाटरी की तरह है, जिसमें किसी विजेता के नाम की पर्ची निकाली जाती है। यानि यह पूरी तरह किस्मत का खेल हो गया। युवती हिम्मत नहीं हारती और धोखेबाज साहूकार का पर्दाफाश करने का फैसला कर लेती है।

कहानी कुछ इस तरह है- इटली के एक शहर में एक छोटा व्यापारी रहता था। उसने अपने व्यवसाय को चलाने के लिए एक साहूकार से लोन लिया था। लोन चुकाने की स्थिति में नहीं होने की वजह से वह साहूकार के चंगुल में फंसता चला जा रहा था। उधर, साहूकार उसकी खूबसूरत बेटी से शादी करना चाहता था। एक दिन उसने व्यापारी के सामने यह प्रस्ताव रखा कि अगर वह उससे अपनी बेटी की शादी कर देता है तो बदले में वह उसका सारा लोन ब्याज सहित माफ कर देगा। इस प्रस्ताव पर व्यापारी और उसकी बेटी की चिंता बढ़ गई।

साहूकार ने व्यापारी से कहा कि मैं एक और प्रस्ताव तुम्हारे सामने रखता हूं। मैं एक बैग में काला और सफेद रंग के दो पत्थर रखूंगा। बैग में बिना देखे तुम्हारी बेटी को एक पत्थर निकालना होगा। अगर बैग से काला पत्थर निकला तो मैं तुम्हारा सारा लोन ब्याज सहित माफ कर दूंगा, लेकिन तुम्हें अपनी बेटी से मेरी शादी करानी होगी।

अगर तुम्हारी बेटी ने बैग से सफेद पत्थर निकाला तो तब भी तुम्हारा सारा लोन माफ कर दूंगा और तुम्हें मेरे से अपनी बेटी की शादी भी नहीं करानी पड़ेगी। पिता और पुत्री इस प्रस्ताव से विचलित हो गए। व्यापारी की बेटी के सामने इस प्रस्ताव को नहीं मानने का विकल्प था, लेकिन इससे उसके पिता का कर्ज माफ नहीं हो सकता था।

युवती ने इस समस्या का डटकर सामना करने का फैसला लिया। उसके पास दोनों विकल्प में अपने पिता का कर्ज माफ कराने का मौका तो था ही। प्रस्ताव मान लिया गया। साहूकार बैग लेकर व्यापारी के घर पहुंचा और उसके बागीचे से दो पत्थर उठाकर अपने बैग में डाल दिेए। व्यापारी की बेटी ने उसको बैग में पत्थर डालते हुए देख लिया था। ये दोनों पत्थर काले रंग के थे। व्यापारी की बेटी साहूकार की चाल को समझ गई। अब उसके पास साहूकार की करतूत का खुलासा करने का मौका था, लेकिन इससे उसके पिता का कर्ज माफ नहीं हो सकता था। इसलिए कुछ अलग करके समस्या से बाहर निकलने का प्लान बना लिया। उसने अलग हटकर कुछ सोचा।

उसने साहूकार के बैग में से एक पत्थर निकाला और उसको जमीन पर बिखरे अन्य पत्थरों में गिरा दिया। यह देखकर साहूकार और व्यापारी दोनों चौंक गए। व्यापारी की बेटी ने कहा- अरे गलती से मुझसे वह पत्थर गिर गया। साहूकार जी, क्या आप अपने बैग में पड़े दूसरे पत्थर को बाहर निकालकर बता सकते हैं कि वह गिरा हुआ पत्थर किस रंग का था। अगर आपके बैग में काले रंग का पत्थर होगा तो निश्चित तौर पर मेरे हाथ से गिरा पत्थर सफेद ही होगा। क्योंकि बैग में आपने काला व सफेद रंग के दो पत्थर ही तो डाले थे।

साहूकार को व्यापारी की बेटी की चाल समझ में आ गई, लेकिन वह कर भी क्या सकता था। वह तो अपने बुने जाल में फंस गया था। यह तो तय था कि उसके बैग में काला पत्थर ही था। इस तरह व्यापारी की बेटी की जीत हुई। साहूकार को अपने प्रस्ताव के अनुसार उसके पिता का कर्ज भी माफ करना पड़ा और उससे शादी का इरादा भी टालना पड़ा। यह कहानी समस्या से भागने की बजाय उसको हल करने के विकल्पों पर गंभीरता और सकारात्मक दृष्टिकोण से काम करने का संदेश देती है। किसी भी कठिन समस्या को आउट ऑफ बॉक्स थिंकिंग (कुछ अलग नजरिये) से सॉल्व किया जा सकता है। यह आपको सही विकल्प ही उपलब्ध नहीं कराता, बल्कि उसको आसानी से लागू करने का तरीका भी बताता है।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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