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पद्मश्री ने बताया, गढ़वाल में उनके गांव ने लिया एक शानदार फैसला

देहरादून। विश्वभर में ख्याति प्राप्त मैती आंदोलन के प्रेरणास्रोत कल्याण सिंह रावत पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक सेवाओं के लिए निरंतर प्रयत्नशील रहते हैं। कल्याण सिंह रावत चमोली जिले के कर्णप्रयाग ब्लाक के बैनोली गांव के निवासी हैं। उन्होंंने अपने गांव के एक फैसले को साहसिक एवं शानदार पहल बताया है।

उन्होंने बताया कि उनके गांव के महिला मंगल दल तथा नवयुवक मंगल दल की संयुक्त बैठक में एक बड़ा निर्णय लिया है। उनके गांव ने अब किसी भी समारोह में शराब नहीं परोसे जाने का फैसला किया है। इस नियम का उल्लंघन किए जाने पर संबंधित व्यक्ति को दस हजार रुपये का जुर्माना देना होगा।

अपने गांवों में पेड़ लगाने के लिए बच्चे गुल्लक में रोज जमा करते हैं एक रुपया
पद्मश्री कल्याण सिंह रावत की पहल पर हिमालय, गंगा और गांव बचाने की एक और सकारात्मक पहल की गई है, जो देहरादून की नियोविजन संस्था मैती आंदोलन के साथ कार्य कर रही है। नियोविजन संस्था बच्चों की निशुल्क शिक्षा के लिए कार्य कर रही है।

नियोविजन के संस्थापक गजेंद्र रमोला बताते हैं, मैती ग्राम गंगा अभियान गांवों में पर्यावरण को बचाने की अभिनव पहल है। नियोविजन के छात्र-छात्राओं ने अपने घर में गुल्लक रखी है, जिस पर उनके गांव का पता तथा अपने पूर्वजों के नाम लिखे हैं। बच्चे प्रतिदिन मात्र एक रुपया गुल्लक में जमा करते हैं। कभी भूल या परिस्थितिवश रुपया नहीं डाल पाते तो उन दिनों के एकमुस्त 5 या 10 रुपये जमा करते हैं।

पांच जून को विश्व पर्यावरण दिवस पर परिवार के साथ बैठ कर गुल्लक में जमा राशि को गिनकर अपने गांव भेजते हैं। इसके बाद गुल्लक में फिर से प्रतिदिन एक रुपया जमा करने का क्रम शुरू हो जाता है। हर गांव में मैती ग्राम गंगा समिति बनाई गई है, जो छात्र-छात्राओं द्वारा भेजी गई राशि से एक पौधा खरीदकर उसको रोपती है तथा उस गांव के विद्यालय का इको क्लब पौधे की देखभाल करता है।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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