FeaturedInspirational storySHORT STORY FOR KIDS

लोमड़ी और अंगूर का गुच्छा

एक दिन एक लोमड़ी गांव में बागीचे से होकर जंगल जा रही थी। बागीचे में एक पेड़ पर अंगूर की बेल लिपटी थी, जिस पर अंगूर के बहुत सारे गुच्छे लगे थे। अंगूर देखकर लोमड़ी के मुंह में पानी आ गया। वह ्सबसे नीचे लगे अंगूर के गुच्छे को तोड़ने के लिए कूदने लगी, लेकिन उसे सफलता नहीं मिल पाई।

पेड़ पर बैठा बंदर, लोमड़ी को गुच्छा तोड़ने का प्रयास करता देख रहा था। उसने लोमड़ी से मजाक में कहा, तुम्हें अपनी लंबाई बढ़ानी होगी। लोमड़ी ने बंदर की बात पर कोई ध्यान नहीं दिया और गुच्छा तोड़ने के प्रयास में कई बार कूद लगाई। बंदर ने पेड़ की डाली को थोड़ा नीचे झुकाकर लोमड़ी से कहा, अब आप अंगूर का स्वाद चख सकती हैं।

जैसे ही अंगूर का गुच्छा थोड़ा जमीन की ओर हुआ, लोमड़ी ने उसे पकड़ लिया। अंगूर का ्स्वाद लेने के बाद जब लोमड़ी जाने लगी तो बंदर ने पूछा, कैसे लगे ये अंगूर। लोमड़ी ने जवाब दिया, कुछ खास नहीं हैं। इसके बाद लोमड़ी जंगल की ओर दौड़ गई।

दूसरे दिन, फिर लोमड़ी वहां से गुजर रही थी। इस बार लोमड़ी ने अंगूर का गुच्छा पकड़ने के लिए थोड़ा दूरी से दौड़ते हुए कूद लगाई, लेकिन सफल नहीं हो सकी। लोमड़ी ने कई बार प्रयास किया कि वह अंगूर का गुच्छा मुंह में दबा सके, लेकिन वह थक गई। बंदर ने इस बार फिर पेड़ की डाली को नीचे किया और लोमड़ी ने आसानी ने अंगूर का गुच्छा तोड़ लिया। इस बार बंदर ने फिर पूछा, आपको अंगूर कैसे लगे लोमड़ी जी।

लोमड़ी ने जवाब दिया, कुछ खास नहीं हैं। यह कहकर लोमड़ी जंगल की ओर दौड़ गई। बंदर सोच में पड़ गया कि अगर लोमड़ी को अंगूर अच्छे नहीं लग रहे हैं तो वो बार-बार अंगूर खाने का प्रयास क्यों कर रही है। वह तो हर दिन यहां अंगूर खाने आ रही है।

तीसरे दिन फिर लोमड़ी अंगूर खाने के लिए पहुंची। इस बार वह पहले से कहीं ज्यादा ऊंची कूद लगा रही थी ्अंगूर का गुच्छा तोड़ने के लिए। कई बार के प्रयास पर लोमड़ी ने अंगूर का एक गुच्छा मुंह में दबोच ही लिया। इस बार उसने बड़े आराम से अंगूर खाए। बंदर ने उससे पूछा, कैसे लगे अंगूर। लोमड़ी ने जवाब दिया, बहुत मीठे और स्वादिष्ट हैं। क्या तुम भी खाओगे। बंदर ने कहा, मैं तो यहीं रहता हूं। मैं तो अंगूर खाता रहता हूं। इसके बाद लोमड़ी जंगल की ओर दौड़ गई।

बंदर ने पेड़ से पूछा, मैंने जब दो बार लोमड़ी से पूछा कि अंगूर कैसे थे तो उसने कहा, कोई खास नहीं। आज अचानक ये अंगूर इतने स्वादिष्ट और मीठे कैसे हो गए। पेड़ ने कहा, पहले दो दिन लोमड़ी ने तुम्हारे प्रयास से अंगूर खाए थे। इसलिए उसको अंगूर इतने अच्छे नहीं लगे। आज उसने अपनी मेहनत और प्रयास से अंगूर का गुच्छा तोड़ा था। मेहनत का फल हमेशा मीठा होता, तुमने यह कहावत तो सुनी होगी दोस्त।

 

newslive24x7

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन कर रहे हैं। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते हैं। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन करते हैं।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button