आमा
एक पुरानी अन्तरदेशी(चिट्ठी) पढ़ी तो
चेहरे की झुर्रियां,चमकती आखें
चिन्तायें व अनुभवी किस्से कहानियों
रीति रिवाजों में दबी किन्तु खुश
आज आमा यादआयी ।
सानी निमू, रैत और पीसी नूण
राति(सुबह)बटीब्याव (सांझ)तक
झोढे,शगुन आखर,बण गीत गाती
मालूसाही,गोरिलराजा को गुनगुनाती
आज आमा याद आयी ।
साज,शगुर,तौर तरीके बताती
मानमनौवल, तो कभी झिड़कती
कौवे,पितरो को भोग लगाती
त्यौहार,बिखोती के दिनबार,पंचांग परखती
आज आमा याद आयी ।
धोती लपेट जब भात बनाती
मैत की थाती ससुराल की बाती
बखत पर मिट्टी का चूल्हा लिपती
भिनेर (आग) में नजर की राई मंतरती (पूजती)
आज आमा याद आयी।
देहरी में ऐपण की रेखाओं सेेे कहीं
चित्र उकेरती, जीवन उभारती
स्वैणों (सपनों) शगुनों के सच होने की
राह देखती, बाट जोहती फिर आज आमा याद आयी।
दयैब्तों (देवता) पर भेंट,उच्यांण (मनौती) देती
एकबाटुयी (हिचकी)पर सबको याद करती
जागरी में सबके घर आने पर
बार-बार पुरखों का प्रताप मान हाथ जोड़ती
आज आमा याद आयी ।
नीलम पाण्डेय “नील”
देहरादून
मूल- रानीखेत, जिला अल्मोड़ा
अर्थ: सानीनिमू ,रैत और पीसी नूण (स्थानीय चाट)
झोढे, शगुन आखर, बणगीत गाती ( स्थानीय गीत)
नजर की राई मन्तरती (पूजती या नजर उतारना)
ऐपण ( पारम्परिकचित्रकारी )