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पैली पंचमी मौ की, हर हरियाली जौ की

  • क्रांति भट्ट की फेस बुक वॉल से 

भारत में उत्सवों का भी दर्शन हैं । हर उत्सव में उत्साह के साथ साथ इसकी विशिष्टता भी है । बसंत पंचमी वाणी की देवी मां सरस्वती की आराधना का दिन। हर घर विद्यालय में प्रात: मां शारदे की वंदना की मान्यता है। उत्तराखंड में इस उत्सव को बड़ी श्रद्धा से मनाया जाता है ।

क्रांति भट्ट

प्रात: स्नान ध्यान के बाद मंदिरों में दर्शन , बासंती अथवा पीले वस्त्रों का धारण , सफेद रूमाल को भी बासंती अथवा पीले रंग से अलंकृत करना । पहले प्राकृतिक रंगों को श्वेत वस्त्रों पर छिड़का जाता था। घर के दरवाजे के शीर्ष पर कच्चे गोबर को लगाया जाता है। उस पर “हरी जौ की पौध और अखरोट के पत्ते भी लगाते हैं। घरों में जहां जौ , अखरोट की पत्तियां लगाते हैं, उसे लाल रोली या पिठांई और आटे से भी सजाया जाता है। 

मन्दिरों में भी हरी जौ चढ़ाई जाती है। कभी यह परम्परा थी कि शिशु को शिक्षा की शुरुआत की तिथि के लिए आज का दिन निर्धारित होता था । लकड़ी की तख्ती पर धूल उड़ेल कर शिशु की नन्ही उंगली मां पिता पकड़ते और उस नन्ही उंगली सें तख्ती पर पहला अक्षर ” ऊं” लिखाने का प्रयास करते। यह दिन शिक्षा , ज्ञान अर्जन का शुभ दिन माना जाता है ।

नव वर्ष चैत्र से शुरू होता है । अतः नये वर्ष में क्या होगा ? मंदिरों और गांव की अन्य धार्मिक जगहों पर विद्वान पंडित नये साल का पंचांग पढ़ते। सब लोग इसे सामूहिक रूप से बड़ी श्रद्धा से सुनते थे।बच्चों के नाक कान छिदवाने की तिथि भी बसंत पंचमी ही होती है। मेरे गांव में जब हम बच्चे थे तो टोली में हर घर के आगे जाते और माघ मास के बसंत की शुभकामनाएं देते हुए गाते थे ” पैली पंचमी मौ की , हर हरियाली जौ की “… बदले में हमें गुड़ और चावल मिलते थे । मेरे गांव में गोपेश्वर गोपीनाथ में सामूहिक रुप से ” आरसे ” वो भी बड़े -बड़े और चावल का ही हलवा बनता और हर घर को दिया जाता । ” बसंत पहाड़ों में धीरे धीरे हौले हौले ठुमक ठुमक आने वाला है । उसके स्वागत के लिए बंसत पंचमी का आयोजन किसी अनुष्ठान से कम नहीं है। 

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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