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पांडव नृत्यः सांस्कृतिक विरासत को आगे बढ़ा रहे पहाड़ के गांव

राजेश पांडेय। न्यूज लाइव

नवंबर का महीना है, सर्दियां शुरू हो गई हैं। दिन में धूप थोड़ा राहत देती है। पर, कहीं-कहीं बादल छाने से ठंड बढ़ जाती है। वैसे भी, यहां सुबह, शाम और रात को ठंड का असर ज्यादा रहता है।

मौसम के बार-बार करवट बदलने के बीच, गढ़वाल के क्यूड़ी गांव में इस बार आठ साल बाद पांडव नृत्य हो रहा है। घाटी में स्थित इस गांव में दिन  और रात ढोल-दमाऊं की थाप दूर तक सुनाई देती है। आसपास के भी कई गांवों में पांडव नृत्य एवं पांडव लीला हो रहे हैं।

रविवार (13 नवंबर, 2022) की रात हम रुद्रप्रयाग जिला के क्यूड़ी गांव में उस स्थान पर पहुंचे, जहां पांडव नृत्य हो रहा है। वाद्य यंत्रों की ताल पर, पांडवों की भूमिका निभा रहे ग्रामीण, जिनमें अधिकतर बुजुर्ग हैं, नृत्य कर रहे हैं।

रुद्रप्रयाग के क्यूड़ी गांव में 70 वर्षीय जीत सिंह पांडव नृत्य में भगवान श्रीकृष्ण की भूमिका में हैं। फोटो- सक्षम पांडेय

भगवान श्रीकृष्ण की भूमिका निभा रहे 70 वर्षीय जीत सिंह कहते हैं, “नृत्य के समय, हमारे मन में कोई विचार नहीं होता। हम ऊपर वाले पर विश्वास करते हैं, भगवान हमें जैसा नचाते हैं, हम वैसा नाचते हैं। यह हमारी पुरानी संस्कृति है। जिस तरह, हमारे बुजुर्गों ने इस सांस्कृतिक विरासत को निभाया है, वैसे ही हम इसको सहेजकर संरक्षित कर रहे हैं। हमारे बाद, हमारी पीढ़ियां इस विरासत को आगे बढ़ाएंगी।” जीत सिंह, 1978 से पांडव नृत्य में शामिल हो रहे हैं।

रुद्रप्रयाग के क्यूड़ी गांव में पांडव नृत्य एवं पांडव लीला देखने के लिए जुटे ग्रामीण। फोटो- सक्षम पांडेय

यहां बड़ी संख्या में लोग, जिनमें महिलाओं और बच्चों की संख्या अधिक हैं, बैठे हैं।  वो सभी, इस पौराणिक सांस्कृतिक विरासत के साक्षी बन रहे हैं। ठंड से बचने के लिए अलाव जलाया गया है, जिससे कुछ राहत मिलती है। कुछ युवक अलाव के पास खड़े होकर नृत्य देख रहे हैं। महिलाएं और बच्चे दरियां, गद्दे बिछाकर कंबल-रजाई ओढ़कर बैठे हैं। सर्दी से बचने के लिए बीच-बीच में चाय की चुस्कियां ली जा रही हैं।

रुद्रप्रयाग के क्यूड़ी गांव में पांडव नृत्य समिति के अध्यक्ष गोपाल सिंह नेगी।

यहां ईश्वर के प्रति आस्था है और यह विश्वास है, सभी के जीवन में खुशहाली रहेगी। श्री पांडव लीला समिति के अध्यक्ष गोपाल सिंह नेगी बताते हैं, यहां 2014 में यह आयोजन किया गया था। अब आठ वर्ष बाद, हम इस परंपरा को पुनः आगे बढ़ा पाए। इसके लिए बहुत सारी व्यवस्थाएं, संसाधन जुटाने होते हैं। अब अगले वर्ष तो नहीं, बल्कि पांच या छह साल बाद या फिर अवसर मिला तो दो या तीन वर्ष बाद हम पुनः क्यूड़ी गांव में पांडव नृत्य एवं पांडव लीला करेंगे।

