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पृथ्वी पर पानी कहां से आया, क्या यह अरबों साल पुराना है

माना जाता है, पानी की मौजूदगी और पृथ्वी ग्रह का निर्माण लगभग 4.6 अरब साल पुरानी बात है

न्यूज लाइव स्टोरी

कोई दिन ऐसा नहीं जाता, जब हम पानी का उपयोग नहीं करते। पानी के बिना जीवन नहीं है। पर, क्या हमने कभी सोचा है, यह पानी कहां से आया। हम अक्सर अन्य ग्रहों पर पानी की मौजूदगी को लेकर शोध अनुसंधानों के बारे में सुनते आए हैं। पृथ्वी को जीवन के लिए इसलिए उपयुक्त पाया जाता है, क्योंकि यहां पानी है, ऑक्सीजन है।

कुछ लोग कहेंगे, पानी ग्लेशियरों के पिघलने से बनता है। पानी वर्षा से मिलता है। पानी पृथ्वी के भीतर मौजूद है, वहां से हमें मिलता है। पर, यह सवाल अपनी जगह अभी भी है, पृथ्वी पर पानी कहां से आया। पानी बनाने की कोई मशीन तो हमने आज तक नहीं सुनी। हां, यह जरूर सुना है कि मशीनों से पानी साफ किया जा सकता है। मशीनों की मदद से पानी को धरती के भीतर बाहर निकाला जा सकता है।

अगर पानी बनाने वाली कोई मशीन है, तो वो इतना पानी उपलब्ध नहीं करा पाएगी, जिससे किसी गांव, कस्बे या शहर की मांग को पूरा किया जा सके। जहां तक ग्लेशियर, बारिश या बर्फबारी से पानी मिलने की बात है, तो वो एक प्राकृतिक चक्र है, जिसमें महासागरों, नदियों से निकली वाष्प बादल बनकर बारिश होती है। वायुमंडल में जल वाष्प बादलों के रूप में वर्षा या हिमपात करता है। पृथ्वी का पानी लगातार वाष्पीकरण, बादलों और वर्षा के माध्यम से आगे बढ़ रहा है, जो पूरे ग्रह में पानी बांटता है।

माना जाता है, पानी की मौजूदगी और पृथ्वी ग्रह का निर्माण एक समय की ही बात है। यह बात लगभग 4.6 अरब साल पुरानी है। कहने का मतलब यह है, आज हम पृथ्वी पर जिस पानी का उपयोग करते हैं, वो अरबों साल पहले पृथ्वी ग्रह बनने के साथ आया है। निर्माण के समय पृथ्वी, किसी गर्म, पिघली हुई गेंद की तरह थी। जैसे ही यह ग्रह ठंडा हुआ, ज्वालामुखी गतिविधि के माध्यम से पृथ्वी के आंतरिक भाग से जल वाष्प के रूप में बाहर आया और धीरे-धीरे ग्रह की सतह पर जमा हो गया।

हालांकि, पृथ्वी पर पानी की उत्पत्ति अभी भी वैज्ञानिक बहस का विषय है, लेकिन कुछ सिद्धांत हैं जो यह समझाने का प्रयास करते हैं कि पानी हमारे ग्रह पर कैसे आया।

कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि पानी पृथ्वी पर धूमकेतु और क्षुद्रग्रह लाए थे, जो पृथ्वी के प्रारंभिक निर्माण के दौरान टकरा गए थे। धूमकेतु और क्षुद्रग्रहों में बर्फ के रूप में बड़ी मात्रा में पानी होता है, और उनके टकराने से पृथ्वी के वायुमंडल और महासागरों में भारी मात्रा में पानी पहुंचा।

एक अन्य सिद्धांत से पता चलता है कि पानी पृथ्वी के अंदर अपने प्रारंभिक गठन से मौजूद हो सकता है, और ज्वालामुखीय गतिविधि तथा ठोस से गैस निकलने से प्राप्त हुआ था। ज्वालामुखी गतिविधि में निकली वाष्प, जल के रूप में प्राप्त हुई और समय के साथ महासागरों का निर्माण किया।

कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि पृथ्वी पर हाइड्रोजन और ऑक्सीजन परमाणुओं के बीच रासायनिक प्रतिक्रियाओं के माध्यम से पानी का निर्माण हुआ था, जो पहले से ही ग्रह की चट्टानों और खनिजों में मौजूद थे। पानी तब बन सकता था, जब ये तत्व सही परिस्थितियों में एक दूसरे के साथ मिलकर प्रतिक्रिया करते थे।

पृथ्वी पर पानी की उत्पत्ति अभी भी  शोध और बहस का विषय है, ये सिद्धांत इस बात की संभावित व्याख्या करते हैं कि यह महत्वपूर्ण संसाधन हमारे ग्रह पर कैसे आया।

ताजा एवं मीठा पानी
जिस पानी को हम “ताजा” कहते हैं, वह आम तौर पर वो पानी होता है जिसमें घुले हुए लवणों और खनिजों की मात्रा कम होती है, जो इसे मानव उपभोग और उपयोग के लिए उपयुक्त बनाता है। मीठा पानी नदियों, झीलों और भूजल जैसे स्रोतों से आता है। हालाँकि पानी पृथ्वी पर अरबों वर्षों से मौजूद है, फिर भी मानव उपयोग के लिए ताजे पानी की उपलब्धता सीमित है।

मीठे पानी के संसाधनों को पूरे ग्रह में असमान रूप से वितरित किया जाता है, और कई क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन, अत्यधिक प्रयोग और प्रदूषण जैसे कारकों के कारण पानी की कमी का सामना करना पड़ता है। इसलिए, भविष्य की पीढ़ियों के लिए उनकी उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए मीठे पानी के संसाधनों का संरक्षण और संरक्षण करना महत्वपूर्ण है।

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Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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