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जनगणना के फार्म में मातृभाषा गढ़वाली, कुमाऊंनी व जौनसारी दर्ज करेंः नरेंद्र सिंह नेगी

उत्तरांचल प्रेस क्लब की ओर से आयोजित संवाद कार्यक्रम में लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी ने कही यह बात

देहरादून। लोकभाषाओं को सम्मान सिर्फ सरकारी प्रयासों से नहीं मिलने वाला, इसके लिए हमें व्यक्ति एवं समाज के स्तर से पहल करनी होगी। हमें लोकभाषाओं के प्रति हीनता के भाव त्यागना होगा। तभी हम नई पीढी़ को अपनी संस्कृति एवं परंपराओं से जोड़ पाएंगे। इसकी शुरुआत हमें भाषण, गोष्ठी व सम्मेलनों से नहीं, अपने घर से करनी होगी। हमें यह बात कभी नहीं भूलनी चाहिए कि इस राज्य का जन्म ही लोक की स्वतंत्र पहचान कायम करने की मांग को लेकर हुआ।

यह बात, हाल ही में वर्ष 2018 के प्रतिष्ठित संगीत नाटक अकादमी सम्मान से नवाजे गए उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी ने रविवार को उत्तरांचल प्रेस क्लब की ओर से क्लब सभागार में आयोजित संवाद कार्यक्रम में कही।

उन्होंने कहा कि राज्य गठन के बाद इन इक्कीस वर्षों में गढ़वाली-कुमाऊंनी व अन्य लोक भाषाओं के उत्थान के लिए सरकारी स्तर से कोई जमीनी प्रयास नहीं हुए। आज हमारे पास लोकभाषा अकादमी तक नहीं है। उन्होंने इस बात पर खुशी जताई कि युवा बड़ी संख्या में गढ़वाली-कुमाऊंनी लिख और गा रहे हैं। देश ही नहीं, पूरी दुनिया में उत्तराखंडी लोकगायकों को बडे़ मनोयोग से सुना जा रहा है। उन्होंने इसमें सोशल मीडिया के योगदान को भी महत्वपूर्ण माना।

संवाद के तहत पूछे गए एक सवाल पर, नेगी ने कहा कि उन्होंने हमेशा लोक पक्ष को तरजीह दी और लोक के साथ ही मजबूती से खडे़ रहने की कोशिश की। इसलिए उनके गीतों में लोक मुखर होकर उभरा है। यह लोक से मिले असीम प्यार का ही नतीजा है।

लोकगायक नेगी ने कहा कि उनके लिए सबसे बड़ा पुरस्कार लोक से मिला स्नेह है। इसलिए इस प्रतिष्ठित संगीत नाटक अकादमी सम्मान को वो लोक के उन स्तंभों को समर्पित कर रहे हैं, जो बिना किसी चाह के पूरे मनोयोग से बोली-भाषा के उन्नयन के लिए कार्य कर रहे हैं।

नेगीदा ने भाषा की समृद्धि के लिए सभी से आसन्न जनगणना के दौरान भरे जाने वाले फार्म के भाषा कालम में अपनी मातृभाषा गढ़वाली, कुमाऊंनी व जौनसारी दर्ज करने की भी अपील की। उन्होंने कहा कि इससे लोकभाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में दर्ज कराने का मार्ग प्रशस्त होगा। इस दौरान नेगीदा ने अपने प्रसिद्ध गीत धरती हमरा गढ़वाला़ की… प्रस्तुत किया, जिस पर सभी झूम उठे।

उत्तरांचल प्रेस क्लब के अध्यक्ष जितेंद्र अंथवाल ने कहा कि नेगी को प्रतिष्ठित  संगीत नाटकअकादमी सम्मान मिलना महज व्यक्ति नहीं, बल्कि उत्तराखंड की बोली-भाषा, संस्कृति और लोक परंपराओं का सम्मान है। नेगी उत्तराखंड की लोक संस्कृति के ध्वज वाहक हैं। पहाड़ की बहू-बेटी के प्रतिनिधि और उनकी व्यथा के प्रतिबिंब हैं। पहाड़ की पहाड़ जैसी समस्याओं के युगदृष्टा हैं और अपने समय में तेजी से आ रहे बदलावों, लोगों से जुड़े सरोकारों व जनजीवन के चितेरे हैं। नेगी कवि हैं, गीतकार हैं, लोकगायक हैं और साथ ही एक गूढ़ चिंतक और लोकवाद्यों के विशेषज्ञ भी। एक व्यक्तित्व में इतने गुणों का समावेश बहुत कम देखने को मिलता है।

इस मौके पर क्लब परिवार की ओर से लोकगायक नेगी को स्मृति चिह्न प्रदान करने के साथ शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया गया। इसके अलावा क्लब को साउंड सिस्टम प्रदान करने वाले राज्य आंदोलनकारी जयदीय सकलानी को भी स्मृति चिह्न भेंट किया गया। इससे पूर्व प्रेस क्लब के महामंत्री ओपी बेंजवाल ने लोकगायक नेगी समेत सभी मेहमानों व लोक साहित्य प्रेमियों का स्वागत किया। उन्होंने नेगीदा की परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए उनके पुत्र कविलास नेगी का भी आभार जताया।

कार्यक्रम में साहित्यकार नंदकिशोर हटवाल, संदीप रावत, कवि एवं गीतकार मदन डुकलान, ईश्वरी प्रसाद उनियाल, क्लब के पूर्व अध्यक्ष नवीन थलेड़ी व योगेश भट्ट, क्लब के वरिष्ठ उपाध्यक्ष मनमोहन शर्मा, कनिष्ठ उपाध्यक्ष गीता मिश्रा, संयुक्त मंत्री दिनेश कुकरेती व नलिनी गोसाईं, संप्रेक्षक विनोद पोखरियाल, सदस्य राजकिशोर तिवारी, प्रवीण बहुगुणा, राजेश बड़थ्वाल, नेगीदा के पुत्र लोकगायक कविलास नेगी आदि मौजूद रहे।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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