हमने पांडव नृत्य में शामिल ग्रामीणों से बात की, जिनमें क्यूड़ी गांव के बुजुर्ग कुंदन सिंह 1974 से नागार्जुन की भूमिका निभा रहे हैं। बताते हैं, “हम नृत्य के समय भगवान की भक्ति में मगन रहते हैं। पता नहीं होता है कि मैं कहां नाच रहा हूं। भगवान का आभास रहता है।”

रुद्रप्रयाग के क्यूड़ी गांव में पांडव नृत्य करते ग्रामीण। फोटो- सक्षम पांडेय

क्यूड़ी के मातवर सिंह राणा 44 वर्ष के हैं। वो वर्ष 2005, 2014 और अब 2022 में युधिष्ठिर की भूमिका निभा रहे हैं। बताते हैं, “जैसे- जैसे ढोल की थाप बदलती है, उसके अनुसार नृत्य बदल जाता है। थाप के अनुसार हमारा एक्शन बदल जाता है। हमने अपने बुजुर्गों से इस नृत्य शैली को सीखा है।”

रुद्रप्रयाग के क्यूड़ी गांव में पांडव नृत्य के बाद विश्राम करते ग्रामीण। फोटो- सक्षम पांडेय

हमारे पूछने पर उनका जवाब है, “हम सभी लोग, जो विभिन्न भूमिका अदा कर रहे हैं, काफी संयम बरतते हैं। प्रतिदिन सुबह स्नान करते हैं। मीट- मदिरा का सेवन प्रतिबंधित रहता है। भोजन में प्याज- लहसुन का इस्तेमाल नहीं होता। शुद्ध शाकाहारी भोजन करना होता है।”

बुजुर्ग लक्ष्मण सिंह नेगी, भीमसेन की भूमिका में हैं। भारी गदा लेकर नृत्य कर रहे हैं। नृत्य के दौरान, क्या आभास होता है, पर कहते हैं, “जोश आता है। एक करंट, झटका सा लगता है, जिससे शरीर में शक्ति का संचार होता है।” शहरों में पांडव नृत्य के आयोजन के सवाल पर उनका कहना है, “ऋषिकेश- हरिद्वार से नीचे पांडव नृत्य नहीं होता है।”

रुद्रप्रयाग के क्यूड़ी गांव में पांडव नृत्य में द्रौपदी की भूमिका में बुजुर्ग भगत सिंह। फोटो- सक्षम पांडेय

क्यूड़ी गांव के निवासी भगत सिंह, 1982 से द्रौपदी की भूमिका अदा कर रहे हैं, कहते हैं, “हमारी खेतीबाड़ी, हमारे पशु सुरक्षित रहें। यह देवभूमि है, जब हम अपने देवों के समक्ष जाते हैं, तो उनसे प्रार्थना करते हैं कि हम सभी, हमारे गांव सही सलामत रहें।”

सूरत सिंह नेगी, 1974 से भगवान श्री हनुमान जी की भूमिका में हैं, कहते हैं,” जिस प्रकार से हमारे बुजुर्गों ने इस संस्कृति को आगे बढ़ाया है, हमारी आने वाली पीढ़ियां भी इसको निभाएं।”

सूरत सिंह नेगी, गदा उठाकर, मगन होकर नृत्य करते हैं। इतनी शक्ति कहां से आती हैं, के प्रश्न पर उनका जवाब है, “यह उन्हीं (ई्श्वर) की कृपा है, उन्हीं की माया है। इस समय बैठे हैं, बदन में दर्द हो रहा है, जब वो आते हैं, दर्द खत्म हो जाता है। नृत्य में रम जाते हैं, उस समय उन्हीं का विचार आता है।”

क्यूड़ी गांव में पांडव नृत्य में माता कुंती की भूमिका निभा रहीं सावित्री देवी और भगवान हनुमान की भूमिका में सूरत सिंह। फोटो- सक्षम पांडेय

पांडव नृत्य परिसर में माता कुंती का आसन लगा है। क्यूड़ी गांव की सावित्री देवी दूसरी बार माता कुंती की भूमिका में हैं। इससे पहले 2014 में यह भूमिका निभाई थी।

