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नहीं लगता डर, साहस नहीं बैलेंस का कमाल है रस्सी पर चलना

इन बच्चों को प्रशिक्षण देकर खेल गतिविधियों का हिस्सा बनाया जाना चाहिए

राजेश पांडेय। डोईवाला

करीब 16 साल की निशा अपने भाई मनीष और बहन कामिनी के साथ डोईवाला में अपनी कला का कमाल दिखा रहे हैं। कामिनी, जिनकी उम्र सात साल है,  फिल्मी संगीत पर रस्सी पर आगे पीछे चलती हैं, कुछ देर रुककर थिरकती हैं। कभी साइकिल के रिम पर रस्सी पर फंसाकर पैरों के सहारे घुमाती हैं और कभी पैर में कटोरी फंसाकर रस्सी पर चलती हैं। बैलेंस ऐसा कि सिर पर रखा बर्तन भी नहीं गिरता। कामिनी रस्सी पर हिलते हुए दोनों हाथों से पकड़ी लाठी के सहारे आगे पीछे चलती हैं।

निशा कहती हैं, “साहस से ज्यादा यह बैलेंस का कमाल है, जो हमें बहुत छोटी उम्र में सिखाया जाता है। शुरुआत में कई बार गिरे, पर सीख गए। माता-पिता ने सिखाया यह करतब।”

डोईवाला के मिल गेट के पास निशा और उनके भाई बहन रस्सी पर चलने का करतब दिखा रहे हैं। रस्सी पर चल रहीं कामिनी, जो कक्षा दो की छात्रा हैं, कहती हैं उनको डर नहीं लगता। उनको यह खेल और पढ़ाई दोनों पसंद है। निशा बताती हैं, “वो
छत्तीसगढ़ राज्य के बिलासपुर जिले के बालपुर गांव के रहने वाले हैं। उनके मम्मी पापा ने यह सीखा और हमें सिखाया। यह हमारा खानदानी पेशा है। मैं तो स्कूल नहीं जाती, पर मनीष तीन और कामिनी दो क्लास में पढ़ते हैं। हम सर्दियों में घर से करतब दिखाने के लिए देशभर में घूमते हैं। जिंदगी पढ़ाई लिखाई में नहीं गुजरी है, अब खेल में ही गुजरेगी। पढ़ाई लिखाई में मन नहीं लगता, जब इसमें मन लग गया है। ”

छत्तीसगढ़ के बिलासपुर की देहरादून से दूरी लगभग 1300 किमी. से ज्यादा है। बिलासपुर को धान का कटोरा भी कहा जाता है। 

बड़ी बहन निशा के साथ मनीष, दो साइकिलों पर सामान बांधकर शहरों में जाकर करतब दिखाते हैं।

वो बताती हैं, “हमारे गांव के और भी लोग राजस्थान, पंजाब, दिल्ली, उत्तराखंड राज्यों में खेल दिखाते हैं। हम अभी तक रुद्रपुर, देहरादून, हरिद्वार, काशीपुर, हल्द्वानी में खेल दिखा चुके हैं। यहां देहरादून में रिस्पना के पास परिवार के साथ रह रहे हैं। दो साइकिलों पर सामान, जिसमें बांस, रस्सियां, म्यूजिक सिस्टम, माइक, लाउडस्पीकर, बैटरी रखकर तीनों देहरादून से डोईवाला पहुंचे हैं। हम सुबह ही चल देते हैं करतब दिखाने के लिए। रोजाना लगभग 50 किमी. साइकिल चलाते हैं। ”

“वो करतब दिखाकर रोजाना 1200 से दो हजार रुपये तक कमा लेते हैं,” निशा बताती हैं।

निशा ने बताया, “पहले वो रस्सी पर चलती थीं, पर अब बड़ी हो गई हैं, इसलिए भाई बहन को सहयोग करती हैं। शुरुआत में हर बच्चा गिरता है, पर धीरे-धीरे यह प्रैक्टिस बन जाती है। कामिनी जब रस्सी पर चलती है तो वो उस पर पूरा ध्यान रखती हैं। अगर कहीं बैलेंस गड़बड़ा जाए तो वो उसके पकड लेंगी और वो नहीं गिरेगी।”

