agriculturecurrent AffairsFeaturedfood

Food History: आलू के बारे में इतने सारी जानकारियां आपको चौंका देंगी

भारत में आलू के पोषक तत्वों की जानकारी नहीं है या फिर गलत धारणा है

न्यूज लाइव डेस्क

ब्जी चाहे कोई भी बनाओ, पर उसमें आलू के बिना स्वाद नहीं आता। इसलिए तो आलू को सब्जियों का राजा कहते हैं। यह हमारे खाने की प्लेट में अलग-अलग नाम से आता है, कभी पकौड़ा तो कभी परांठा बनकर और भी न जाने कितने नाम से…। आलू बच्चों को खूब पसंद है। मुझे तो आलू भरे समोसे बहुत पसंद हैं। आलू की टिक्कियां… सुनते ही मुंह में पानी आ जाता है। आलू के चिप्स कौन नहीं जानता, इनके दीवानों की संख्या कम नहीं है। हां… तो मैं आपसे साझा कर रहा हूं, आलू के बारे में बहुत सारी जानकारियां…।

हमारे पास हर उस खाद्य एवं पेय पदार्थ के बारे में एक सवाल तो होता ही है, वो यह कि सबसे पहले यह किसने खाया या पीया था या फिर यह कहां से आया। यही सवाल आलू को लेकर है यानी आलू के इतिहास को लेकर। वैसे जो जानकारी है, उसके अनुसार आलू की खेती सबसे पहले भारत में नहीं हुई थी।

आलू का इस्तेमाल करीब 7000 साल पहले मध्य पेरु में शुरू हुआ था। तब इसे ‘कमाटा’ और ‘बटाटा’ कहा जाता था। उस समय शिकार करने वालों ने टिटीकाका झील के आसपास बड़ी संख्या में पाए जाने वाले जंगली आलू की खेती शुरू की थी।

टिटीकाका झील दक्षिण अमरीका में एंडीस पर्वत श्रृंखलाओं में है और पेरू की राजधानी लीमा से करीब एक हजार किलोमीटर दक्षिण पूर्व में है।

यह समुद्री तल से 3,800 मीटर की ऊंचाई पर है। आज भी अमरीका के जंगलों में जंगली आलू की लगभग 200 प्रजातियां पाई जाती हैं। उस समय के किसानों ने आलू की ऐसी प्रजातियां ही चुनीं, जो खेती के लिए उपयुक्त थीं। वो पेट भरने के लिए इसी पर निर्भर थे।

टिटीकाका झील (Lake Titicaca) के पास एक हेक्टेयर में 10 टन तक आलू पैदा होता था। 1200 ईस्वीं में इंका सभ्यता का उदय हुआ। सौ साल से भी कम समय में इंका अमरीका का सबसे बड़ा राज्य बन गया। इंकावासियों के लिए मक्का और आलू बहुत महत्वपूर्ण थे। वो आलू को सुखाकर “चूनो” बनाते थे। इसे कई साल तक इस्तेमाल करते थे।

इंका दक्षिण अमेरीका के मूल निवासियों की एक उपजाति थी। इंका लोग कुशल कृषक थे। इन्होंने पहाड़ियों पर सीढ़ीदार खेत बनाकर भूमि के उपयोग का अनुपम उदाहरण पेश किया था। आदान-प्रदान का माध्यम द्रव्य नहीं था, इसलिए सरकारी करों का भुगतान शिल्पों की वस्तुओं तथा कृषि उपज में किया जाता था। ये लोग खानों से सोना निकाल कर उसका उपयोग मंदिरों आदि में सजावट के लिए ही करते थे। ये लोग सूर्य के उपासक थे और ईश्वर में विश्वास करते थे।

1532 में स्पेन ने इंका साम्राज्य पर आक्रमण किया। 1572 तक इंका सभ्यता खत्म हो गई। युद्ध और बीमारियों ने यहां की आधी आबादी को खत्म कर दिया। यूरोपीय लोग यहां सोने की तलाश में आए थे, लेकिन वो अपने साथ आलू के रूप में कीमती खज़ाना यूरोप ले गए। तब तक यूरोपियों को आलू के बारे में कुछ भी पता नहीं था।

1535 में स्पेन के विजेताओं ने टिटीकाका झील के पास आलू के पौधों को देखा था। 16वीं सदी में बटाटा नाम से आलू स्पेन पहुंचा। स्पेन से इसका यूरोप में प्रवेश हुआ और यूरोप में यह पटोटो के नाम से जाना जाने लगा। यूरोपीय देशों के औपनिवेशिक विस्तार के परिणाम  स्वरूप यह दुनियाभर में पहुंच गया। 17 वीं शताब्दी की शुरुआत में संभवतः ब्रिटिश मिशनरियों या पुर्तगाली व्यापारियों के माध्यम से इसे भारत में लाया गया था।

