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रामझूला के पास पैरों से पेंटिंग बनातीं अंजना की कहानी

अमेरिका से आईं स्टेफनी ने चित्रकारी सिखाकर मेरी जिंदगी बदल दीः अंजना

राजेश पांडेय। न्यूज लाइव

” मैं रामझूला के पास स्वर्गाश्रम में कागज पर राम नाम लिखती थी। पैरों से लिखने पर मुझे लोग सहयोग राशि देते थे, इससे मेरी जिंदगी चलती थी। पर, एक दिन अमेरिका की स्टेफनी (Stefani from USA) मैम मेरे पास आईं और मुझे कहा, तुम चित्र बनाया करो। मैंने उनसे कहा, पैरों से चित्र नहीं बना पाऊंगी। उन्होंने कहा, कोशिश करो। दूसरे दिन वो मेरे लिए कुछ रंग, पेपर, पेंसिल लेकर आईं और मुझसे कहा, मैं तुम्हारे सामने चित्र बना रही हूं, तुम देखकर पैर से बनाने की कोशिश करना। ऐसा 15 दिन चला और मैंने सबसे पहले श्रीगणेश जी का चित्र (Shri Ganesha Painting) बनाया। स्टेफनी अपने देश लौट गईं और मैंने निश्चय कर लिया कि चित्र बनाना नहीं छोड़ूंगी। लॉक डाउन (Lockdown) से पहले की बात है, तीन साल होने वाले हैं, मैं चित्रकारी करके जिंदगी को आगे बढ़ा रही हूं।”

हम अंजना से उनके संघर्ष पर बात कर रहे थे। करीब 38 साल की अंजना, रामझूला के पास स्वर्गाश्रम क्षेत्र में सड़क किनारे बैठकर पेंटिंग बनाती हैं। ऋषिकेश शहर से लगभग दो किमी. दूर मुनिकीरेती है, जहां आप रामझूला (Ram jhula) से गंगा पार करके स्वर्गाश्रम क्षेत्र में प्रवेश करते हैं, यह पौड़ी गढ़वाल जिले का हिस्सा है, जबकि मुनिकी रेती टिहरी गढ़वाल जिले में है। ऋषिकेश शहर देहरादून जिले में आता है।

आप ऋषिकेश से मुनिकी रेती जाते हुए कैलाशगेट से थोड़ा आगे रुक सकते हैं और यहां से जानकी पुल, से होते हुए भी स्वर्गाश्रम जा सकते हैं। जानकी पुल (Janaki Bridge) से गंगा पार करके भी स्वर्गाश्रम क्षेत्र है, जहां प्रमुख आश्रम हैं और एक छोटा सा बाजार है।

देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं और पर्यटकों की आवाजाही, यहां खासकर गर्मियों में खूब होती है। हम यहां जनवरी में सर्दियों वाली सुबह के वक्त हैं। इस समय यहां पर्यटक-यात्री कम ही दिख रहे हैं।

अंजना मलिक (Anjana Malik), जो कि 38 साल की हैं, संकरी सड़क के किनारे लकड़ी की पटरी पर बैठी हैं। पास ही एक खंभे पर उनका कपड़े का बैग टंगा है। अंजना का आर्ट वर्क, श्री हनुमान जी, श्री गणेश जी की पेंटिंग, जो कि ए4 साइज के पेपर पर हैं, को उन्होंने हार्डबोर्ड पर डिस्प्ले के लिए रखा है। उनकी पेंटिंग की एक एलबम है, जिसको अंजना उनसे मिलने वाले हर शख्स को दिखाती हैं।

पास ही, एक स्टैंडिंग साइन बोर्ड है,जिस पर अंजना के कार्यों के बारे में लिखा है। बोर्ड पर उनके बारे में मीडिया कवरेज की जानकारी भी है। एक पेपर पर अपने इंस्टाग्राम पेज https://www.instagram.com/fres.coa की जानकारी देती हैं।

विश्वविख्यात रामझूला पुल के पास स्वर्गाश्रम में सड़क किनारे पैरों से पेंटिंग बनातीं अंजना। फोटो- राजेश पांडेय

स्वर्गाश्रम (Swargashram) में जहां अंजना का कार्यस्थल है, वहां पास से ही गंगा घाट की ओर सीढ़ियां जाती हैं। उनकी वर्षों पुरानी इस पटरीनुमा शॉप (कार्यस्थल) के पास एक मंदिर में रामनाम का पाठ चल रहा है।

