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कभी स्कूल नहीं गए, पर अपनी स्किल से वर्कशॉप और एजेंसी के मालिक हैं अमित

"स्कूल नहीं जाने की वजह से बहुत तकलीफें झेलीं, अगर पढ़ाई करता तो यह जो भी कुछ आप देख रहे हो, कुछ और अलग होता"

राजेश पांडेय। डोईवाला

“मैं कभी स्कूल नहीं गया। लगभग आठ साल ट्रैक्टर मैकेनिक का काम सीखने के दौरान एक पैसा नहीं मिला, पर मैंने सीखना नहीं छोड़ा। उस्ताद जी, मेरे खाने, कपड़े की व्यवस्था करते थे, पर मुझे पैसे नहीं मिलते थे। मैंने मजदूरी भी की, टावर के पोल लगाने का काम किया। हमने घर-घर जाकर ट्रैक्टर ठीक किए। बहुत संघर्ष किया और एक दिन ऐसा भी आया कि मुझे ट्रैक्टर मरम्मत के लिए पैसे मिले, जो मैंने अपने उस्ताद जी के हाथ पर ही रख दिए, उस दिन उनको और मुझे बहुत खुशी मिली।”

डोईवाला के पास भानियावाला तिराहे से हरिद्वार रोड पर लगभग सौ मीटर की दूरी पर किसान ट्रैक्टर ऑटोमोबाइल वर्कशॉप और एजेंसी के स्वामी लगभग 45 वर्षीय अमित अपने संघर्षों और सफलता को साझा कर रहे थे।\

वो बताते हैं, “पढ़ना लिखना जरूरी है, यह बात मैं हर शख्स से कहता हूं। स्कूल नहीं जाने की वजह से मैंने बहुत तकलीफें झेलीं, अगर पढ़ाई करता तो यह जो भी कुछ आप देख रहे हो, कुछ और अलग होता।”

“पर, मुझे इस बात का सुकून है कि मैं कभी खाली नहीं बैठा, स्कूल नहीं गया तो वर्कशॉप में काम सीखा।”

“आज मुझे नहीं लगता, ट्रैक्टर से जुड़ा कोई काम मुझसे छूटा होगा। मेरे उस्ताद जी आलराउंडर थे, वो ट्रैक्टर ही नहीं, पता नहीं कितने तरह के इंजन ठीक कर देते थे।”

“मैं बहुत छोटा था, यहीं कोई आठ साल का। हम मुजफ्फरनगर रहते थे। मुझे स्कूल जाना, पढ़ना लिखना अच्छा नहीं लगता था। पर, ट्रैक्टर पसंद करता था।”

“मेरे चाचा ट्रैक्टर चलाते थे, मैं उनके साथ वर्कशॉप जाता था। हमारा ट्रैक्टर मरम्मत के लिए खुला हुआ था।”

“मैं मैकेनिक, जो मेरे उस्ताद जी थे, के पास उस समय कोई हेल्पर नहीं था। मैं उनकी मदद करने लगा। उन्होंने मेरे चाचा से कहा, यह लड़का तो बहुत मेहनती है, इसको काम सीखना है तो यहां आने दो।”

“उस समय के ट्रैक्टर के चैंबर में ग्रीसिंग का काम और मेहनत बहुत होती थी। इस काम में हेल्पर की जरूरत होती थी।”

“मेरे पिता जी ने मुझ पर पढ़ाई के लिए जोर डाला, पर मेरा मन नहीं लगा। रिश्तेदारों ने भी पढ़ाई के लिए कहा, पर मैं तो ट्रैक्टर का काम सीखने का दीवाना था।  मेरे दादा जी बहुत लाड़ प्यार करते थे, उन्होंने सहमति दे दी।”

वर्कशॉप में ट्रैक्टर की मरम्मत करते हुए अमित। फोटो- राजेश पांडेय

“उस समय मैं ट्रैक्टर का काम सीखने का मतलब यह समझता था कि मुझे अलग-अलग ट्रैक्टर चलाने को, देखने को मिलेंगे, अमित हंसते हुए कहते हैं।”

“करीब चार साल काम करने के बाद अलग-अलग वर्कशॉप में भी गया, काम सीखा। उस समय काम सीखने के दौरान पैसे नहीं मिलते थे।”

“ओमी उस्ताद जी के साथ, किसी कारखाने का इंजन ठीक करने के लिए लालतप्पड़ आ गया। बस, फिर यहीं का होकर रह गया। ओमी उस्ताद जी, ऑलराउंडर थे, कोई भी मशीन ठीक कर देते थे।”

“लालतप्पड़ में काम शुरू किया, पर ज्यादा नहीं चला।”

“हमने भानियावाला तिराहे के पास वर्कशॉप और दोस्त के साथ स्पेयर पार्ट्स की दुकान खोली। एक समय ऐसा भी देखा कि हमने काम तो शुरू कर दिया, पर हमारे पास पैसे नहीं थे। पर, ईमानदारी और मेहनत से काम किया, लोगों ने हमारा प्रचार किया, हम आगे बढ़ते गए।”

” जब हमारे पास किराये पर दुकान लेने के लिए पैसे नहीं थे, तब हमने घर-घर जाकर ट्रैक्टरों की मरम्मत की।”

“वर्ष 2000 में जब काम शुरू किया था, तब हम दो लोग थे, मैं और ताऊ का बेटा। वो आठवीं तक पढ़ा था, मुझे बहुत मदद करता था। मैं पार्ट्स के नाम नहीं पढ़ पाता था, भाई मुझे मदद करता था। हमारे बीच बहुत अच्छा तालमेल था। बाद में, हम यहां आ गए, जहां यह वर्कशॉप है।”

“मेरा वो भाई लॉकडाउन में सभी को छोड़कर चला गया, बताते हुए अमित की आंखें नम हो जाती हैं।”

हमारे पूछने पर बताते हैं, “इस समय वर्कशॉप पर हम तीन भाई हैं।”

“इस समय ट्रैक्टर मरम्मत का काम पहले से कम है। लोगों के पास नये ट्रैक्टर हैं, रिपेयरिंग की ज्यादा जरूरत नहीं है।”

“खनन कम हुआ है, इसलिए ट्रैक्टर का ज्यादा काम नहीं है। कृषि भूमि पर प्लाटिंग हो रही है। जब खेती कम हो गई तो ट्रैक्टर का इस्तेमाल भी कम हो गया।”

“अमित की वर्कशॉप पर हरिद्वार के पीली क्षेत्र, ज्वालापुर, देहरादून जिले के विकासनगर सहित कई गांवों और भानियावाला, लालतप्पड़, छिद्दरवाला, डोईवाला तक से ट्रैक्टर आते हैं।”

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Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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