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उत्तराखंड: पूर्व मुख्यमंत्रियों के लिए हरीश रावत का यह सुझाव

मेरा हश्र देखने के बाद शायद ही कोई मुख्यमंत्री रहा व्यक्ति फिर से चुनाव लड़ने की हिम्मत करेगा: रावत

देहरादून। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने उत्तराखंड में पूर्व मुख्यमंत्रियों को एक सुझाव दिया है। उनका मानना है कि इससे राज्य की समसामयिक चुनौतियों से निपटा जा सकता है।

एक सोशल मीडिया पोस्ट में रावत ने कहा, राज्य में पूर्व मुख्यमंत्री बढ़ते जा रहे हैं। ये तो Pushkar Singh Dhami हमारे क्लब में आते-आते बचे। भाजपा ने साहस पूर्ण निर्णय लिया।

उन्होंने लिखा है, विधानसभा का चुनाव जो समझदार हैं वो लड़ नहीं रहे हैं, जो हम जैसे लोग हैं वो लड़ रहे हैं तो हार जा रहे हैं। राज्य हम पर खर्च भी कर रहा है‌। राज्य ने जो अनुभव हमको दिया, उस अनुभव का कुछ प्रभावी प्रतिदान देने की स्थिति में अपने को नहीं बना पा रहे हैं।

रावत ने कहा, मेरा हश्र देखने के बाद शायद ही कोई मुख्यमंत्री रहा व्यक्ति फिर से चुनाव लड़ने की हिम्मत करेगा! तो कैसे राज्य के पास उपलब्ध इन अनुभवों का उपयोग किया जा सके, यह एक बड़ा सवाल है।

वो कहते हैं, मैं अपने कुछ एक्स साथियों से बात करूंगा, क्यों नहीं, हम लोग एक अनौपचारिक एक्स चीफ मिनिस्टर क्लब जैसा बना लें, जिसमें हर महीने कहीं बैठकर के राज्य के सामने जो समसामयिक चुनौतियां हैं, उस पर आपस में बातचीत करें और कोई सुझाव हमारा निकल आए तो उस सुझाव को सार्वजनिक करें।

हरीश रावत का कहना है, देखते हैं, सारे एक्स तो भाजपा के पास हैं तो यदि वो हिम्मत करें, तो मैं इस प्रस्ताव को सार्वजनिक भी कर रहा हूं और व्यक्तिगत तौर पर भी उनसे बातचीत करके प्रस्ताव को विधिवत रखूंगा।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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