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ब्लैक फंगसः कम प्रतिरोधक क्षमता, मधुमेह से पीड़ित लोगों में ज्यादा देखने को मिलती है

पत्र सूचना कार्यालय (पीआईबी) की ओर से ‘म्यूकोरमाइकोसिस और दंत स्वास्थ्य का कोविड-19 से संबंध’ पर वेबिनार में गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट डॉ. राजीव जयादेवन ने कहा, हमें कोविड-19 के कुछ मरीजों में म्यूकोरमाइकोसिस (ब्लैक फंगस) के मामले देखने को मिल रहे हैं। वेबिनार की दूसरी पेनलिस्ट विशेषज्ञ डॉ. नीता राणा थीं। वेबिनार में डॉक्टरों से मिली सलाह और जानकारी बिंदुवार तरीके से इस प्रकार है- 
किन वजहों से लोगों को म्यूकोरमाइकोसिस होता है?
कोविड-19 मरीजों को म्यूकोरमाइकोसिस होने का खतरा बढ़ता है। डॉ. जयादेवन ने बताया, “कोविड-19 के मरीजों का मधुमेह से पीड़ित होना और स्टेरॉयड का इस्तेमाल, तिहरी प्रतिरक्षा को नुकसान पहुंचाने वाला संयोजन है।
कोविड-19 प्रतिरक्षा तंत्र के साथ ही हमारे शरीर के कई भागों को प्रभावित करता है।” मधुमेह और म्यूकोरमाइकोसिस के बीच एक संबंध बताते हुए डॉक्टर ने कहा, “हमारे देश में कई लोग मधुमेह से पीड़ित हैं। इसे और हमारी आबादी को देखते हुए, यहां बीमार होने वाले लोगों की संख्या किसी अन्य देश की तुलना में ज्यादा है। इसलिए, यह समझा जा सकता है कि उनमें से कुछ लोगों को म्यूकोरमाइकोसिस होगा।”

