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बच्चा ऑनलाइन गेम खेलता है तो आपके काम की है केंद्र सरकार की यह सलाह

नई दिल्ली। प्रौद्योगिकी के नए युग में, ऑनलाइन गेमिंग बच्चों के बीच बहुत लोकप्रिय है, क्योंकि ये उन्हें अधिक खेलने के लिए प्रेरित करती हैं। इससे बच्चों को इसकी लत लग सकती है। ऑनलाइन गेम (Online Game) या तो इंटरनेट पर या किसी अन्य कंप्यूटर नेटवर्क से खेले जा सकते हैं।
ऑनलाइन गेम लगभग हर किसी गेमिंग प्लेटफॉर्म (Gaming Platform) जैसे पीसी, कंसोल और मोबाइल डिवाइस पर देखे जा सकते हैं। ऑनलाइन गेमिंग को फोन या टैबलेट के उपयोग से खेला जा सकता है, जो ऑनलाइन गेम की लत का एक सामान्य कारक है, क्योंकि बच्चे आसानी से किसी भी समय कहीं भी गेम खेल सकते हैं। यह उनके स्कूल और सामाजिक जीवन के समय को प्रभावित करता है।
इसके अलावा, महामारी के कारण स्कूलों के बंद होने से बच्चों द्वारा मोबाइल और इंटरनेट के उपयोग में भी वृद्धि हुई है।
हालांकि, ऑनलाइन गेमिंग (Online Gaming) के कई नुकसान भी हैं। ऑनलाइन गेम खेलने से गेमिंग की लत भी लग सकती है जिसे गेमिंग डिसऑर्डर के रूप में जाना जाता है। खेल को इस तरह से डिज़ाइन किया गया है कि प्रत्येक स्तर पिछले की तुलना में अधिक जटिल और कठिन होता है।
यह एक खिलाड़ी को खेल में आगे बढ़ने के लिए खुद को अंतिम सीमा तक जाने के लिए उकसाने का कारण बनता है।। इसलिए, बिना किसी प्रतिबंध और आत्म-संयम के ऑनलाइन गेम खेलने से कई खिलाड़ी इसके आदी हो जाते हैं और अंततः उनमें गेमिंग डिसऑर्डर (Gaming Disorder) पाया जाता है।
गेमिंग कंपनियां (Gaming Companies) भावनात्मक रूप से बच्चों को खेल के और अधिक चरण (लेवल) या ऐप को खरीदने के लिए भी लगभग मजबूर करती हैं।
इसी के मद्देनजर, यह परामर्श माता-पिता और शिक्षकों को व्यापक प्रसार के उद्देश्य से दिया गया है और ऑनलाइन गेमिंग की वजह से बच्चों में होने वाली मानसिक एवं शारीरिक समस्याओं से निपटने के लिए आवश्यक कदम उठाने के बारे में शिक्षित करता है।
क्या न करें :
● माता-पिता की सहमति के बिना गेम खरीदारी की अनुमति न दें। ऐप खरीदारी से बचना चाहिए। आरबीआई के दिशा-निर्देशों के अनुसार ओटीपी आधारित भुगतान विधियों को अपनाया जा सकता है।
● एप्स पर सदस्यता के लिए क्रेडिट/डेबिट कार्ड पंजीकरण से बचें। हर लेन-देन की व्यय की ऊपरी सीमा निर्धारित करें।
● बच्चों को गेमिंग के लिए इस्तेमाल होने वाले लैपटॉप या मोबाइल से सीधे खरीदारी न करने दें।
● बच्चों को अज्ञात वेबसाइटों से सॉफ्टवेयर और गेम डाउनलोड नहीं करने की सलाह दें।
● उन्हें वेबसाइटों पर लिंक, इमेज और पॉप-अप पर क्लिक करने से सावधान रहने के लिए कहें, क्योंकि उनमें वायरस हो सकता है और कंप्यूटर को नुकसान हो सकता है, और इसमें आयु के अनुसार अनुचित सामग्री भी मौजूद हो सकती है।
● उन्हें सलाह दें कि गेम डाउनलोड करते समय इंटरनेट पर व्यक्तिगत जानकारी प्रेषित न करें।
● उन्हें कभी भी गेम और गेमिंग प्रोफ़ाइल पर लोगों के साथ व्यक्तिगत जानकारी साझा नहीं करनी चाहिए।
● उन्हें वेब कैम, निजी संदेश या ऑनलाइन चैट के माध्यम से वयस्कों सहित अजनबियों के साथ संवाद न करने की सलाह दें, क्योंकि इससे ऑनलाइन दुर्व्यवहार करने वालों, या अन्य प्लेयर्स द्वारा धमकाने के बारे में संपर्क का जोखिम बढ़ जाता है।
● स्वास्थ्य संबंधी पहलुओं और उसकी लत लगने के मद्देनजर गेम को बिना रुके लंबे समय तक खेलने से बचने की सलाह दें।
क्या करें-
