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पत्थरों में जान फूंक रही अनुसूया लाल की कला

  • पीपलकोटी से आशीष सती

चमोली जिले के गांव क्वौंज पोथनी के निवासी अनुसूया लाल की कलाकारी पत्थरों में जान फूंक रही है। अनुसूया लाल लगभग 15 साल से बतौर मूर्तिकार बेहद सीमित संसाधनों में काम कर रहे हैं। इनकी बनाई गई देव मूर्तियां गढ़वाल के कई मंदिरों की शोभा बढ़ा रही हैं। एक दौर में इनकी पहचान नहीं थी, लेकिन आज इनके गांव को मूर्तिकार अनुसूया लाल के गांव के रूप में पहचान मिली है।

 

शिल्पकार परिवार से जुड़े अनुसूया लाल की बनाई मूर्तियों की गढ़वाल में काफी मांग है। अनुसूया लाल के पास कोई वर्कशॉप नहीं है। एेसे में उनको छैनी हथोड़ी के साथ खुले में मूर्तियां बनानी पड़ती है। इस कारण उनकी बनाई मूर्तियां क्षतिग्रस्त भी हो जाती हैं। ये मूर्तियों काे सड़क के किनारे बैठकर इसलिए बनाते हैं, ताकि मूर्तियां आसानी से ट्रांसपोर्ट की जा सके। इनके पास अपनी कला को और ज्यादा संवारने के लिए अॉटोमैटिक टूल्स नहीं है। अगर इनको सरकार या किसी संस्था से मदद मिल जाए, तो ये वर्कशॉप बनाकर युवाओं के कौशल विकास में एक ट्रेनर के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं। वहीं पहाड़ के युवाओं को मूर्तिकला में रोजगार का उत्तम साधन हासिल हो सकता है। क्योंकि मूर्ति बनाने के लिए कच्चा माल स्थानीय स्तर पर ही उपलब्ध है।

  

अनुसूया लाल बेहद सीमित संसाधनों के साथ मूर्ति कला काे आगे बढ़ा रहे। वह तब से मूर्तियां बना रहे हैं, जब उनके गांव तक सड़क नहीं जाती थी। जिला मुख्यालय से मुश्किल से 20 किमी. दूर स्थित उनका गांव आज भी विकास से दूर है। अनुसूया लाल बचपन से ही मूर्तियां बनाने में रुचि रखते हैं। इन्होंने किसी संस्थान से मूर्तियां बनाना नहीं सीखा। शुरू में खुद काम शुरू किया। बाद में इनको जयनंदा उत्थान समिति भीमतला, जिला उद्योग केंद्र गोपेश्वर चमोली ने कुछ मौकों पर मदद की। इनकी बनाई गई मूर्तियां प्रदर्शनी में रखी जाती हैं।

 

 

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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