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शेर का डिनर

सेवन हिल्स जानवरों को खूब लुभाती थीं। वहां साफ पानी के झरने और हरी घास के मैदान थे। छोटे बड़े जानवर वहां आते जाते थे, लेकिन वो दहशत में थे। डर की वजह एक शक्तिशाली शेर था, जो हर दिन दो या तीन जानवरों को मार डालता था। एक दिन एक जानवर शेर के पास गया और उससे कहा, मेरे मालिक, तुम बहुत शक्तिशाली हो। आप पूरे दिन दौड़कर शिकार करते हो। हम आपका बहुत सम्मान करते हैं, इसलिए हमें अच्छा नहीं लगता कि आप दिनभर मेहनत करें। हम आपके भोजन के लिए हर दिन एक जानवर को भेज देंगे।

शेर ने कहा, ठीक है। मुझे हर दिन शाम को डिनर के लिए एक जानवर भेजना होगा। ध्यान रहे, एक दिन की भी गैरहाजिरी मुझे बर्दाश्त नहीं होगी। फिर मैं एक दिन में कई जानवरों को खा जाऊंगा, समझ गए न। चलो, आज के डिनर की शुरुआत तुमसे करता हूं। यह सुनते ही जानवर घबरा गया। उसने कहा, मेरे मालिक, अगर तुम मुझे खा गए तो तुम्हारे और मेरे बीच में जो सहमति हुई है, उसकी जानकारी अन्य जानवरों तक कैसे पहुंचेगी। शेर ने कहा, अच्छा ठीक है, अब तुम चले जाओ। कल भेज देना किसी बड़े जानवर को, बहुत भूख लग रही है।

शेर से छूटकर अपने साथियों के बीच पहुंचे जानवर ने सारी बात विस्तार से समझा दी। सभी जीवों ने सहमति व्यक्त करते हुए कहा, चलो अब शेर अचानक हमला नहीं करेगा। वो बिना दहशत के घूम सकेंगे। सभी ने तय किया कि रोजाना लॉटरी निकालकर उस जीव को चुना जाएगा, जो शेर का डिनर बनेगा। सबसे पहले एक हिरन का नंबर आया। बेचारा दहशत के मारे बेहोश हो गया, लेकिन इस फैसले को मानना उसकी मजबूरी थी। शाम को वह शेर के पास गया और उसका डिनर बन गया। अब जानवरों में इस बात को लेकर दहशत थी कि कल किसका नंबर आएगा। सभी परेशान होने लगे।

एक सुबह लॉटरी निकालने के लिए बुलाई सभा में भालू ने कहा, यह जिंदगी भी कोई जिंदगी है। क्या हमने शेर का डिनर बनने के लिए जन्म लिया है। कुछ तो करना होगा। सभी ने शेर को मजा चखाने का प्लान बनाने की जिम्मेदारी चालाक खरगोश को दे दी। खरगोश ने कहा, मैं कहां से प्लान बनाऊंगा। भालू ने कहा, दोस्त तुम सबसे छोटे हो, लेकिन तुम्हारा दिमाग सबसे तेज चलता है। अब तो जंगल के जीवों की रक्षा की जिम्मेदारी तुम्हारे दिमाग के भरोसे है। खरगोश ने कहा, दोस्तों डरो मत। आज शाम मैं जाऊंगा शेर के पास।

शाम को खरगोश अपने घर से निकला। पहले वह रास्ते में पड़ने वाले छोटे तालाब में कूदा और फिर अपने शरीर पर मिट्टी लपेटने लगा। खरगोश काफी गंदा हो गया। खरगोश ने जानबूझकर शेर के सामने जाने में देरी कर दी। खरगोश स्वयं से कह रहा था, देरी से पहुंचने पर शेर ज्यादा से ज्यादा गुस्सा होकर मुझे मार डालेगा। इससे ज्यादा क्या करेगा, वैसे भी मैं उसका डिनर बनने ही जा रहा हूं। देखा जाएगा।

उधर, काफी देर तक कोई जानवर नहीं पहुंचा तो शेर को गुस्सा आ गया। तभी उसने मिट्टी में लिपटे खरगोश को अपनी ओर आता देखा। शेर का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया। जब खरगोश उसके पास पहुंचा तो शेर दहाड़ने लगा। शेर ने कहा, एक तो आने में इतनी देर लगा दी। भेजा भी तो क्या, छोटा सा खरगोश। यह तो मेरे दांतों में ही चिपका रह जाएगा। शेर ने पूछा- तुम देरी से क्यों आए और इतने गंदे कैसे हो रखे हो। इतना भी नहीं पता कि भोजन साफ सुथरा होना चाहिए।

खरगोश ने शेर के सामने रोने का ड्रामा शुरू कर दिया। खरगोश ने कहा, महाराज मैं तो आपके लिए अपने साथ एक बड़ा खरगोश लेकर आ रहा था। रास्ते में एक और शेर मिला, जो ठीक आपकी तरह दिखता है। उसने हमसे पूछा कि तुम दोनों कहां जा रहे हो। मैंने साफ साफ बता दिया कि हम अपने राजा का भोजन बनने जा रहे हैं। इस पर वह गुस्से में आ गया और कहने लगा, यहां का राजा तो मैं हूं। वो कौन होता, तुम्हें अपना भोजन बनाने वाला। ऐसा कहते हुए उसने मेरे साथ आपके पास आ रहे बड़े खरगोश को पकड़ लिया। मैंने किसी तरह अपनी जान बचाई। जान बचाते हुए दौड़ते वक्त मैं पानी में गिर गया और फिर मिट्टी में। महाराज, वो शेर आपके बारे में बहुत कुछ कह रहा था।

शेर ने कहा, ठीक है। पहले उसको देखता हूं। मुझे ले चलो वहां, जहां वो तुम्हें दिखाई दिया था। खरगोश को मौका मिल गया और वह शेर को जंगल में वर्षों पुराने कुएं के पास ले गया। उसने कुएं की ओर इशारा करते हुए कहा, महाराज इसमें रहता है वो शेर। शेर ने कुएं में झांका और जोर से दहाड़ लगाई। तभी प्रतिध्वनि सुनाई दी। शेर को लगा कि कुएं में दूसरे शेर ने उसकी दहाड़ पर उसको ललकारा है।

चांदनी रात होने की वजह से शेर को कुएं के पानी में अपना प्रतिबिंब नजर आया, जिसे वह दूसरा शेर मान बैठा। शेर ने कहा, तू ऐसे नहीं मानेगा। तभी आवाज सुनाई दी, तू ऐसे नहीं मानेगा। गुस्से में आकर शेर ने कहा, तू मेरा मजाक उड़ाता है। अभी आकर तूझे देखता हूं। ऐसा कहते ही शेर ने कुएं में छलांग लगा दी। शेर को कुएं में कूदता देखकर खरगोश की जान में जान आई। कुएं में कूदा शेर पानी में डूबकर मर गया। वहीं खरगोश खुशी में कूदता हुआ अपने साथियों के बीच पहुंचा। दूसरी सुबह उसने सभी से कहा, अब किसी को डरने की जरूरत नहीं है। हमारे साथियों को मारने वाला शेर मारा गया। खरगोश ने सभी को पूरी कहानी सुनाई। सभी जानवरों ने खरगोश की प्रशंसा की और खुशी में नाचने गाने लगे।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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