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सांस के स्वरूप को पहचानकर पेप्टिक अल्सर का निदान !

वर्तमान में, पेप्टिक अल्सर रोग एक महत्वपूर्ण चिकित्सा समस्या है, जिस पर पूरी दुनिया में विशेष ध्यान दिया गया है। इस बीमारी के विकास के लिए हेलिकोबैक्टर पाइलोरी जीवाणु संक्रमण को सबसे महत्वपूर्ण खतरे का कारक माना जाता है।

पारंपरिक दर्दनाक और आक्रामक एंडोस्कोपिक प्रक्रियाएं तीव्र शुरुआत और पेप्टिक अल्सर की प्रगति के साथ साथ विभिन्न गैस्ट्रिक जटिलताओं का शुरू में ही पता लगाने के लिए उपयुक्त नहीं हैं।

भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के अंतर्गत एस.एन. बोस नेशनल सेंटर फॉर बेसिक साइंसेज, कोलकाता में प्रो. माणिक प्रधान और उनकी शोध टीम ने स्वरूप मान्यता आधारित क्लस्टरिंग दृष्टिकोण का उपयोग किया, जो स्वस्थ व्यक्तियों के साथ अल्सर और अन्य गैस्ट्रिक स्थितियों के साथ पेप्टिक की श्वांस को चुनिंदा रूप से अलग कर सकता है।

टीम ने मशीन लर्निंग (एमएल) प्रोटोकॉल का उपयोग किया, ताकि श्वांस के विश्लेषण से उत्पन्न बड़े जटिल ब्रीथोमिक्स डेटा सेट से सही जानकारी निकाली जा सके।

यूरोपियन जर्नल ऑफ मास स्पेक्ट्रोस्कोपी में प्रकाशित एक लेख में, उन्होंने अद्वितीय श्वांस-स्वरूप, सांसोग्राम और “श्वांस के निशान” हस्ताक्षरों को पहचानने के लिए क्लस्टरिंग दृष्टिकोण को लागू किया। इसने एक व्यक्ति की विशिष्ट गैस्ट्रिक स्थिति के स्पष्ट प्रतिबिंब के साथ-साथ तीन अलग-अलग खतरनाक क्षेत्रों के साथ प्रारंभिक और बाद के चरण की गैस्ट्रिक स्थितियों के भेदभाव और एक रोग चरण से दूसरे चरण में सटीक संक्रमण में मदद की।

रोगियों से उत्पन्न श्वांस -स्वरूप रोगी की बेसल चयापचय दर (बीएमआर) और उम्र, लिंग, धूम्रपान की आदतों, या जीवन शैली जैसे अन्य जटिल कारकों के अलावा हैं।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा वित्त पोषित एसएन बोस सेंटर में तकनीकी अनुसंधान केंद्र (टीआरसी) में किए गए शोध में परियोजना विद्यार्थी सुश्री  सयोनी भट्टाचार्य और परियोजना वैज्ञानिक डॉ. अभिजीत मैती और डॉ. अनिल महतो शामिल थे, जिन्होंने एएमआरआई अस्पताल, कोलकाता में प्रसिद्ध चिकित्सा वैज्ञानिक और गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट डॉ. सुजीत चौधरी के सहयोग से काम किया था।

वैज्ञानिकों ने “पायरो ब्रीथ” नामक एक प्रोटोटाइप उपकरण विकसित किया है, जिसे अस्पताल के वातावरण में चिकित्सकीय रूप से मान्यता प्रदान की गई है और इसका पेटेंट कराया गया है। संभावित व्यावसायीकरण के लिए संबंधित प्रौद्योगिकी को राष्ट्रीय अनुसंधान विकास निगम (एनआरडीसी) नई दिल्ली के माध्यम से एक स्टार्टअप कंपनी को हस्तांतरित किया गया है

यह आरंभिक पहचान, चयनात्मक वर्गीकरण और विभिन्न गैस्ट्रिक जटिलताओं की प्रगति के आकलन के लिए नए गैर-नवेसिव मार्ग खोल सकता है और शिशुओं, बच्चों, गर्भवती महिलाओं और वरिष्ठ नागरिकों की व्यापक जांच में सहायता कर सकता है।- पीआईबी

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राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन कर रहे हैं। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते हैं। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन करते हैं।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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