● ऑनलाइन गेम खेलते समय, अगर कुछ गलत हुआ है, तो तुरंत रुकें और एक स्क्रीनशॉट लें (कीबोर्ड पर “प्रिंट स्क्रीन” बटन का उपयोग करके) और इसकी रिपोर्ट करें।
● अपने बच्चे की उनकी ऑनलाइन गोपनीयता की रक्षा करने में मदद करें, उन्हें एक स्क्रीन नाम (अवतार) का उपयोग करने के लिए कहें, जो उनके वास्तविक नाम को प्रकट नहीं करता है।
● एंटीवायरस/स्पाइवेयर प्रोग्राम का उपयोग करें और फ़ायरवॉल का उपयोग करके वेब ब्राउज़र को सुरक्षित रूप से कॉन्फ़िगर करें।
● डिवाइस पर या ऐप या ब्राउज़र पर माता-पिता के नियंत्रण और सुरक्षा सुविधाओं को सक्रिय करें क्योंकि यह कुछ सामग्री तक पहुंच को प्रतिबंधित करने और गेम खरीदारी पर खर्च को सीमित करने में मदद करता है।
● यदि कोई अजनबी किसी अनुचित चीज़ के बारे में बातचीत शुरू करने का प्रयास करता है या व्यक्तिगत जानकारी का अनुरोध करता है तो इसके बारे में सूचित करें।
● आपका बच्चा जो भी गेम खेल रहा है उसकी आयु रेटिंग जांचें।
● बुलीइंग के मामले में, प्रतिक्रिया न देने के लिए प्रोत्साहित करें और परेशान करने वाले संदेशों का रिकॉर्ड रखें और गेम साइट व्यवस्थापक को व्यवहार की रिपोर्ट करें/ब्लॉक करें, उस व्यक्ति को उनकी खिलाड़ियों की सूची से म्यूट या ‘अनफ्रेंड’ करें, या इन-गेम चैट प्रक्रिया बंद करें।
● अपने बच्चे के साथ गेम खेलें और बेहतर तरीके से समझें कि वे अपनी व्यक्तिगत जानकारी को कैसे संभाल रहे हैं और वे किसके साथ संवाद कर रहे हैं।
● अपने बच्चे को यह समझने में सहायता करें कि ऑनलाइन गेम में कुछ सुविधाओं का उपयोग अधिक खेलने और खर्च को प्रोत्साहित करने के लिए किया जाता है। उनसे जुए के बारे में बात करें, यह क्या है और ऑनलाइन एवं वास्तविक दुनिया में इसके परिणाम क्या हैं।
● हमेशा सुनिश्चित करें कि आपका बच्चा पारिवारिक स्थान पर रखे कंप्यूटर से इंटरनेट का उपयोग करे।
● निम्नलिखित व्यवहारों के लिए सजग रहें:
○ असामान्य रूप से गुप्त व्यवहार, अधिकतर उनकी ऑनलाइन गतिविधि से संबंधित।
○ उनके द्वारा ऑनलाइन खर्च किए जाने वाले समय में अचानक वृद्धि, विशेष रूप से सोशल मीडिया पर।
○ उनके पास जाने पर वे अपने डिवाइस पर स्क्रीन बदलते प्रतीत होते हैं।
○ इंटरनेट का उपयोग करने या पाठ संदेश भेजने के बाद, वे पीछे हट जाते हैं या क्रोधित हो जाते हैं।
○ उनके डिवाइस में अचानक कई नए फ़ोन नंबर और ई-मेल संपर्क आ गए हैं।
● घर पर इंटरनेट गेटवे स्थापित करें जिसमें बच्चों द्वारा उपयोग की जाने वाली सामग्री की निगरानी, लॉगिंग और नियंत्रण जैसी सुविधाएं हों।
● शिक्षकों को छात्रों के गिरते ग्रेड और सामाजिक व्यवहार पर नजर रखने की जरूरत है।
● यदि शिक्षक कुछ ऐसा देखते हैं जो संदिग्ध या खतरनाक लग सकता है, तो उन्हें तुरंत स्कूल अधिकारियों को सूचित करना चाहिए।
● शिक्षकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बच्चों को समय-समय पर इंटरनेट के फायदे और नुकसान के बारे में जागरूक किया जाए।
● शिक्षकों को वेब ब्राउज़र और वेब एप्लिकेशन के सुरक्षित कॉन्फ़िगरेशन के लिए छात्रों को प्रशिक्षित करना चाहिए।
किसी भी अप्रिय घटना की रिपोर्ट करने के लिए, निम्नलिखित लिंक का उपयोग करें:
राष्ट्रीय हेल्पलाइन National Helpline- https://cybercrime.gov.in/Webform/Helpline.aspx
 राज्यवार नोडल अधिकारी- https://cybercrime.gov.in/Webform/Crime_NodalGrivanceList.aspx

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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