Creativity

आमा

नीलम पाण्डेय “नील”

एक पुरानी अन्तरदेशी(चिट्ठी) पढ़ी तो
चेहरे की झुर्रियां,चमकती आखें
चिन्तायें व अनुभवी किस्से कहानियों
रीति रिवाजों में दबी किन्तु खुश
आज आमा यादआयी ।

सानी निमू, रैत और पीसी नूण
राति(सुबह)बटीब्याव (सांझ)तक
झोढे,शगुन आखर,बण गीत गाती
मालूसाही,गोरिलराजा को गुनगुनाती
आज आमा याद आयी ।

साज,शगुर,तौर तरीके बताती
मानमनौवल, तो कभी झिड़कती
कौवे,पितरो को भोग लगाती
त्यौहार,बिखोती के दिनबार,पंचांग परखती
आज आमा याद आयी ।

धोती लपेट जब भात बनाती
मैत की थाती ससुराल की बाती
बखत पर मिट्टी का चूल्हा लिपती
भिनेर (आग) में नजर की राई मंतरती (पूजती)
आज आमा याद आयी।

देहरी में ऐपण की रेखाओं सेेे कहीं
चित्र उकेरती, जीवन उभारती
स्वैणों (सपनों) शगुनों के सच होने की
राह देखती, बाट जोहती फिर                                                                                                                   आज आमा  याद आयी।

दयैब्तों (देवता) पर भेंट,उच्यांण (मनौती) देती
एकबाटुयी (हिचकी)पर सबको याद करती
जागरी में सबके घर आने पर
बार-बार पुरखों का प्रताप मान हाथ जोड़ती
आज आमा याद आयी ।

नीलम पाण्डेय “नील”
देहरादून
मूल- रानीखेत, जिला अल्मोड़ा 

अर्थ: सानीनिमू ,रैत और पीसी नूण (स्थानीय चाट)
झोढे, शगुन आखर, बणगीत गाती ( स्थानीय गीत)
नजर की राई मन्तरती (पूजती या नजर उतारना)
ऐपण ( पारम्परिकचित्रकारी )

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Rajesh Pandey

उत्तराखंड के देहरादून जिला अंतर्गत डोईवाला नगर पालिका का रहने वाला हूं। 1996 से पत्रकारिता का छात्र हूं। हर दिन कुछ नया सीखने की कोशिश आज भी जारी है। लगभग 20 साल हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर मानव भारती संस्था में सेवाएं शुरू कीं, जहां बच्चों के बीच काम करने का अवसर मिला। संस्था के सचिव डॉ. हिमांशु शेखर जी ने पर्यावरण तथा अपने आसपास होने वाली घटनाओं को सरल भाषा में कहानियों के माध्यम से प्रस्तुत करने के लिए प्रेरित किया। बच्चों सहित हर आयु वर्ग के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। स्कूलों एवं संस्थाओं के माध्यम से बच्चों के बीच जाकर उनको कहानियां सुनाने का सिलसिला आज भी जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। रुद्रप्रयाग के खड़पतियाखाल स्थित मानव भारती संस्था की पहल सामुदायिक रेडियो ‘रेडियो केदार’ के लिए काम करने के दौरान पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया। सामुदायिक जुड़ाव के लिए गांवों में जाकर लोगों से संवाद करना, विभिन्न मुद्दों पर उनको जागरूक करना, कुछ अपनी कहना और बहुत सारी बातें उनकी सुनना अच्छा लगता है। ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम के स्वच्छता का संदेश देने की पहल की। छह माह ढालवाला, जिला टिहरी गढ़वाल स्थित रेडियो ऋषिकेश में सेवाएं प्रदान कीं। जब भी समय मिलता है, अपने मित्र मोहित उनियाल व गजेंद्र रमोला के साथ पहाड़ के गांवों की यात्राएं करता हूं। ‘डुगडुगी’ नाम से एक पहल के जरिये, हम पहाड़ के विपरीत परिस्थितियों वाले गांवों की, खासकर महिलाओं के अथक परिश्रम की कहानियां सुनाना चाहते हैं। वर्तमान में, गांवों की आर्थिकी में खेतीबाड़ी और पशुपालन के योगदान को समझना चाहते हैं। बदलते मौसम और जंगली जीवों के हमलों से सूनी पड़ी खेती, संसाधनों के अभाव में खाली होते गांवों की पीड़ा को सामने लाने चाहते हैं। मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए ‘डुगडुगी’ नाम से प्रतिदिन डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे। यह स्कूल फिलहाल संचालित नहीं हो रहा है। इसे फिर से शुरू करेंगे, ऐसी उम्मीद है। बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी वर्तमान में मानव भारती संस्था, देहरादून में सेवारत संपर्क कर सकते हैं: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला जिला- देहरादून, उत्तराखंड-248140 राजेश पांडेय Email: rajeshpandeydw@gmail.com Phone: +91 9760097344

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