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इस छोटे से कस्बे में बड़े संकल्प को निभा रहे विनोद नेगी

नौ साल से दिव्यांग, आपदा प्रभावित, अनुसूचित जाति और गरीब परिवारों के बच्चों को कंप्यूटर की फ्री ट्रेनिंग

राजेश पांडेय। न्यूज लाइव

श्रीकेदारनाथ हाईवे पर रुद्रप्रयाग शहर से करीब 30 किमी. दूरी पर भीरी, छोटा सा कस्बा है। सुबह साढ़े सात बजे का समय है, यहां राजकीय इंटर कॉलेज वाले रास्ते पर विनोद सिंह नेगी के सेंटर में सभी सातों कंप्यूटर पर बच्चे हिन्दी व अंग्रेजी टाइपिंग सीख रहे हैं। छोटे से कमरे में चलने वाला यह सेंटर शहर के किसी इंस्टीट्यूट की तरह साज सज्जा वाला नहीं है, पर विनोद नेगी का संकल्प बहुत बड़ा है। इस संकल्प को पूरा करने के लिए विनोद और उनकी पत्नी अपनी दिव्यांग पेंशन भी खर्च कर देते हैं।

रुद्रप्रयाग जिले के भीरी में विनोद सिंह नेगी के साक्षी कंप्यूटर सेंटर में सभी सातों कंप्यूटर पर बच्चे हिन्दी व अंग्रेजी टाइपिंग सीख रहे।

भीरी के राजकीय इंटर कॉलेज से वापस आते समय हमने विनोद नेगी से बात की। राजकीय महाविद्यालय, अगस्त्यमुनि से अंग्रेजी विषय में पोस्ट ग्रेजुएट विनोद बताते हैं, यह सेंटर वर्ष 2013 से चल रहा है। यहां बच्चों को कंप्यूटर की बेसिक ट्रेनिंग देते हैं, जिसमें हिंदी, अंग्रेजी, टाइपिंग, वर्ड, पावर प्वाइंट, एक्सएल, पेंट ब्रश शामिल है।

विनोद, रुद्रप्रयाग जिले के बड़ेथ में भी एक सेंटर चला रहे हैं। उन्होंने कंडारा और अपने गांव स्यूर में भी बच्चों को प्रशिक्षण दिया। किसी भी सेंटर पर दिव्यांग, अनुसूचित जाति, बीपीएल (गरीबी की रेखा से जीवन) तथा आपदा प्रभावित बच्चों से शुल्क नहीं लिया जाता।

विनोद दावा करते हैं, 2013 से अभी तक 6000 बच्चों को निशुल्क प्रशिक्षण दे चुके हैं, जिसका पूरा रिकार्ड रखा है। आजीविका चलाने के लिए अन्य बच्चों से प्रतिमाह 500 रुपये शुल्क लेते हैं। बच्चों को छह माह का प्रशिक्षण दिया जाता है। दोनों सेंटर सुबह सात से शाम सात बजे तक खुलते हैं। प्रत्येक बैच में प्रतिदिन एक घंटे का प्रशिक्षण होता है। यहां एडमिशन के लिए कोई आयु सीमा नहीं है। निशुल्क प्रशिक्षण की पात्रता के लिए आवश्यक दस्तावेजों की प्रतियां जमा करनी होती हैं।

विनोद सिंह नेगी

“यह प्रेरणा मेरी स्वयं की है। मैं स्वयं दिव्यांग हूं, मैंने बहुत करीब से दिव्यांग होने की दिक्कतों को सहन किया है, जिसने दुख झेला हो, वही दुख समझ सकता है। दिव्यांग बच्चों को दूर शहरों में जाने में बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। लोगों में आम तौर पर यह धारणा रहती है कि दिव्यांग बच्चे दूसरों पर आश्रित रहते हैं। मैं इस सोच को खत्म करना चाहता हूं। मैं बच्चों को आत्निर्भर बनना देखना चाहता हूं। जब में दो वर्ष का था, तब मेरे पापा की मृत्यु हो गई थी। मैंने गरीबी को भी बहुत करीब से देखा है। जीवन बड़ी चुनौतियों से लड़ते हुए आगे बढ़ा। आज भी जीवन में बहुत संघर्ष है। पर, सोचता हूं, हमें एक दूसरे को सहयोग करते हुए ही तो आगे बढ़ना है,” विनोद बताते हैं।

विनोद ने बताया, उनकी पत्नी भी अंग्रेजी विषय में एमए हैं। वो बड़ेथ वाला सेंटर संचालित करती हैं। वर्तमान में भीरी में 25 और बड़ेथ सेंटर पर 27 बच्चे प्रशिक्षण ले रहे हैं। उनके पास कोई और रोजगार या खेतीबाड़ी नहीं है, जिससे अपने संकल्प को पूरा करने में सहयोग ले सकें। हम किसी प्रोजेक्ट या संस्था से कोई आर्थिक सहयोग नहीं ले रहे हैं। जो भी कुछ मिलता है, वो अन्य बच्चों की फीस से है। कई बार ऐसा भी हुआ कि हमारे पास कोई पैसा नहीं बचा। हमने अपनी पेंशन भी सेंटर के लिए इस्तेमाल की।

एक सवाल पर विनोद कहते हैं, ऐसा बहुत कम होता है कि कोई ट्रेनिंग के बाद नौकरी लगने पर शुक्रिया करने आए। पर कुछ बच्चे आते भी हैं। हमें बहुत अच्छा लगता है, जब कोई बच्चा यहां से सीखने के बाद कामयाब होता है। कई युवा सरकारी नौकरी पर हैं। कुछ अपना स्वरोजगार चला रहे हैं।

बताते हैं, उन्होंने गोकुल सोसाइटी, देहरादून में कंप्यूटर की बेसिक ट्रेनिंग ली और पांच साल देहरादून में बच्चों को सिखाया। 2013 से रुद्रप्रयाग जिला में काम कर रहे हैं। वो गोकुल सोसाइटी के माध्यम से रुद्रप्रयाग जिला में दिव्यांगों को कृत्रिम अंग भी दिलवाते हैं। कोरोना काल में दो साल तक सेंटर बंद रहा। कोरोना के समय, उन्होंने अन्य संस्थाओं की मदद लेकर जरूरत वाले परिवारों को राशन  वितरित कराया।

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राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन कर रहे हैं। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते हैं। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन करते हैं।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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