चश्मा लगाने वालीं अंजना के दोनों हाथ नहीं हैं, पर बड़ी तन्मयता से ए4 साइज के पेपर पर श्रीराधाकृष्ण की पेंटिंग (Shri Radha Krishna Painting) को अंतिम रूप दे रही हैं। इससे पहले, पैरों की अंगुलियों में फंसाकर पीले रंग से भरी कांच की छोटी शीशी को खोलती हैं, और फिर एक पैर की अंगुलियों से ब्रश पकड़कर पेंटिंग करती हैं। अंजना, पेंटिंग को माथे से लगाकर ईश्वर का शुक्रिया अदा करती हैं।

अंजना पेंटिंग बना रही थीं, बीच-बीच में हमारे साथ बातें भी कर रही थीं। विदेशी पर्यटक उनको देखकर रुक जाते हैं। अंजना उनसे कहती हैं, “Hey! Hello!”, जवाब भी “Hey! Hello!” में मिलता है। उनकी तारीफ भी होती है, “How beautiful”. यह आवाज ब्राजील से आईं एक पर्यटक की थी।

विदेशी पर्यटक फिर कहती हैं, “wow it’s amazing!!.” अंजना अपनी दूसरी पेंटिंग, जो डिस्प्ले की गई थीं, दिखाते हुए ये वाक्य कहती हैं- “This painting Selling”. स्टेफनी पूछती हैं, “How much?”, अंजना जवाब देती हैं- “Different- Different”.

स्वर्गाश्रम में अंजना से बात करते हुए ब्राजील से आईं पर्यटक स्टेफनी। फोटो- राजेश पांडेय

पर्यटक फिर पूछती हैं, “How much?”, उनके बार-बार पूछने पर अंजना कहती हैं, “Seven thousand Eight Hundred Ganesha” (श्रीगणेश जी की पेंटिंग सात हजार आठ सौ रुपये की है)। पर्यटक पूछती हैं, “What’s your name?”, जवाब मिलता है, अंजना मलिक।

पर्यटक ने अंजना से कहा, “मैं वापस लौटकर खरीदती हूं।”

हमने अंजना की पेंटिंग पर विदेशी पर्यटक से उनकी प्रतिक्रिया जाननी चाही। उन्होंने बताया, “मैं ऐसा महसूस करती हूं, यह अचंभित करने वाला काम, हमें उस कार्य को करने के लिए प्रेरित करता है, जो हम वास्तव में करना चाहते हैं। कोई काम कठिन है, ऐसा नहीं सोचना चाहिए, आप वो करें जो आप करना चाहते हैं, इनकी तरफ देखो, कितना सुंदर कार्य है।”

विश्वविख्यात रामझूला के पास सड़क किनारे पैरों से पेंटिंग बनातीं अंजना। फोटो- राजेश पांडेय

पर्यटक ने हमें अपना नाम स्टेफनी और देश ब्राजील बताया। तभी अंजना ने प्रतिक्रिया व्यक्त की, Stefani!! one minute, one minute.  उन्होंने हमें पास ही रखी, एक एलबम उठाने को कहा। जिसके पेज पैरों से पलटते हुए अंजना एक तस्वीर दिखाते हुए कहती हैं, This is Stefani. उनको देखकर ब्राजील की स्टेफनी कहती हैं, Same name और हंसते हुए फिर मिलने का वादा करते हुए वहां से चली जाती हैं।

विशेष चित्रकार अंजना ने एलबम में दिखाया श्रीगणेश जी का चित्र, जो उनकी पहली पेंटिंग है। साथ ही, उन्होंने स्टेफनी की फोटो भी दिखाई, जिन्होंने उनको चित्रकारी सिखाई थी। फोटो- राजेश पांडेय

तस्वीर में मौजूद स्टेफनी के बारे में अंजना बताती हैं, “यूएसए की इस टूरिस्ट ने मेरी जिंदगी बदल दी। इन्होंने मुझे पैरों से चित्र बनाने के लिए प्रेरित किया और मैं अब चित्रकारी कर रही हूं, मैं इस आर्ट को नहीं छोड़ूंगी। मैं अभी सीख रही हूं, मुझे बहुत कुछ सीखना है। मैं इंसानों की तस्वीर नहीं बना पाती, भगवान ने मुझ पर कितनी कृपा की है, जो मैं उन्हीं के चित्र बनाए जा रही हूं।”

अपने संघर्ष पर अंजना का कहना है, “जीवन है तो संघर्ष करना पड़ता है। चित्रकारी की बदौलत, मैं किराये के कमरे से अपने घर में चली गई। दो माह हुआ है अभी। मुझे कर्जा उतारना है। रुद्रपुर में भाई है, उनका एक बेटा और मां मेरे साथ हैं। मुझ पर जिम्मेदारियां हैं, इसलिए मुझे बहुत मेहनत करनी होती है। पेंटिंग बनाकर बेचती हूं, ये बिक जाती हैं। सबसे महंगी पेंटिंग सात-आठ हजार रुपये में बिकी है। मैं ज्यादा पैसा नहीं ले सकती। पैरों की बनी पेंटिंग को लोग पसंद करते हैं। एक पेंटिंग बनाने में पांच से छह दिन लग जाते हैं।”

