युवा किसान ने खेत में ही बर्बाद हो गई धान की फसल पर बड़े दुखी मन से चलाया ट्रैक्टर
खैरी गांव में धान को बौना रोग लग गया, अब तक 30 हेक्टेयर फसल प्रभावित होने की सूचना

राजेश पांडेय। न्यूज लाइव
वर्षों से खेती कर रहे खैरी गांव के 75 वर्षीय तारा सिंह कहते हैं, “हमें आंतरिक खुशी तब होगी, जब खेती से कुछ लाभ मिलेगा। मेरे पास 50 बीघा खेती है, इसके बाद भी हम गुजारा करने की स्थिति में ही हैं। हम सरकार की नीतियों को सुनते हैं, पर किसानों की हालत देखने के लिए जमीन पर कोई नहीं आता। पहले उनका दस बीघा खेत नदी की चपेट में आ गया। अब सात-आठ बीघा धान की खेती में रोग लग गया। कास्तकारी में हम सबसे आगे रहते हैं। अच्छा बीज बोया था। खेत बर्बाद होने से हम तो मारे गए, खाली हो गए। फसल बचाने के लिए बहुत दवाइयां कीं, पर कुछ राहत नहीं मिली। पूरे खेत पर ट्रैक्टर चलाना पड़ गया।”
बुजुर्ग किसान तारा सिंह बताते हैं, “बहुत पहले से हम बीजेपी से जुड़े हैं, सभी लोग कहते हैं, मैं बीजेपी से जुड़ा हूं। हम यह नहीं कहते, आप कुछ नहीं करते, अगर करते हो तो हमें आकर दिखाओ तो सही, क्या कर रहे हो। किसान को छह-सात महीने की फसल में कुछ बचत नहीं होती। किसान फिर खाली रह जाते हैं। गन्ना खेतों में खड़ा है, जब इसका हिसाब होता है, तो लाभ नहीं मिलता।”

खैरी गांव, देहरादून जिले के डोईवाला ब्लाक स्थित मारखमग्रांट ग्राम पंचायत का हिस्सा है। यहां बीते सोमवार (5 सितंबर, 2022) को बुजुर्ग किसान तारा सिंह के पुत्र रविंद्र सिंह सैनी को मजबूरी में धान की लगभग सात से आठ बीघा फसल पर ट्रैक्टर चलाना पड़ा।
रविंद्र, हमें खैरी गांव में अपने घर से लगभग आधा किमी. दूर स्थित खेत दिखाने ले जाते हैं। बताते हैं, फसल लगे खेत को रौंदने का निर्णय एकदम नहीं लिया, बल्कि काफी सोच विचार किया था। पौधे की बढ़वार नहीं हो रही थी। पौध पीली पड़ गई थी। तीन-तीन बार दवाइयों का स्प्रे किया। कहीं से कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिल रहा था। फसल खराब होते देख मन काफी दुखी था। उन्होंने मोटे चावल वाला धान बोया था। पता चल रहा है कि कुछ और गांवों में भी फसल में यह रोग लगा है।
रविंद्र बताते हैं, अक्तूबर में तोड़िया बोएंगे। अब तक धान की इस फसल पर लगभग 50 से 60 हजार रुपये की लागत आ गई थी। यहीं नहीं, प्रति बीघा लगभग पांच कुंतल धान मिलता, वो भी नहीं मिल सकेगा। धान की खेती में ऐसा पहली बार हुआ है। वो बताते हैं कि कृषि विभाग और बैंक के अधिरकारियों के पास फसल के बीमा के बारे में बात करने गए थे, पर ऐसी कोई व्यवस्था नहीं होने की जानकारी मिली। इसके बाद मैंने, नई फसल की तैयारी करनी शुरू की। रविंद्र के अनुसार, उनके खेत को देखने के लिए अभी तक कोई अधिकारी नहीं पहुंचे।

वहीं, रविंद्र सैनी के खेत में पहुंचे बुल्लावाला के किसान अमीचंद बताते हैं, उन्होंने पहली बार धान की यह हालत देखी। इस पौधे को अभी तक दो से तीन फीट तक ऊंचा बढ़ा होना था। यह रोग तो खेत को खा गया। वहीं, मोहन सिंह बताते हैं, पहले हमने ऐसा नहीं देखा, इस बार पौधा जहां का तहां रह गया। पहले पत्ता लपेट बीमारी आती थी, इस बार पौधे छोटे रहने की बीमारी है।
शेरगढ़ के किसान अजीत सिंह, जो वार्ड मेंबर भी हैं, बताते हैं, हमारे यहां माजरीग्रांट, शेरगढ़, छिद्दरवाला में भी धान की हालत खराब है। मेरा खुद का, तीन बीघा खेत का 90 फीसदी हिस्सा खत्म हो गया है। एसडीएम को ज्ञापन दिया है, उन्होंने कृषि विभाग के अधिकारी को निर्देशित किया है। छिद्दरवाला में 18 बीघा धान की फसल को आज ही जोता गया है। कहते हैं, किसान की आय दोगुनी नहीं होगी, पूंजीपतियों की आय दोगुनी हो रही है। कोई भी अधिकारी हमारे खेतों में आकर नहीं देख रहा है। किसानों की सुनवाई नहीं हो रही है।

