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केदारनाथ धाम यात्राः यात्रियों की सुविधा के लिए साढे़ आठ हजार से ज्यादा घोड़े खच्चर, 2200 डंडी कंडी वाले

केदारनाथ धाम में यात्रियों को ले जा रहे घोड़ा खच्चरों का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य, फिलहाल बंद हैं रजिस्ट्रेशन

रुद्रप्रयाग। श्री केदारनाथ धाम यात्रा को सुव्यवस्थित ढंग से संचालित कराने के लिए सोनप्रयाग से चल रहे घोड़े-खच्चरों व उनके स्वामियों तथा हाॅकर्स का अनिवार्य रूप से रजिस्ट्रेशन होने के निर्देश जिलाधिकारी मयूर दीक्षित ने अपर मुख्य अधिकारी जिला पंचायत को दिए हैं। वहीं, अपर मुख्य अधिकारी जिला पंचायत राजेश कुमार ने बताया, अग्रिम आदेशों तक वर्तमान में घोड़ा-खच्चरों का रजिस्ट्रेशन बंद किया गया है। वर्तमान में 8516 घोड़े-खच्चरों, 2200 डंडी-कंडी तथा 500 घोड़ा-खच्चर हाॅकर्स का रजिस्ट्रेशन किया गया है।

जिलाधिकारी का कहना है, यात्रा मार्ग में संचालित हो रहे घोड़े-खच्चरों से जाम की स्थिति एवं अव्यवस्था की शिकायतें प्राप्त हो रही हैं, जिस पर नियंत्रण किया जाना जरूरी है। इसके लिए उन्होंने अपर मुख्य अधिकारी जिला पंचायत को निर्देश दिए हैं कि जो भी घोड़ा-खच्चर यात्रा मार्ग में संचालित हो रहे हैं, उनका तथा उनके हाॅकर्स का रजिस्ट्रेशन किया जाना जरूरी है।

उन्होंने यह भी निर्देश दिए हैं कि प्रत्येक घोड़ा-खच्चर के साथ हाॅकर का होना जरूरी है, यदि किसी घोड़े-खच्चर स्वामी द्वारा बिना हाॅकर के घोड़े-खच्चरों का संचालन किया जाना पकड़ा जाता है तो उसका तत्काल चालान सुनिश्चित किया जाए।

वहीं, अपर मुख्य अधिकारी जिला पंचायत राजेश कुमार ने बताया,  जिलाधिकारी यात्रा मार्ग पर तैनात सेक्टर अधिकारियों एवं संबंधित अधिकारियों को इस संबंध में निगरानी रखते हुए आवश्यक कार्यवाही के निर्देश दिए गए हैं। यदि कोई बिना हाॅकर एवं बिना रजिस्ट्रेशन के घोड़ा-खच्चर का संचालन करना पाया जाता है तो उनका चालान कराने के निर्देश दिए गए हैं।

 

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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