उत्तराखंडः चूल्हों का धुआं सेहत पर संकट
देहरादून। न्यूज लाइव ब्यूरो
उत्तराखंड के लगभग आधे घरों में स्वच्छ ईंधन से खाना नहीं पकता। खाना बनाने के लिए जिन साधनों को ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, उनसे निकला धुआं स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा रहा है। इसी साल छह मार्च को जारी विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट में स्वच्छ ईंधन की कमी को भी पर्यावरण प्रदूषण का अहम कारण बताया गया था। इस रिपोर्ट के अनुसार साफ पानी की उपलब्धता नहीं होने, साफ सफाई नहीं होने, सैकेंड हेंड स्मोकर्स और स्वच्छ ईंधन की कमी से दुनियाभर में पांच साल तक की आयु के 17 लाख बच्चे हर साल मारे जाते हैं।
उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों के साथ मैदानी जिलों में भी खाना बनाने के लिए लकड़ी को ही जलाया जा रहा है। इससे निकलने वाला धुआं वायु प्रदूषण बढ़ाने के साथ साथ शरीर पर बुरा प्रभाव डालता है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2015-16 की रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड में 51 प्रतिशत परिवार ही स्वच्छ ईंधन यानी एलपीजी, बायोगैस या फिर धुआंरहित अन्य साधनों को ईंधन के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं। साफ तौर पर कहा जा सकता है कि 49 फीसदी परिवारों के यहां खाना पकाने के लिए चूल्हा लकड़ी या अन्य उन साधनों का इस्तेमाल किया जा रहा है, जिनसे निकलने वाला धुआं पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के साथ स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर रहा है।
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2015-16 के अनुसार 2015-16 में ग्रामीण इलाकों में 31.1 फीसदी तथा शहरी इलाकों में 86.6 फीसदी परिवार ईंधन के लिए प्रदूषण रहित (स्वच्छ ईंधन) के साधनों का इस्तेमाल करते हैं। कुल मिलाकर पूरे प्रदेश में 51 फीसदी परिवार ही स्वच्छ ईंधन का उपयोग कर रहे हैं।