डॉ. जयादेवन, जिन्होंने महामारी के दौरान डॉक्टरों, नीति निर्माताओं और आम जनता के लिए कई लेख लिखे हैं, की राय है, “हम देखते हैं कि बड़ी संख्या में कोविड-19 से प्रभावित लोगों का मामूली अनुपात म्यूकोरमाइकोसिस से प्रभावित हो रहे हैं, इसलिए यह अनुपात एक बड़ी संख्या हो जाता है।”
डॉक्टर ने बताया, “म्यूकोरमाइकोसिस के मामले कम प्रतिरोधकता वाले लोगों, मुख्य रूप से मधुमेह के कारण या कुछ अंग प्रत्यारोपण के बाद देखने को मिल रहे हैं।
पिछले एक या दो महीने में, इन स्थितियों के बिना म्यूकोरमाइकोसिस में बढ़ोतरी देखी है। यह एक नया घटनाक्रम है। लेकिन पारम्परिक जोखिम वाले फैक्टरों के बिना मामलों में बढ़ोतरी की वजहों की पुष्टि के लिए अध्ययन की जरूरत है।”
मधुमेह और म्यूकोरमाइकोसिस
डॉ. जयादेवन कहते हैं, “मधुमेह के मरीजों के लिए, शुगर की रक्त शर्करा नियंत्रित नहीं हो सकती है, तो प्रतिरोधक क्षमता ठीक से काम करने में सक्षम नहीं होती है। गंभीर मधुमेह के मामलों में, न्यूट्रोफिल्स जैसे रोगाणुओं से लड़ने वाली कोशिकाएं काम करना बंद कर देती हैं। इन कारणों से म्यूकोरमाइकोसिस हो जाता है।
शुगर का ऊंचा स्तर खुद ही फंगस के विकास के अनुकूल है। फंगस शुगर को पसंद करता है, यह जिंक जैसे ट्रेस मेटल्स को पसंद करता है, इसका मृत ऊतकों पर भी विकास होता है और शरीर के मृत ऊतकों की मरम्मत करने तक, उन पर फंगस बढ़ सकता है।”
गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट ने लोगों के फायदे के लिए सामान्य शब्दों में बताया, अगले चरण में, “फंगस हमारी रक्त कोशिकाओं में प्रवेश कर जाता है, हमारे ऊतकों को ऑक्सीजन की आपूर्ति नहीं होती है और वे मर जाते हैं, और जब ऊतक मर जाते हैं तो उनका रंग काला हो जाता है। यही वजह है कि म्यूकोरमाइकोसिस के लिए ब्लैक फंगस नाम का इस्तेमाल किया जाता है।”
दंत स्वास्थ्य और म्यूकोरमाइकोसिस
दंत विशेषज्ञ डॉ. नीता राणा ने बताया, “दांतों के अच्छे स्वास्थ्य और कोविड-19 संक्रमण के बीच निश्चित रूप से एक संबंध है। जब दांत, मसूड़े और पैलेट का ठीक से ध्यान रखा जाता है, तो स्वाभाविक रूप पहले से मौजूद सूक्ष्म जीव अच्छी तरह काम करेंगे और वायरस संक्रमण होने की संभावना कम रहती है।
यदि दांत टूटने के बाद हुए घाव का ठीक से ध्यान नहीं रखा जाता है, यदि मुंह की सफाई नहीं होती है, तो म्यूकोरमाइकोसिस होने की आशंकाएं बढ़ जाती हैं।”
डॉ. नीता ने सलाह दी कि दांतों को ब्रश करने, फ्लॉसिंग, मुंह धोने और कुल्ला करने से भी दांतों का स्वास्थ्य अच्छा बनाए रखने में सहायता मिलेगी।
टीकाकरण और म्यूकोरमाइकोसिस
डॉ. जयादेवन कहते हैं, “यदि टीकाकरण के बाद आपको कोविड-19 हो जाता है तो यह अधिकांश मामलों में हल्का होगा।” डॉक्टर आगे सलाह देती हैं कि कोविड के हल्के मामलों में दवाइयां जरूरी नहीं हैं।
डॉक्टर कहती हैं कि इसी वजह से कोविड-19 के मामूली मामलों में, स्टेरॉयड से संबंधित म्यूकोरमाइकोसिस होने की आशंका कम होगी। वह आगाह करते हैं, “लेकिन यदि हल्के कोविड मामले में व्यक्ति उपचार कराने के बजाय खुद ही इलाज शुरू कर देता है, ऐसी दवाइयां लेता है जिनकी जरूरत न हो, तो उसे फंगल संक्रमण हो सकता है जो उसे पहले कभी नहीं हुआ था।”
कोविड के बाद स्थितियां और म्यूकोरमाइकोसिस
डॉ. जयादेवन कहते हैं, “प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने और कोविड-19 उपचार के प्रभाव कुछ समय के लिए शरीर में रहेंगे, जैसे हम नदी से एक बोट के गुजरने के काफी समय बाद लहरों के रूप में देखते हैं।”
इसलिए, उनकी सलाह है कि ‘ठीक होने के कुछ हफ्ते बाद तक सावधान रहें और अपने शरीर के साथ कुछ भी साहसिक या प्रयोग जैसा न करें।’
प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने से मरीजों में म्यूकोरमाइकोसिस का खतरा बढ़ने के संबंध में डॉ. जयादेवन बताते हैं, “कई अध्ययनों ने बताया है कि हमारे शरीर में रहने वाले अच्छे स्वस्थ बैक्टीरिया,  प्रवेश करने वाले खराब बैक्टीरिया से शरीर की रक्षा करते हैं।
इसलिए, लंबे समय तक और अनावश्यक रूप से एंटीबायोटिक्स के इस्तेमाल से फंगल और बैक्टीरियल संक्रमणों का खतरा बढ़ता है।”
इस संदर्भ में, डॉ. जयादेवन कहते हैं कि हमारे देश में ज्यादातर लोग अलग तरह के स्व-उपचार से जुड़े हैं। डॉक्टर इस प्रक्रिया को सख्ती से हतोत्साहित करते हैं। इस संबंध में उनकी सलाह है, “आप जिस डॉक्टर से संपर्क में हैं, उसी के निर्देशों का पालन करें और अनावश्यक दवाइयों से दूर रहें।”
क्या म्यूकोरमाइकोसिस संक्रमण आसपास के वातावरण से आता है?
डॉ. जयादेवन कहते हैं, “फंगस हमारे चारों तरफ है। फंगल संक्रमण होने के डर से बाहर निकलने से बचने की जरूरत नहीं है।
फंगस सदियों से अस्तित्व में है और म्यूकोरमाइकोसिस एक दुर्लभ संक्रमण है, जो कुछ ही मामलों में होता है।”
महामारी के दौर में दांतों की देखभाल
डॉ. नीता सलाह देती हैं, “अपने दांतों के डॉक्टर से संपर्क में रहें, टेली कंसल्टेशन से कई मामलों में मदद मिलेगी।
यदि डेंटल क्लीनिकों में दिशानिर्देशों का पालन किया जाता है तो कोई संक्रमण होने का डर नहीं होना चाहिए, लेकिन अति उत्साही न बनें। डेंटल क्लीनिक जाने को लेकर अपने डॉक्टर की सलाह का पालन करें।”
वैक्सीन कितने समय तक कोविड-19 से सुरक्षा दे सकती हैं?
डॉ. जयादेवन कहते हैं, “जब हमें बार-बार संक्रमण होता है या टीकाकरण के बाद संक्रमण होता है, तो पिछले संक्रमण में प्रवेश करने वाली स्मृति कोशिकाएं तत्काल सक्रिय हो जाएंगी। अध्ययनों से पता चलता है कि स्मृति कोशिकाएं कम से कम एक साल तक बनी रहती हैं।”
वैक्सीन की कार्यप्रणाली के बारे में डॉक्टर ने कहा, “’टीके मुख्य रूप से संक्रमित होने पर गंभीर बीमारी या मृत्यु से रक्षा करते हैं; बड़ी संख्या में वैज्ञानिकों का मानना है कि टीकाकरण से प्रतिरोधकता लंबे समय तक बनी रहती है, संभावित रूप से कई साल तक यह हमारी रक्षा करती है।”
कोविड-19 के संपर्क में आने वालों को सलाह
डॉ. जयादेवन कहते हैं, “इसे कभी हल्के में न लें। परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है। लेकिन, 5-6 दिन के बाद, यदि आपके लक्षण बिगड़ रहे हैं, यदि आपको थकान हो रही है, सांस लेने में समस्या हो रही है, खाना मुश्किल हो रहा है, सीने में दर्द या अच्छा महसूस नहीं हो रहा है, तो अस्पताल जाइए और डॉक्टर से सलाह लीजिए। आप डॉक्टर से फोन पर भी सलाह ले सकते हैं।”- साभार- पीआईबी

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Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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