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प्राचीन यूनान से हुई थी लोकतंत्र की शुरूआत 

एथेंस 


तमाम ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर माना जाता है कि मानव सभ्यता की शुरूआत ग्रीस (प्राचीन यूनान) से हुई है। प्राचीन यूनान की परंपराएं, इतिहास, रीति रिवाज, खोज और धर्म के द्वारा पश्चिमी सभ्यता की नींव रखी गई थी। उस दौर की तमाम चीज़ों की झलक को आज के पश्चिमी देशों में देखा जा सकता है। प्राचीन ग्रीस के दौर के रीति-रिवाज और चलन का आज भी पश्चिमी दुनिया पर गहरा असर है। उदाहरण के आज पश्चिमी देशों में लोकतंत्र का जैसा रूप दिखता है,उसकी मजबूती और पश्चिमी देशों में जितनी शिद्दत से लोग लोकतांत्रिक मूल्यों को लेकर लड़ते हैं, वो, उन्हें प्राचीन ग्रीस से विरासत के रूप में प्राप्त हुआ है। हालांकि जानकारों का मानना है कि आम लोगों का चाल-चलन सभ्यता और संस्कृति नहीं कहा जा सकता।
जो आम है वो सभ्य और सुसंस्कृत हो ही नहीं सकता। लोकतंत्र, जो आम लोगों के नाम पर चलता है, उसमें आम जनता की भागीदारी कम ही होती है। पर, प्राचीन काल के ग्रीस में ऐसा नहीं था। वहां, जनता प्रशासन से लेकर मनोरंजन की दुनिया तक हर चीज़ में भागीदार थी। प्राचीन काल में यूनान में मनोरंजन का बड़ा ज़रिया नाटक हुआ करते थे। इंसानी सभ्यता को नाटकों की देन यूनान से ही मिली थी। इतिहासकारों की माने तो ईसा की पांच सदी पहले से ही ग्रीस में नाटकों का लिखा जाना और उनके मंचन का दौर शुरू हो गया था। उसी दौर से हमें दुखांत नाटकों की विरासत मिली। ग्रीस की राजधानी एथेंस मे खुले थिएटर में नाटकों का मंचन होता था।जनता के बीच से चुने गए दस लोग इन नाटकों को अच्छे या बुरे के दर्जे में बांटने के लिए जज बनाए जाते थे। ये न्यायाधीश सिर्फ़ अपनी सोच की बुनियाद पर किसी नाटक को अच्छा या बुरा नहीं कह सकते थे।उन्हें आम लोगों की पसंद-नापसंद का ख़याल रखते हुए फ़ैसला सुनाना होता था। सभ्यताओं के इतिहास पर नज़र रखने वाले मानते हैं कि प्राचीन एथेंस में नाटकों का ये मंचन, उस दौर के लोकतांत्रिक होने की गवाही था।
नाटकों का लेखन और मंचन ग्रीक समाज की बहुत बड़ी खोज थी।इसके ज़रिए लोगों को लोकतंत्र का, रीति-रिवाजों का और दुनियादारी का पाठ पढ़ाया जाता था।कुछ जानकार मानते हैं कि इन्हीं नाटकों की वजह से ग्रीस में गणित, मेडिसिन, दर्शन, इतिहास और साहित्य की पढ़ाई की बुनियाद पड़ी। प्राचीन एथेंस के तीन महान नाटककार हुए। इनके नाम एसीकिलस, सोफ़ोक्लेस और यूरीपिडस थे।ये तीनों ही दुखांत नाटक लिखने मे माहिर थे। इन्हीं के नाटकों की वजह से ’ग्रीक ट्रैजेडी’ दुनिया भर में मशहूर हुई। इसी दौर में ग्रीस में मशहूर कॉमेडियन एरिस्टोफेन्स भी हुए। प्राचीन यूनान में डायोनिसिया नाम के देवता के नाम पर पांच दिनों का जश्न के दौरान मेले में नाटकों का खुला मंचन होता था।इसमें समाज के गरीब तब़के को शामिल होने के लिए पैसे भी मिलते थे। रईस लोगों पर टैक्स लगाकर नाटक दिखाने का ख़र्च वसूला जाता था।ये भी एक तरह की लोकतांत्रिक व्यवस्था थी, जिसमें रईसों पर टैक्स लगाकर गरीबों की मदद की जाती थी।
उस दौर के नाटकों को आज सस्ती लोकप्रियता हासिल करने की कोशिश कहकर ख़ारिज किया जा सकता है।मगर याद रहे कि ये नाटकों के लिखने का शुरुआती दौर था।

लिखने वालों से लेकर देखने वालों तक, इस विधा के नए तजुर्बे कर रहे थे।अक्सर नाटकों में समाज के दबे-कुचले लोगों, जैसे महिलाओं, देश से निकाले गए लोगों और विदेशियों के ]िकस्से बयां किए जाते थे। इन नाटकों के ज़रिए जज़्बातों का खुलकर इज़हार होता था। एसीकिलस का दुखांत नाटक द पर्सियन्स (472 ईसा पूर्व) ग्रीक नाटककारों की संवेदनशीलता की झलक को प्रदर्शित करता है। ये नाटक उस वक़्त लिखा गया था, जब फारस के राजा जैक्सिस ने ग्रीस पर हमला करके वहां तबाही मचा दी थी। कॉमेडियन एरिस्टोफेन्स के नाटक द आर्केनियन्स (425 ईसा पूर्व) के ज़रिए जंग के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई गई थी।ये एथेंस और स्पार्टा की लड़ाई पर आधारित व्यंग नाटक था।ग्रीक जजों ने उस दौर में भी उसे पहला पुरस्कार दिया था। प्रोफ़ेसर पॉल ग्रीक नाटकों की तुलना आज के रियालिटी शो द एक्स फैक्टर और इंडियन आइडल वग़ैरह से करते हैं। मगर प्राचीन काल के ग्रीस में ऐसा नहीं था। वहां दर्शक नाटक का हिस्सा होते थे।वहीं पर अपनी सीधी और बेबाक राय दे सकते थे। ये लोकतंत्र ही तो था। प्रख्यात दार्शनिक प्लेटो का कहना था कि एथेंस के लोग नाटकराज में रहते थे।एथेंस का राज ऐसे लोगों के हाथ में है, जो थिएटर जाते हैं। वो जनता की भागीदारी के ख़िलाफ़ थे। जब ईसा से 404 साल पहले स्पार्टा ने एथेंस को हराया तो नए हुक्मरानों ने एथेंस में नाटक का मंचन बंद करा दिया। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र तो एक विलासिता है।इसके बाद नाटक देखने के लिए टिकट लगने लगे। जिसके पास पैसे होते थे, वही नाटकों का लुत्फ़ उठा सकता था।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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