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कहां से आए अक्षर, इनको किसने बनाया

देवनागरी और प्राकृत दोनों लिपियों की पूर्वज ब्राह्मी लिपि को माना जाता है

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कई बार मन में यह सवाल उठता है, जिन अक्षरों को हम पढ़ते हैं और जिनको जोड़कर वाक्य बनाकर बातें करते हैं, ये कहां से आए। क्या यह उस संस्कृत भाषा से आए हैं, जिसमें ऋषि-मुनियों और देवताओं ने वार्तालाप किया और वेदों सहित कई महान ग्रंथों की रचना की। महान धार्मिक ग्रंथ, श्रीमद्भगवद्गीता और रामायण भी संस्कृत में रचित हैं।  पर, जब हम लिपियों के इतिहास को देखते हैं, तो यह तथ्य सामने आता है, हिन्दी को देवनागरी लिपि में लिखा जाता है और देवनागरी का उद्गम ब्राह्मी लिपि है। देवनागरी और प्राकृत दोनों लिपियों की पूर्वज ब्राह्मी लिपि को माना जाता है। हिंदी अक्षरों या वर्णमाला का इतिहास चौथी शताब्दी ईसा पूर्व का है, उस समय ब्राह्मी लिपि का उपयोग प्राकृत भाषा लिखने के लिए किया जाता था। प्राकृत भाषा को हिंदी का पूर्वज माना जाता है।

देवनागरी, भारत की सांस्कृतिक विरासत का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह धार्मिक तथा साहित्यिक परंपराओं से जुड़ी है। माना जाता है कि देवनागरी लिपि की उत्पत्ति प्राचीन भारत में 7वीं शताब्दी ईस्वी के आसपास हुई थी, जबकि ब्राह्मी लिपि का उपयोग भारत में तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से किया जा रहा था। देवनागरी लिपि में समय- समय पर विभिन्न संशोधन किए गए। प्राचीन देवनागरी शिलालेख 11वीं शताब्दी ईस्वी पूर्व के हैं।

पर, इस बीच एक सवाल उठता है, जब संस्कृत में रचित वेद दुनिया के सबसे प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में से एक हैं तो संस्कृत को ही देवनागरी का उद्गम क्यों नहीं माना जाता, क्योंकि देवनागरी लिपि में प्रयुक्त अक्षर संस्कृत के अक्षरों के समान ही हैं। इनका उच्चारण भी लगभग एक समान होता है, जो संस्कृत, देवनागरी और वेदों के बीच स्पष्ट संबंध को दर्शाता है।  इस प्रमाण के बाद भी, देवनागरी की उत्पत्ति ब्राह्मी लिपि से ही क्यों मानी जाती है।

हालांकि, यह भी कहा जाता है, ब्राह्मी लिपि की उत्पत्ति निश्चित रूप से ज्ञात नहीं है, लेकिन यह माना जाता है कि यह तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के आसपास प्राचीन भारत में विकसित हुई थी। लिपि को किसने विकसित किया, इसके बारे में कई सिद्धांत हैं, लेकिन विद्वानों के बीच कोई स्पष्ट सहमति नहीं है।

कुछ विद्वानों का मानना है कि ब्राह्मी लिपि का विकास मौर्य सम्राट अशोक ने किया था, जो अपने शिलालेखों के लिए जाने जाते हैं, जिन्हें इस लिपि में अंकित किया गया था। अन्य का कहना है, लिपि का विकास विद्वानों के एक समूह ने किया था, जो बोली जाने वाली भाषा को लिखने के लिए अधिक कुशल तरीका तलाश रहे थे।

हालांकि, यह भी माना जाता है, देवनागरी लिपि का मानकीकरण और परिशोधन समय के साथ होता रहा और इसमें कई सदियों से लिपि व भाषा विद्वानों और कवियों का योगदान था। वर्तमान स्वरूप को लेने से पहले लिपि में कई बदलाव और संशोधन हुए, जिसका उपयोग हिंदी, मराठी और संस्कृत सहित कई आधुनिक भारतीय भाषाओं को लिखने के लिए किया जा रहा है।

कुल मिलाकर, देवनागरी लिपि का आविष्कार किसी एक व्यक्ति का काम नहीं था, बल्कि यह विकास और शोधन की एक लंबी प्रक्रिया का परिणाम है।

हाल के दिनों में देवनागरी लिपि में भी डिजिटल परिवर्तन आया है। कंप्यूटर और मोबाइल उपकरणों के बढ़ते उपयोग के साथ, देवनागरी के लिए डिजिटल फॉन्ट और कीबोर्ड व्यापक रूप से उपलब्ध हो गए हैं, जिससे लोगों के लिए विभिन्न एप्लीकेशन में स्क्रिप्ट का उपयोग आसान हो गया है।

वर्तमान में, हिंदी 50 करोड़ से अधिक बोलने वालों के साथ दुनिया में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है। हिंदी वर्णमाला या वर्णमाला, भाषा का एक अनिवार्य हिस्सा बनी हुई है और बच्चों को स्कूलों में पढ़ाया जाता है और साहित्य, मीडिया और संचार के अन्य रूपों में उपयोग किया जाता है।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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