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महाराष्ट्र के युवा किसान ने अपने इनोवेशन से दिल जीत लिया

शार्क टैंक इंडिया के मंच पर लेंस कार्ट के सीईओ ने की शानदार पेशकश

कमलेश – जुगाड़ू किसान ने शार्क टैंक इंडिया के मंच पर प्रवेश किया और अपने अपने नवाचार कौशल के साथ जजेज को प्रभावित किया। महाराष्ट्र के मालेगांव के रहने वाले कमलेश पेशे से किसान हैं। उन्हें उन नई मशीनों का अविष्कार करना पसंद है, जो किसानों के जीवन को आसान बना सकती हैं।

कमलेश अपना एक अविष्कार शार्क टैंक इंडिया के मंच पर लेकर पहुंचे और अपनी कंपनी के 10 फीसदी शेयर के बदले में 30 लाख रुपये की मांग की। वो कहते हैं, ‘आवश्यकता सभी आविष्कारों की जननी है’, अपने पिता की दिक्कतों को देखकर उन्हें एक बहुउद्देशीय साइकिल बनाने का आइडिया मिला। इस साइकिल को कीटनाशक छिड़काव करने,  बीज बोने और कृषि का सामान ढो सकते हैं।

उन्होंने इस साइकिल के लिए कच्चा माल एक स्थानीय स्क्रैप डीलर से मंगवाया था। इस साइकिल को बनाने में सात साल की मेहनत लगी। आश्चर्यजनक बात यह है कि उन्होंने कभी कोई औपचारिक शिक्षा नहीं ली है।

इस साइकिल को 8000 रुपये की लागत से बनाया गया है और कमलेश ने इसे 12000 रुपये में रिटेल करने की योजना बनाई है।हालांकि सभी जज उनकी बुद्धिमत्ता और कभी हार न मानने के हौसले से प्रभावित दिखे। लेंसकार्ट (Lenskart) के सीईओ और संस्थापक पीयूष बंसल (Pyush Bansal)  ने उन्हें 40 फीसदी इक्विटी के लिए ₹10 लाख और ₹20 लाख का कर्ज देने की पेशकश की। कमलेश इस प्रस्ताव को स्वीकार करके बहुत खुश हुए और कहा कि इससे उन्हें अपना ब्रांड “के जी एग्रोटेक” विकसित करने में मदद मिलेगी।

शार्क टैंक इंडिया (Shark Tank India) भारत का पहला व्यावसायिक रियलिटी शो है, जो सभी स्टार्टअप और भारत में व्यावसायिक उद्यम को आगे बढ़ाने में सहयोग करता है। यह कॉन्सेप्ट इसी नाम के एक अमेरिकी शो पर आधारित है और इसे सोनी टीवी पर सोमवार से शुक्रवार रात 9 बजे प्रसारित किया जाता है।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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