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क्या हरक सिंह ने माफी मांग ली या हरीश रावत हार गए

हरक सिंह रावत के कांग्रेस में शामिल होने से उठा सवाल

देहरादून। उत्तराखंड की सियासत में कब क्या हो जाए, कुछ नहीं कहा जा सकता। कुछ दिन पहले रातभर कैबिनेट मंत्री पद से इस्तीफे की खबरें चलती रहीं और फिर सुबह हरक सिंह रावत और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की एक टेबल पर चाय पर चर्चा होती दिखी। हालांकि तब भी यही माना जा रहा था कि चुनाव से पहले हरक सिंह रावत की कांग्रेस में वापसी होगी। अब हरक सिंह रावत कांग्रेस में शामिल हो गए हैं, वो भी बिना माफी मांगे हुए। अब सवाल उठ रहा है कि क्या हरक सिंह मामले में हरीश रावत हार गए हैं। वहीं, माना जा रहा है कि पिछले दिनों सियासत गरमाने वाला हरीश रावत का ट्वीट भी हरक सिंह की घर वापसी को लेकर ही था, यह अब पुख्ता हो गया है।

छह दिन से हरक सिंह रावत कांग्रेस में ज्वाइनिंग के लिए जोर लगा रहे थे। कहा जा रहा था कि 2016 के राजनीतिक घटनाक्रम को लेकर हरीश रावत की नाराजगी की वजह से उनको वापस नहीं लिया जा रहा था। पर, अब हरक सिंह कांग्रेस में आ गए हैं, इससे साफ होता है कि पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत अपनी ही कांग्रेस में हार गए हैं, क्योंकि उन्होंने ही हरक सिंह की कांग्रेस में वापसी का सार्वजनिक रूप से विरोध किया था। हरीश रावत और हरक सिंह के बीच जुबानी जंग सुर्खियां बनी थींं और उन दिनों सियासत की सबसे बड़ी खबरें यही होती थीं।

यशपाल आर्य की घर वापसी और कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत के बयानों के बाद, पूर्व सीएम रावत ने साफ-साफ कह दिया था कि कांग्रेस में शामिल होने से पहले, उन सभी को अपने पापों का प्रायश्चित करना होगा, जो उनकी सरकार को संकट में डालने में शामिल रहे। इसके बाद हरीश रावत और हरक सिंह के बीच जुबानी जंग सार्वजनिक होती रहीं।

बाद में, पूर्व सीएम हरीश रावत ने सियासत गरमाने वाला एक ट्वीट किया, इसकी वजह जहां टिकटों का बंटवारा माना जा रहा था, वहीं यह भी कहा जा रहा था कि हरीश रावत कुछ नेताओं की कांग्रेस में एंट्री के पक्ष में नहीं हैं। जबकि नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह, कांग्रेस प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव चाह रहे थे कि हरक सिंह कांग्रेस में शामिल हों। इसी बात को लेकर कांग्रेस में घमासान मचा था।

हरक सिंह रावत की कांग्रेस में वापसी से साफ है कि हरीश रावत अपनी ही कांग्रेस में हार गए हैं, क्योंकि न तो हरक सिंह ने उनके कहे अनुसार किसी से माफी मांगी है और न ही रावत उनको कांग्रेस में वापस आने से रोक पाए।

 

 

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राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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