आपको किन भगवान की पेंटिंग सबसे ज्यादा पसंद है, पर अंजना हंसते हुए कहती हैं, “मुझे सभी भगवान पसंद हैं। मैंने सबसे पहली श्रीगणेश जी की पेंटिंग बनाई थी, जो बहुत सुंदर है। मेरे पास आज भी उस पेंटिंग का चित्र है। मुझे श्रीगणेश जी की पेंटिंग बनाना सबसे ज्यादा पसंद है।”

आपको कौन सा रंग अच्छा लगता है, पर अंजना कहना है, “मुझे सभी रंग पसंद हैं,” यह कहते हुए अंजना तेजी से हंसती हैं।

गंगा किनारे स्वर्गाश्रम में मोबाइल पर अपना इंस्टाग्राम पेज दिखाते हुए अंजना। अंजना का इंस्टाग्राम पेज https://www.instagram.com/fres.coa है। फोटो- राजेश पांडेय

बताती हैं, “उनका इंस्टाग्राम पेज है, जिस पर अपनी पेंटिंग अपलोड करती हैं। पैरों से मोबाइल की स्क्रीन को ऊपर नीचे करती हैं। उनको इंस्टाग्राम की वो रील ज्यादा पसंद हैं, जिसमें हंसी मजाक होता है।”

हमेशा खुश रहने वाली अंजना कहती हैं, “मैं कभी निराश नहीं होती। लोग मुझे देखकर अपने साथ के लोगों से कहते हैं, इनसे सीखो, देखो कितनी मेहनत कर रही हैं। यह सुनकर मुझे अच्छा लगता है कि मैं कुछ खास कर रही हूं।”

ऋषिकेश के पास गुमानीवाला स्थित गुर्जर बस्ती में अपने घर पर मां और भतीजे के साथ अंजना। फोटो- राजेश पांडेय

अंजना स्वर्गाश्रम से लगभग छह किमी. दूर गुमानीवाला की गुर्जर बस्ती में रहती हैं, जहां दो माह पहले ही किराये के कमरे से शिफ्ट हुई हैं। अपने घर से सड़क पर आने के लिए लगभग डेढ़ किमी. पैदल चलती हैं। ऑटो से जानकीपुल पहुंचती हैं और वहां से फिर लगभग एक से डेढ़ किमी. पैदल चलती हैं। अंजना दोनों तरफ लगभग पांच से छह किमी. पैदल चलती हैं।

हमने उनसे कहा, “हम आपका घर देखना चाहते हैं।” उन्होंने जवाब दिया, “आप यहां चार बजे आ जाना, मैं उसी समय घर जाती हूं।”

तय समय पर हम शाम करीब साढ़े तीन बजे अंजना के पास पहुंचे। उस समय अंजना अपना सामान इकट्ठा करके बैग में रख रही थीं। उन्होंने अपने कलर, पेंटिंग, ब्रश और अन्य सामान कपड़े के बैग में रखे। बैग और स्टैंडिंग बोर्ड को पास ही एक आश्रम में रखने खुद ही गईं। बोर्ड को पैरों से खिसकाते हुए आश्रम तक पहुंचाया। लकड़ी की चौकी को वहां तक पहुंचाने के लिए किसी की मदद लेती हैं, जैसे कि उस दिन हमसे चौकी उठाकर वहां रखने के लिए कहा।

विशेष चित्रकार अंजना, शाम को गुमानीवाला की गुर्जर बस्ती स्थित अपने घर जाते हुए। कार्यस्थल स्वर्गाश्रम से लगभग छह किमी. दूर है उनका घर। फोटो- राजेश पांडेय

अंजना हमारी बाइक पर बैठकर वाया जानकीपुल, ऋषिकेश, आईडीपीएल होते हुए गुमानीवाला पहुंचीं। हमें इस बात का डर लग रहा था कि कहीं अंजना बाइक से गिर न जाएं, पर उन्होंने इस तरह बैलेंस बनाया था कि सुरक्षित गुमानीवाला और फिर गुर्जर बस्ती पहुंच गईं। उनकी मां उनको लेने के लिए घर से थोड़ा दूर चलकर आई थीं। उन्होंने हमें अपना घर दिखाया। चाय पिलाई और फिर कुछ देर उनके जीवन संघर्ष पर बात करने के बाद हम वहां से वापस लौट आए। अंजना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर बहुत विश्वास करते हुए कहती हैं, “सरकार उनकी तरफ भी देखे। उनके संघर्ष को भी जाने और कुछ मदद करे।”

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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