रुद्रप्रयाग के क्यूड़ी गांव में पांडव लीला का मंचन। फोटोः सक्षम पांडेय

पांडव नृत्य के बाद, सांस्कृतिक प्रस्तुतियों के साथ पांडव लीला का मंचन शुरू होता है। भगवान श्रीकृष्ण की आरती की जाती है। मंचित होने वाले प्रसंगों की जानकारी दी जाती है। दुर्वासा ऋषि द्वारा कुंती को वरदान देना, कर्ण का जन्म, राजा पांडु और कुंती का विवाह प्रसंग को मंचित किया गया।

रुद्रप्रयाग के क्यूड़ी गांव में पांडव लीला मंचन के सूत्रधार ने अपनी बातों से ग्रामीणों को खूब ठहाके लगवाए। फोटो- सक्षम पांडेय

पांडव लीला का मंचन युवाओं और बच्चों द्वारा किया गया। बहुत सरल संवाद में पांडव लीला को जन-जन तक पहुंचाने का प्रयास किया गया, जो काफी हद तक सफल रहा। सांस्कृतिक प्रस्तुति में बच्चों ने उत्साह से भागीदारी की।

रुद्रप्रयाग के क्यूड़ी गांव में पांडव लीला मंचन के दौरान बच्चों ने सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए। फोटो- सक्षम पांडेय

ग्रामीणों में इस आयोजन को लेकर पूरा उत्साह है। वो वर्षों से चली आ रही उस सांस्कृतिक एवं धार्मिक परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए दिन-रात जागकर परिश्रम कर रहे हैं, जो बुजुर्गों से हासिल हुई है।

रुद्रप्रयाग के क्यूड़ी गांव में पांडव लीला का शुभारंभ भगवान श्रीकृष्ण की आरती से हुआ। फोटो- सक्षम पांडेय

हम इस तरह पहुंचे क्यूड़ी गांव

खड़पतिया से क्यूड़ी गांव तक बाइक से जाने के लिए लंबा रास्ता तय करना पड़ता, जो सर्दियों में हमारे लिए संभव नहीं था। हमने पैदल ही गांव तक पहुंचने का निर्णय लिया। रात में, कहीं कच्चा और कहीं सीढ़ियों वाले पैदल रास्ते पर चलना जोखिम उठाना था, जो लगभग दो किमी. का है।

यह रास्ता, पोखरी रोड से क्यूड़ी गांव तक सीधा ढलान वाला है। टॉर्च और मोबाइल फोन की लाइट के सहारे हम आगे बढ़ रहे थे। मैं और मेरा बेटा सक्षम, पांडव लीला मंचन और पांडव नृत्य देखने के लिए काफी उत्सुक थे, क्योंकि हम पहली बार इस आयोजन में शामिल होने जा रहे थे। हालांकि, मैंने बचपन में श्री रामलीला खूब देखी, लेकिन पांडव लीला पहली बार। हम फलासी गांव के दीपक सिंह भंडारी और संसारी से आए हिकमत सिंह रावत, खड़पतिया के दिनेश सिंह के साथ गांव जा रहे थे।

गांव की ओर जाते समय हमें ज्यादा थकावट नहीं हुई, क्योंकि हम ढलान पर थे। आपको एक बात का ध्यान रखना था, वो था संभलकर आगे बढ़ने का, क्योंकि यहां फिसलने का खतरा बना था। खड़पतिया गांव के दिनेश सिंह बताते हैं, “वो इस रास्ते पर रात को कई बार अकेले चले हैं। यहां भालू का खतरा रहता है। भालु यहां म्यूली (एक प्रकार का जंगली फल) खाने के लिए आते हैं।” हालांकि आते और जाते समय हमारा भालू से सामना नहीं हुआ। वापस लौटते हुए चढ़ाई की वजह से मैं काफी थक गया था। तेजी से सांस लेनी पड़ रही थी। आखिर, हम पहुंच गए, अपने ठिकाने पर।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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