उत्तराखंड के देहरादून जिला के झबरावाला गांव में आलू की खेती। फोटो- डुगडुगी

आलू को जब यूरोपीय व्यापारियों ने कोलकाता में बेचना शुरू किया, तो इसका नाम बदल गया। इसे आलू कहा जाने लगा। कहा तो यह भी जाता है कि भारत में आलू की खेती की शुरुआत उत्तराखंड के नैनीताल में हुई। धीरे-धीरे आलू पूरे भारत में लोकप्रिय होता गया।

आलू को भारत आए अभी 500 साल हुए होंगे। इसको यूरोप के व्यापारी यहां लाए थे। आलू का प्रवेश जहांगीर के समय में हुआ था। हमारे देश में आलू को बढ़ावा देने का श्रेय वारेन हेस्टिंग्स (Warren Hastings) को जाता है, जो अंग्रेज शासन में 1774 से 1785 तक यहां गवर्नर जनरल रहे। इस समय में आलू को खूब प्रचार प्रसार मिला।

केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान शिमला के अनुसार,  भारत का विश्वभर में कुल आलू उत्पादन में 7.55 फीसदी का योगदान है, लेकिन दुनिया के आलू निर्यात में इसका 0.7 फीसदी हिस्सा है।

भारतीय आलू प्रतिबंधित बीमारी जैसे वार्ट, ब्लैक स्क्रफ, कंद कीट और नेमाटोड जैसे कीटों से वास्तव में मुक्त है। जनवरी से जून के दौरान यूरोपीय देशों से आपूर्ति कम होने पर भारत ताजा आलू निर्यात करता है। विविध कृषि-जलवायु के कारण भारत सालभर ताजे आलू की आपूर्ति करने में सक्षम है। देश के एक या दूसरे हिस्से में पूरे वर्ष आलू उगाया जाता है। वैश्विक अर्थव्यवस्था के बदलते परिदृश्य में भारत में आलू का अच्छा भविष्य है। वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप कई विकासशील देश अंतर्राष्ट्रीय आलू व्यापार में एकीकृत हो गए हैं।

भारत में लोगों के जीवन स्तर में सुधार के साथ, आहार संबंधी आदतों में अनाज का स्थान सब्जियां ले लेंगी। ऐसी स्थिति में यह अनुमान है कि भारत को 2020 तक 49 मिलियन टन आलू का उत्पादन करना होगा। यह लक्ष्य केवल उत्पादकता स्तर में सुधार करके ही प्राप्त किया जा सकता है।

भारत में आलू की उत्पादकता बेल्जियम (490 कुंतल प्रति/हेक्टेयर), न्यूजीलैंड (450कुंतल प्रति/हेक्टेयर), यूनाइटेड किंगडम (397 कुंतल प्रति/हेक्टेयर) और यूनाइटेड स्टेट अमेरिका (383कुंतल प्रति/हेक्टेयर) की तुलना में काफी कम (183.3 कुंतल प्रति/हेक्टेयर) है।

भारत में अधिकतर लोगों को या तो आलू के पोषक तत्वों के बारे में कोई जानकारी नहीं है या इसके बारे में गलत धारणा है। कम वसा (0.1 प्रतिशत) और कैलोरी के साथ, यह मोटापा नहीं बढ़ाता है। आलू के बारे में गलत धारणा के कारण, भारत में आलू की प्रति व्यक्ति खपत केवल 16 किलोग्राम प्रति वर्ष है। वहीं दूसरी ओर, यूरोप में प्रति व्यक्ति खपत 121 किलोग्राम और पोलैंड में 136 किलोग्राम प्रति वर्ष है।

टिहरी गढ़वाल के कलजौंठी गांव में आलू की खेती। फोटो- डुगडुगी

आलू भी गेहूं, मक्का और चावल के बाद सबसे महत्वपूर्ण खाद्य फसलों में से एक है, जो विश्व में खाद्य और पोषण सुरक्षा में योगदान देता है। सोलनेसी वंश के इस कंद की फसल में लगभग 200 जंगली प्रजातियां हैं।

बीबीसी की एक रिपोर्ट में आलू को लेकर विस्तार से जानकारी मिलती है। रिपोर्ट के अनुसार, एक सदी पहले, आलू में लगी एक बीमारी ने कुछ ही साल में आयरलैंड की आधी आबादी ख़त्म कर दी थी। आज चीन, भारत, रूस और यूक्रेन आलू के प्रमुख उत्पादक हैं।

