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जब भी ऋषिराम भट्ट जी से फोन पर बात हुई, मुझे लगा ही नहीं कि मैं सेवानिवृत्त व्यक्ति से बात कर रहा हूं। उनकी आवाज में किसी युवा सा जोश है, उनका उत्साह और भरपूर स्नेह से मुलाकात करना, मेरे लिए प्रेरणा की बात की। भट्ट जी से मिलने के लिए उनके ऋषिकेश में एम्स के पास पशुलोक स्थित आवास पर पहुंचा तो बड़ी गर्मजोशी से मिले।
मैं अपने मित्र मोहित उनियाल, जो सोशल एक्टीविस्ट हैं, के साथ उनके आवास पर पहुंचा। डुगडुगी के लिए भट्ट जी का एक साक्षात्कार लेना था। भट्ट जी से बहुत सारी बातें हुईं। उन्होंने हमारे लिए विशेष रूप से उत्तरकाशी के प्रसिद्ध लाल चावल, पहाड़ की जैविक राजमा उड़द की दाल, अच्छे से फ्राई की गई भिंडी, लजीज रायता बनवाया था। सबसे महत्वपूर्ण बात, उनकी धर्मपत्नी श्रीमती मधु जी और पुत्र शुभम द्वारा बड़े स्नेह से भोजन परोसा गया। सच बताऊं, मैं कुछ ज्यादा ही भोजन खा गया। इतना स्नेह… हृदय से सम्मान करने वाले लोगों से ही मिलता है।
हमें एक बजे उनके पास पहुंचना था, पर पूरे एक घंटा लेट पहुंचे। एक से डेढ़ घंटा इधर उधर की बातों और साक्षात्कार में लग गया। शाम साढ़े तीन बज गए थे। भट्ट जी हमारे साथ भोजन करना चाहते थे, इसलिए उनको भी भोजन में काफी देर हो गई। हम उनके स्नेह और आशीर्वाद के लिए हमेशा आभारी रहेंगे।
इंटरव्यू में…
ऋषिराम भट्ट जी , वर्ष 2018 में राजकीय इंटर कॉलेज उत्तरकाशी से प्रधानाचार्य पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। वर्तमान में ऋषिकेश के पशुलोक क्षेत्र में रह रहे भट्ट जी ब्रेल लिपि में काव्य रचनाएं लिखते हैं। आपकी दो सौ से अधिक रचनाएं प्रकाशन के लिए तैयार हैं। उनके पुत्र रचनाओं को लिखते हैं और फिर भट्ट जी रचनाओं को ब्रेल में लिपिबद्ध करते हैं। कहते हैं, “उनका समय रेडियो सुनने में, रामधारी सिंह दिनकर जी, महादेवी वर्मा जी और जयशंकर प्रसाद जी की रचनाओं को पढ़ने,सुनने में व्यतीत हो जाता है।रेडियो पर गीत और प्रोग्राम सुनते हैं। उनको देशभक्ति के गीत अधिक पसंद हैं। ”
आप उत्तरकाशी जिले के रहने वाले हैं। ढाई वर्ष की आयु में आंखों की रोशनी चली गई।
बताते हैं, “पिता और दादा ने मेरा दाखिला टिहरी के स्कूल में कराने का निर्णय लिया। इस पर नकारात्मक प्रवृत्ति के लोगों को यह कहते सुना कि इनको पढ़ाने से क्या होगा। पर, मेरे दादा और पिता ने हौसला बांधकर रखा और टिहरी में राजमाता कमलेंदुमति शाह द्वारा स्थापित विद्यालय में दाखिला दिला दिया। मैं राजमाता कमलेंदुमति शाह का आभारी हूं, उन सभी लोगों का आभारी हूं, जो हमेशा मेरे साथ रहे। अगर, टिहरी का वो स्कूल नहीं होता तो मैं पढ़ाई नहीं कर पाता।”
“चुनौतियों का सामना किया और बहुत लगन से पढ़ाई की। कई बार तो ऐसा भी समय आया कि विद्यार्थी जीवन में एक समय ही भोजन मिल पाया। कई किमी. पैदल चलना पड़ा, पर हिम्मत हारने से क्या होता। हौसला बनाकर रखा और पढ़ाई जारी रखी। ”
एक दिन मेहनत सफल हुई और संघर्षों पर जीत का समय आ गया। देवप्रयाग के राजकीय बालिका इंटर कॉलेज में संगीत अध्यापक की नियुक्ति मिली। बाद में विवाह हुआ और प्रमोशन के साथ पहाड़ के दूरदराज के इलाकों में नियुक्तियां मिलीं। सेवानिवृत्ति प्रधानाचार्य पद से हुई।