चार दिन में मुआवजा नहीं तो आंदोलन करेंगे
किसान नेता रणवीर सिंह, जो रविंद्र के खेत में पहुंचे थे, का कहना है, इस संबंध में सरकार को ज्ञापन देंगे। मुआवजे के लिए समय सीमा निर्धारित कराएंगे। रोग से छुटकारे के लिए किसानों को निशुल्क दवा दिलाने का प्रयास करेंगे।
किसान नेता हरेंद्र बालियान का कहना है, ब्लाक से किसान को किसी भी तरह की सुविधा नहीं मिलती। धान की फसल को किसान ने खुशी में नहीं बल्कि बहुत तंगी और दर्द के साथ जोता है। अगर, खेत में फसल सही रहती तो, कितने घरों को अनाज मिलता। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा, अगर किसानों को मुआवजा देने की कार्यवाही चार दिन में नहीं हुई तो तहसील पर अनिश्चितकालीन धरना प्रदर्शन करेंगे।
डोईवाला क्षेत्र में 30 हेक्टेयर धान की खेती प्रभावितः कृषि अधिकारी
वहीं, कृषि अधिकारी इंदु गोदियाल का कहना है, धान के खेतों का सर्वे किया जा रहा है। धान की पूरी फसल खराब नहीं हुई है। अभी तक के सर्वे के अनुसार, डोईवाला ब्लाक में 30 हेक्टेयर फसल प्रभावित होने की जानकारी है। सर्वे जारी है, प्रतिदिन की रिपोर्ट तैयार की जा रही है। विशेषज्ञ खेतों का निरीक्षण कर रहे हैं। किसानों को फसलों की सुरक्षा के उपायों की जानकारी दी जाती रही है।
कृषि अधिकारी के अनुसार, पौधे के बौनापन की वजह आवश्यक पोषक तत्वों की कमी, मिट्टी में रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्युनिटी) कम होना तथा जल प्रबंधन सही नहीं होना है। श्यामपुर न्याय पंचायत क्षेत्र छिद्दरवाला में यह दिक्कत अधिक है। प्रतिदिन की सर्वे रिपोर्ट विभाग के उच्चाधिकारियों को भेज रहे हैं। मुआवजा के संबंध में उच्चाधिकारियों ने ही निर्णय लेना है।
क्या है यह रोग
एक रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली के निदेशक डॉ अशोक कुमार सिंह ने बौना रोग को लेकर सलाह जारी की है। कहते हैं, “पंजाब, हरियाणा और उत्तराखंड से किसानों की शिकायतें आ रहीं हैं कि उनके खेतों में कुछ बौने पौधे दिख रहे हैं। इन बौने पौधों की संख्या अलग-अलग किस्मों में कम और ज्यादा है, चाहे वो बासमती किस्में हों या गैर बासमती किस्में हों, दोनों में यह शिकायत पाई जा रही है। इनका प्रभाव 5 प्रतिशत से लेकर कुछ किस्मों में 10-12 या 15 प्रतिशत तक पाया गया है। कुछ खेतों में यह समस्या दिख रही है कुछ में नहीं दिख रही है।”

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली के वैज्ञानिकों ने धान के पौधों का अध्ययन किया और पाया कि यह बीमारी एक वायरस फीजीवायरस (fijivirus) की वजह से हुई है, इसे सदर्न राइस ब्लैक-स्ट्रीक्ड ड्वार्फ वायरस’ (SRBSDV) भी कहते हैं। यह वायरस व्हाइट-ब्लैक प्लांट हॉपर यानी फुदका कीट से बीमार पौधों से स्वस्थ पौधों में प्रसारित होता है। जब यह कीट बीमार पौधों के ऊपर बैठकर उसका रस चूसता है और इसके साथ ही उसका वायरस भी दूसरों पौधों को संक्रमित कर देता है। इस बीमारी से बचने के लिए व्हाइट-ब्लैक प्लांट हॉपर यानी फुदका कीट का नियंत्रण सबसे जरूरी होता है। खेत में लगे बल्ब के आसपास ये कीट दिखाई देते हैं या पौधे के निचले हिस्से तने में दिखाई देते हैं।
दक्षिण चीन में 2001 में मिला था यह वायरस
धान में रोग को लेकर प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया है, धान के पौधे “बौने (Dwarfing)”हो गए। वैज्ञानिकों ने इसके लिए ‘सदर्न राइस ब्लैक-स्ट्रीक्ड ड्वार्फ वायरस’ (SRBSDV) को जिम्मेदार माना है। इसका नाम दक्षिणी चीन के नाम पर रखा गया था, जहाँ इसे पहली बार वर्ष 2001 में रिपोर्ट किया गया था।
बौना रोग के खास लक्षण
बौने पौधों में कल्ले नहीं फूटते हैं और वृद्धि रुक जाती है। पौधे आकार में छोटे हैं, उनकी वृद्धि नहीं हुई है और उन्हीं के साथ लगाए गए उन्हीं के किस्म के दूसरे पौधे अगर देखें तो उनकी लंबाई काफी बढ़ गई है। पौधे गहरे हरे रंग के हैं। पौधों को उखाड़ते हैं तो ये बड़ी आसानी से उखड़ जाते हैं। जड़ों का विकास भी इनका बहुत अच्छा नहीं होता है, साथ ही जड़ों में कालापन आ गया है। बौने पौधों की ऊँँचाई सामान्य पौधों की लंबाई से आधा से एक तिहाई कम होती है। पौधों का बौनापन सामान्य रूप से 10 से 25 फीसदी और कुछ मामलों में 40 फीसदी से अधिक होने की जानकारी है।