पेरू ने 1971 में इंटरनेशनल पोटैटो सेंटर बनाया और पहाड़ों पर रहने वाले स्वदेशी समुदायों के साथ मिलकर आलू की आनुवंशिक विरासत को संरक्षित किया। पेरू के एंडीज पहाड़ों पर कुस्को के पोटैटो पार्क में आलू का संग्रहालय है। पेरू की राजधानी लीमा के एक उपनगर में बनाए गए इस केंद्र में हजारों तरह के आलू के नमूने मिलते हैं।आलू को फ्रीज करके और सुखाकर बनाया जाने वाला चूनो कई साल तक या कभी-कभी दशकों तक चल जाता था।

रिपोर्ट में बताया गया है, 1845 से 1849 के बीच आयरलैंड में पड़े भीषण अकाल ने आलू की रफ़्तार पर ब्रेक लगा दिया। फसल ख़राब होने और लंदन की सरकार की अनदेखी के कारण 10 लाख लोग मारे गए। करीब 10 लाख लोग अमेरिका पलायन कर गए और 20 लाख लोग दूसरी जगह चले गए। कुछ ही दशकों में आयरलैंड की आबादी आधी हो गई।

वर्ष 2008 को अन्तर्राष्ट्रीय आलू वर्ष मनाया गया। आलू को एक ऐसा खाद्य पदार्थ माना गया है, जो दुनियाभर में गरीबी और भुखमरी की समस्या को खत्म कर सकता है। कार्बोहाइड्रेट से भरपूर होने पर आलू ऊर्जा का अच्छा स्रोत हैं। इनमें विटामिन सी और पोटेशियम की उच्च मात्रा होती है। प्रोटीन भी मानव शरीर की आवश्यकताओं से अच्छी तरह मेल खाता है। कठोर वातावरण में भी आलू उगाना आसान है। ये भूमि के एक छोटे से क्षेत्र से बहुत जल्दी बहुत सारा भोजन भी पैदा करते हैं। क्योंकि ये जमीन के नीचे उगते हैं, आलू को भी अन्य फसलों की तुलना में कम नुकसान होता है।

पेरू स्थित अंतर्राष्ट्रीय आलू केंद्र में एंडीज में उगाए जाने वाले आलू की लगभग 4300 विभिन्न किस्मों की पहचान की गई है।

एक रिपोर्ट में बताया गया है, 1770 में पूरे यूरोप महाद्वीप में अकाल पड़ा और भुखमरी फैली हुई थी। ऐसे में आलू लोगों के लिए वरदान साबित हुआ। वहां के किसानों को आलू की खेती करने का आदेश दिया गया। अमरीकी राष्ट्रपति थॉमस जेफरसन ने भी आलू को लोकप्रिय बनाने के लिए व्हाइट हाउस में आने वाले मेहमानों को फ्रेंच फ्राइज़ (तले आलू) परोसना शुरू किया। वर्ष 1815 तक आलू उत्तरी यूरोप व अमेरिका में मुख्य आहार बन चुका था।

Rajesh Pandey

उत्तराखंड के देहरादून जिला अंतर्गत डोईवाला नगर पालिका का रहने वाला हूं। 1996 से पत्रकारिता का छात्र हूं। हर दिन कुछ नया सीखने की कोशिश आज भी जारी है। लगभग 20 साल हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। बच्चों सहित हर आयु वर्ग के लिए सौ से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। स्कूलों एवं संस्थाओं के माध्यम से बच्चों के बीच जाकर उनको कहानियां सुनाने का सिलसिला आज भी जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। रुद्रप्रयाग के खड़पतियाखाल स्थित मानव भारती संस्था की पहल सामुदायिक रेडियो ‘रेडियो केदार’ के लिए काम करने के दौरान पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया। सामुदायिक जुड़ाव के लिए गांवों में जाकर लोगों से संवाद करना, विभिन्न मुद्दों पर उनको जागरूक करना, कुछ अपनी कहना और बहुत सारी बातें उनकी सुनना अच्छा लगता है। ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम के स्वच्छता का संदेश देने की पहल की। छह माह ढालवाला, जिला टिहरी गढ़वाल स्थित रेडियो ऋषिकेश में सेवाएं प्रदान कीं। बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी संपर्क कर सकते हैं: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला जिला- देहरादून, उत्तराखंड-248140 राजेश पांडेय Email: rajeshpandeydw@gmail.com Phone: +91 9760097344

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button