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लघु कहानीः शुरुआत और अंत

हॉस्टल में रहने वाले एक छात्र ने अपने शिक्षक का कीमती फूलदान तोड़ दिया। हालांकि उसने ऐसा जानबूझकर नहीं किया था। चलते हुए अचानक हाथ लगने से फूलदान फर्श पर गिरकर टूट गया था। तभी उसने शिक्षक के कदमों की आवाज सुनी तो वह घबरा गया। उसने जल्दी जल्दी फूलदान के टुकड़ों को वहीं छिपा दिया।

शिक्षक को अपने पास देख, छात्र ने पूछा- सर, मृत्यु क्या है। कोई क्यों मरता है। शिक्षक ने कहा, बेटा- यह प्राकृतिक प्रक्रिया है। जो जन्म लेता है, उसकी मृत्यु भी होती है। यह सब शुरुआत और अंत जैसा है। लंबा जीवन जीने के बाद मृत्यु का सामना करना ही पड़ता है। शिक्षक के इस जवाब पर छात्र ने राहत ली और तुरंत फूलदान के टुकड़ा दिखाते हुए कहा, सर- आपके फूलदान का भी अंतिम समय आ गया था।

फूलदान टूट गया, यह जानकर शिक्षक को काफी गुस्सा आया, लेकिन अभी तो वह शुरुआत और अंत की बात कर रहे थे, यह सोचकर मुस्करा कर रह गए। वहीं छात्र भी तुरंत अपनी राह चला गया।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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