उत्तराखंडः गरुड़ गंगा में स्नान से मिलती कालसर्प योग से मुक्ति
संजय भंडारी
गरुड़ गंगा मन्दिर श्री बदरीनाथ धाम का प्रवेश द्वार। गरुड़ राज की तपस्थली दशोली और पैनखंडा के बीच उत्तरवाहिनी नदी गरुड़ गंगा के पास स्थित है गाँव पाखी। पाखी का पौराणिक नाम पंखेश्वर है। जो अब पाखी गरुड गंगा नाम से प्रचलित है। मान्यता है कि यहां पर भगवान विष्णु के प्रिय वाहन गरुड़ ने तपस्या की और गरुड़ राज के तप से खुश होकर भगवान ने उनको वरदान दिया कि आज से मेरी पूजा तब तक सफल नहीं होगी जब तक कोई भक्त तुम्हारे दर्शन न कर ले। इसका उल्लेख स्कन्द पुराण के केदारखंड में है।
इस स्थान के बारे में केदारखंड में वर्णित श्लोक में यह भी कहा गया है कि … गरुड़ गंगा शिला भागो , यत्र त्रिष्टित मत प्रिय ! न तत्र सप्रज : भये ,विध्यते ना तथा विषात !!, विष ग्रस्तो पियो ,मतर्यो जले घ्रष्टम पिवनतुवे !! इसका अर्थ- गरुड़ गंगा का जो पत्थर है, उसके बारे में यह मत प्रचलन या प्रिय है कि इसके पत्थर (शिला )को घर में रखने पर साँप का भय नहीं रहता है साथ ही किसी व्यक्ति को साँप ने डंस लिया तो गरुड़ गंगा के पत्थर को पानी के साथ घिसकर उसका लेप करने से सर्प विष कम किया जा सकता है।
साथ ही गरुड़ गंगा में पूजा करने से काल सर्प योग से मुक्ति मिलती है। दूसरा मत यह है कि गरुड़ गंगा नदी जो गरुड़ भटिय़ाना तोक से निकलती है, के आसपास जड़ी बूटी का क्षेत्र है। यह घाटी हर्बल वैली है, ज़िस कारण इस नदी का पानी साफ और स्वच्छ है। (पूरे भारत वर्ष में यह नदी अपने उदगम स्थल से उत्तरवाहिनी है ) जो भगवान बदरीनाथ के चरणो को स्पर्श कर अलकनंदा में मिल जाती है, इसलिए इस स्थान का महत्व अधिक है और पूज्यनीय है।
सावन भादो में श्री कृष्ण जन्म महोत्सव के समय गरुड़ मन्दिर, श्री लक्ष्मी विष्णु मन्दिर परिसर में भव्य मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें दुर्गा मन्दिर से श्रीकृष्ण लीला की झांकी यात्रा निकाली जाती है। गरुड़ गंगा नदी के तट पर कालिया नाग मर्दन की लीला के साथ यात्रा संपन्न होती है। इसमें पैनखण्डा और बंड गांव के स्थानीय लोगों के साथ य़ात्री और ग्रामीण उपस्थित रहते हैं।
- फोटो- जेपी मैठाणी ,संजय भंडारी व जोबिन चाको