राजा भोज को सत्य ने दिखाया उनके पुण्य कर्मों का सच
गहरी निद्रा में सोए राजा भोज को सपने में वृद्ध पुरुष ने दर्शन दिए और बताया कि मैं सत्य हूं। मैं तुम्हें तुम्हारे कार्यों का वास्तविकता बताने आया हूं। उन्होंने राजा भोज को अपने पीछे-पीछे चलने को कहा।
राजा भोज तो स्वयं को बहुत बड़े धर्मात्मा मानते थे। उन्होंने दान, पुण्य, यज्ञ, व्रत, उपवास, तीर्थयात्रा, कथा, कीर्तन, भजन, पूजन आदि में कोई भी कसर नहीं छोड़ी थी। वह बहुत दान दिया करते थे। बाग, बगीचे, कुएं, बावड़ी , तालाब आदि बनवाए थे। राजा को अपने इन कार्यों पर बहुत अभिमान था।
वृद्ध पुरुष के रूप में आए सत्य के साथ राजा भोज अपने बागीचे में पहुंचे। राजा भोज का लगाया हुआ बागीचा फल- फूलों से लदा था। सत्य ने कहा-राजा भोज! तुम्हें अपनी इस कृति का बाहरी रूप देखकर बड़ा अभिमान होगा। पर इसका सच अभी दिखाता हूँ। सत्य ने एक पेड़ को छुआ। छूते ही पेड़ के सारे फल फूल ओर पत्ते जमीन पर गिर गए। सभी पेड़ ठूँठ हो गए। यह देखकर राजा भोज अचरज में पड़ गए।
वृद्ध पुरुष ने कहा-राजा मैं जानता हूँ कि तुम इसका कारण जानना चाहोगे, पर मुझे अभी तुम्हारी अन्य कृतियों का भी सच दिखाना है। सभी को दिखाने के बाद ही इसका कारण बताऊंगा।
सत्य, राजा भोज को साथ लेकर आगे बढ़ा। राजा को उनके बनवाए स्वर्ण जड़ित भवन के पास ले गया, जिस पर भोज को बड़ा अभिमान
था। सत्य ने उसे जरा सा छुआ, छूते ही उसकी सारी चमक उड़ गई। सोना लोहे के समान काला हो गया। पत्थर जमीन पर गिरने लगे, थोड़ी ही देर में गगनचुम्बी भवन टूटे फूटे खंडहर में बदल गया।
अब तो राजा बहुत परेशान हो गया। सत्य ने कहा- राजन दुखी मत होना। अभी और मेरे साथ आओ। मैं तुम्हारे सभी धर्म कार्यों की वास्तविकता सामने रख देता हूं।
वृद्ध पुरुष के रूप में आया सत्य, जिस वस्तु पर अंगुली लगाता था, उसी की चमक दमक गायब हो जाती थी और टूटे फूटे नष्ट रूप में वह
भूमि पर गिर पड़ती थी।
दान में दी हुई धन की बड़ी भारी स्वर्ण राशि भी छूते ही मिट्टी कंकड़ में बदल गई। राजा को अपनी जिन जिन वस्तुओं पर अभिमान था, उन सभी को सत्य ने स्पर्श करके दिखाया। वे सभी पत्थर, मिट्टी में बदलती गईं। राजा की आंखों के सामने अंधेरा छा गया। राजा दुखी होकर जमीन पर बैठ गया।
सत्य ने कहा- राजा भोज, वास्तविकता को समझो। भ्रम में मत पड़ो। भौतिक वस्तुओं के आधार पर धर्म की कमी या अधिकता नहीं होती। कर्म के राज्य में भावना का सिक्का चलता है। भावना के अनुरूप ही पुण्य फल प्राप्त होता है। यश की इच्छा से, लोक दिखावे के लिए जो कार्य किए गए हैं, उनका फल इतना ही है कि दुनिया की वाहवाही मिल जाए।
सच्ची सद्भावना से, निस्वार्थ होकर, कर्तव्य भाव से जो कार्य किए गए हैं, वो ही पुण्यफल हैं। एक गरीब व्यक्ति जिसके पास पैसा नहीं है, यदि निस्वार्थ भाव से किसी को एक लोटा जल पिलाता है तो उसका पुण्य किसी यश की इच्छा रखने वाले धनी व्यक्ति के लाख करोड़ रुपये खर्च करने से अधिक है।
कर्तव्य भावना से लोक कल्याण के लिए किए कार्यों का पुण्य होता है। उसी का पुण्य फल प्राप्त होता है। बाकी अन्य आडम्बर तो दिखावा मात्र हैं। उनकी पहुंच तो इस लोक तक ही है। धर्म के राज्य तक इनकी पहुंच नहीं हो सकती।
इतना कहकर वृद्ध पुरुष के रूप में आया हुआ सत्य अंतर्ध्यान हो गया। राजा भोज की नींद टूटी। उन्होंने गंभीरतापूर्वक अपने
स्वप्न पर विचार किया और अन्त में इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि भौतिक साधनों की सहायता से पुण्य कमाने की आशा छोड़कर मनुष्य
को अपने अन्तःकरण की पवित्रता और शुद्धता की ओर बढ़ना चाहिए, क्योंकि धर्म एवं अधर्म की जड़ मन में है, बाहर नहीं।- साभार- इंटरनेट