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फिर से संवर रहे 162 साल पुराने चौबटिया गार्डन की खास बातें

चौबटिया गार्डन की स्थापना 1860 में हुई, 235 हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैले इस गार्डन ने बाग का रूप 1869 में लिया था

डॉ. राजेंद्र कुकसाल

  • लेखक कृषि एवं औद्योनिकी विशेषज्ञ हैं
  • 9456590999

चौबटिया गार्डन की स्थापना 1860 में हुई। 235 हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैले इस गार्डन ने विधिवत बाग का रूप 1869 में लिया था, जब मिस्टर क्रो, के नेतृत्व में यहां पर सेब, नाशपाती, खुबानी ,प्लम चेरी, हैजैलनट आदि शीतोष्ण फल पौधों का रोपण किया गया। ब्रिटिश शासकों ने वर्ष 1932 में, पर्वतीय क्षेत्रों में शीतोष्ण फलों के उत्पादन संबंधी ज्ञान जैसे पौधों को लगाना, पौधों का प्रसारण , मृदा की जानकारी ,खाद पानी देने,कटाई छंटाई ,कीट व्याधियों से बचाव आदि के निराकरण के लिए चौबटिया उद्यान में पर्वतीय फल शोध केंद्र  की स्थापना की।

चौबटिया फल शोध के विभिन्न अनुभागों के अतिरिक्त एक मैट्रियोलॉजी ऑबजरबेटरी भी स्थापित की गई, ताकि मौसम में होने वाले बदलावों विशेष रूप से पाला, ओला पढ़ने, आंधी आदि की जानकारी एकत्रित की जा सकें। यहां एक अच्छे पुस्तकालय की भी सुव्यवस्थित स्थापना की गई, जिसमें विभिन्न विषयों से संबंधित उच्चकोटी की बारह हजार से भी अधिक पुस्तकों के साथ- साथ 15 देशी विदेशी शोध पत्रिकाएं नियमित रूप से आती रही हैं।

चौबटिया शोध केन्द्र से प्रोग्रेसिव हार्टिकल्चर नाम से अंग्रेजी भाषा में त्रैमासिक पत्रिका नियमित रूप से प्रकाशित की जाती रही है, जिसमें शोध केंद्रों में चल रहे शोध प्रयोगों के परिणाम प्रकाशित किए जाते रहे हैं।

केंद्र ने अन्य पर्वतीय राज्यों, हिमाचल प्रदेश,जम्मू काश्मीर, मणिपुर, सिक्किम तथा पड़ोसी देश भूटान,नेपाल, अफगानिस्तान को फल पौधरोपण सामग्री उपलब्ध कराई। साथ ही, इन राज्यों के प्रसार कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण दिया जाता रहा।

शोध केंद्र से विकसित विभिन्न तकनीकी विधियों को विभागीय अधिकारियों, कर्मचारियों व उद्यानपतियों तक पहुंचाने के लिए समय-समय पर प्रशिक्षण शिविरों का आयोजन किया जाता रहा है।

फल शोध केंद्र चौबटिया की कुछ अन्य मुख्य उत्कृष्ट उपलब्धियां इस प्रकार हैं-

  • चौबटिया पेस्ट बागवानों की पहली पसंद व प्रभावकारी फफूंदी नाशक रहा।
  • सेब नाशपाती, गुठलीदार एवं गिरीदार फलों के पौधों के प्रसारण के लिए मूलवृंतों का चयन। आज भी सेब के फल वृक्षों के लिए प्ररेऊ (मैलस बकाटा वैरायटी हिमालिका नामक सेब की जंगली प्रजाति) तथा मूल वृन्त वाले पौधों की बागवानों द्वारा मांग रहती है।
  • सेब की चौबटिया प्रिंसेज, चौबटिया अनुपम, खुबानी की चौबटिया मधु और चौबटिया अलंकार उन्नतशील किस्में विकसित कीं।
  • सभी पर्वतीय जनपदों का सर्वेक्षण कर मृदा परीक्षण किया तथा सोयल मैप तैयार किया।

राज्य बनने के बाद-
वर्ष 2004 में शोध केंद्रों को गोविंद बल्लभ पंत कृषि विश्वविद्यालय पन्तनगर के अधीन कर दिया गया। पुनः वर्ष 2012 -13 में शोध केंद्रों को उद्यान विभाग के अधीन कर दिया गया। अधिकतर वैज्ञानिक/अधिकारी सैवानिवृत्त हो गए हैं। नये पद भरे नहीं गए तथा उनको समाप्त कर दिया गया।  केंद्र की सारी गतिविधियां धीरे धीरे बन्द होती गईं। साथ ही, वर्षो से संकलित सेब, नाशपाती, आड़ू, प्लम, खुबानी आदि भी नष्ट होती गईं।

अब फिर से चौबटिया गार्डन में सेव, कीवी, नाशपाती, आदि फलों की किस्मों का संरक्षण एवं उत्पादन के साथ ही गार्डन को फूलों से महकाकर पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए केंद्र के प्रभारी अधिकारी डॉ. ब्रिजेश गुप्ता एवं पूरी टीम सराहनीय प्रयास कर रहे हैं।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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