education

सामाजिक और आर्थिक विकास से है साक्षरता का नाता

साक्षरता का अर्थ है पढऩे लिखने की योग्यता। दूसरे संसाधनों की तरह साक्षरता भी आज हमारे जीवन की सबसे बड़ी जरूरतों में से एक मानी जाती है। साक्षरता सिर्फ हमारे खुद के विकास तक सीमित नहीं है इसका गहरा सम्बन्ध सामाजिक और आर्थिक विकास से भी है। साक्षरता का महत्व है इसी बात से समझा सकता है कि जिस प्रकार इंसान को जीने के लिए प्राण वायु की आवश्यकता है उसी प्रकार जीवन यापन के लिए शिक्षित होना बहुत जरूरी है।

सोचिये,यदि आप शिक्षित नहीं है तो आपको यह एहसास हो जायेगा कि ”आप कितने ऐसे काम है जो नहीं कर पाएंगे।” घर के छोटे मोटे काम करने से लेकर कही बाहर जाने तक हमारा शिक्षित होना बहुत आवश्यक है। जीवन यापन के साथ साथ स्वयं के बौद्धिक विकास के लिए भी पूर्ण रूप से शिक्षित होना जरूरी है। आज भी कई लोग ऐसे है जो खुद अशिक्षित होते हुए भी अपने बच्चों को भी शिक्षित नहीं कर रहे हैं।

जरा सोचिये,भविष्य में उनको जीवन यापन करने में कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। सरकार द्वारा मुफ़्त मुफ्त में शिक्षा देने जैसी योजनाएं चलाए जाने के बावजूद न जाने क्यों ये लोग बच्चों की शिक्षा पर ध्यान नहीं दे रहे हैं।शिक्षित समाज से सुदृढ़ राष्ट्र का निर्माण होता है। आज अंतराष्ट्रीय साक्षरता दिवस के सुअवसर पर लोगों को जागरूक करने की नितांत आवश्यकता महसूस की जा रही है।

राजेंद्र प्रसाद अग्रवाल, वरिष्ठ शिक्षक

आज भी भारत में पुरुषों के मुकाबले महिला साक्षरता दर काफी कम है जो राष्ट्र के लिए एक दुखद और विचारणीय विषय है । आज विश्व में जहाँ महिलाऐं हर वह काम करने में सक्षम हैं जो पुरुष कर सकते हैं ।इसके बावजूद हमारे यहाँ महिला साक्षरता दर काफी कम है और इसके पीछे प्रमुख कारण यह है कि कई माता-पिता लड़कियों को स्कूल भेजने की अनुमति नहीं देते और उन्हें घर बैठा लेते हैं। बदलते हुए परिवेश में यह सोच बदलने की जरुरत है ताकि महिलाऐं भी शिक्षित बनें और समाज और देश का विकास हो ।

 

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button