निशा क्या आपको नहीं लगता कि इस दुनिया से बाहर निकला जाए, कुछ सपनों को पूरा किया जाए, पर निशा कहती हैं, “अब क्या सोचेंगे। यही कला ही हमारा जीवन है।”

कामिनी बताती हैं, “उनको यह खेल और पढ़ाई दोनों पसंद है। पढ़ाई में लिखना-पढ़ना अच्छा लगता है। मुझे डर नहीं लगता। पहले कुछ बार गिरी थी, पर अब नहीं।”

मनीष बताते हैं, “वो अब रस्सी पर नहीं चलते। वो मदद करते हैं। स्कूल में भी पढ़ते हैं।”

इन बच्चों से मिलने के बाद, मैं यह सोचता हूं वापस लौट रहा हूं, क्या इन बच्चों को देश की खेल गतिविधियों का अहम हिस्सा नहीं बनाया जाना चाहिए। इन बच्चों को स्कूल जाना चाहिए, पर ये परिवार के पुस्तैनी काम को आगे बढ़ाने के लिए पढ़ाई से मन हटा चुके हैं।

Rajesh Pandey

उत्तराखंड के देहरादून जिला अंतर्गत डोईवाला नगर पालिका का रहने वाला हूं। 1996 से पत्रकारिता का छात्र हूं। हर दिन कुछ नया सीखने की कोशिश आज भी जारी है। लगभग 20 साल हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर मानव भारती संस्था में सेवाएं शुरू कीं, जहां बच्चों के बीच काम करने का अवसर मिला। संस्था के सचिव डॉ. हिमांशु शेखर जी ने पर्यावरण तथा अपने आसपास होने वाली घटनाओं को सरल भाषा में कहानियों के माध्यम से प्रस्तुत करने के लिए प्रेरित किया। बच्चों सहित हर आयु वर्ग के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। स्कूलों एवं संस्थाओं के माध्यम से बच्चों के बीच जाकर उनको कहानियां सुनाने का सिलसिला आज भी जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। रुद्रप्रयाग के खड़पतियाखाल स्थित मानव भारती संस्था की पहल सामुदायिक रेडियो ‘रेडियो केदार’ के लिए काम करने के दौरान पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया। सामुदायिक जुड़ाव के लिए गांवों में जाकर लोगों से संवाद करना, विभिन्न मुद्दों पर उनको जागरूक करना, कुछ अपनी कहना और बहुत सारी बातें उनकी सुनना अच्छा लगता है। ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम के स्वच्छता का संदेश देने की पहल की। छह माह ढालवाला, जिला टिहरी गढ़वाल स्थित रेडियो ऋषिकेश में सेवाएं प्रदान कीं। जब भी समय मिलता है, अपने मित्र मोहित उनियाल व गजेंद्र रमोला के साथ पहाड़ के गांवों की यात्राएं करता हूं। ‘डुगडुगी’ नाम से एक पहल के जरिये, हम पहाड़ के विपरीत परिस्थितियों वाले गांवों की, खासकर महिलाओं के अथक परिश्रम की कहानियां सुनाना चाहते हैं। वर्तमान में, गांवों की आर्थिकी में खेतीबाड़ी और पशुपालन के योगदान को समझना चाहते हैं। बदलते मौसम और जंगली जीवों के हमलों से सूनी पड़ी खेती, संसाधनों के अभाव में खाली होते गांवों की पीड़ा को सामने लाने चाहते हैं। मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए ‘डुगडुगी’ नाम से प्रतिदिन डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे। यह स्कूल फिलहाल संचालित नहीं हो रहा है। इसे फिर से शुरू करेंगे, ऐसी उम्मीद है। बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी वर्तमान में मानव भारती संस्था, देहरादून में सेवारत संपर्क कर सकते हैं: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला जिला- देहरादून, उत्तराखंड-248140 राजेश पांडेय Email: rajeshpandeydw@gmail.com Phone: +91 9760097344

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