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लोहे का बॉक्स

किसी शहर में एक व्यक्ति रहता था। मृत्यु से पहले उसके पिता ने उसको लोहे का एक बॉक्स देते हुए कहा था कि इसे संभालकर रखना, तुम्हारे काम आएगा। यह बहुत कीमती है। पिता की मृत्यु के बाद वह लोहे के बॉक्स को बड़ी सावधानी से संभाले हुए था। एक बार उसको कुछ दिन के लिए शहर से बाहर जाना था। उसने सोचा कि इस बॉक्स को कहां लेकर जाऊंगा। वह अपने दोस्त के पास गया और कहा कि कुछ दिन के लिए इस बॉक्स को अपने पास सुरक्षित रख लो।

दोस्त ब्याज पर लोन देने का काम करता था। उसको कीमती बॉक्स के बारे में पहले से जानकारी थी। उसने कहा, हां-हां, क्यों नहीं, तुम निश्चिंत होकर जाओ। बॉक्स मेरे पास छोड़ दो। आकर ले जाना। उसने दोस्त पर विश्वास किया और उसको बॉक्स देकर शहर से बाहर चला गया। कुछ दिन बाद वह व्यक्ति अपने शहर आया और दोस्त के पास गया। उसने दोस्त से अपना बॉक्स मांगा, लेकिन दोस्त ने जवाब दिया, तुम्हारा बॉक्स तो चूहों ने कुतर दिया। मेरे पास तुम्हारा बॉक्स नहीं है।

वह व्यक्ति निराश होकर अपने घर लौट आया। वह समझ गया था कि दोस्त के मन में लालच आ गया है, इसलिए बेफिजूल की बात कर रहा है। उसने उसको सबक सिखाकर अपना बॉक्स वापस लेने की तरकीब निकाली। कुछ दिन रूकने के बाद वह दोस्त के पास पहुंचा और उससे कहा, क्या कुछ दिन के लिए अपने बेटे को मेरे साथ भेज सकते हो। मेरे पास बहुत सारा काम है, तुम्हारा बेटा मेरी मदद कर देगा।

उसके दोस्त ने सोचा, यह तो सीधा व्यक्ति है। बेटे को साथ ले जाने के पैसे भी देगा। उसने खुशी खुशी अपने बेटे को उसके साथ भेज दिया। जब कुछ दिन बाद भी बेटा वापस नहीं लौटा तो उसने बुलावा भेजा कि बेटे को वापस भेज दो। उस व्यक्ति ने जवाब दिया कि तुम्हारे बेटे को चील उठा ले गई। वह वापस नहीं लौट सकता। इस जवाब से दोस्त को काफी गुस्सा आया और उसने उस व्यक्ति से कहा, बेवकूफों  की तरह बातें मत करो। इतने बड़े बच्चे को चील कैसे उठा सकती है। सीधे-सीधे बेटे को वापस भेज दो, नहीं तो…।

उस व्यक्ति ने कहा, नहीं तो… क्या कर लोगे। तुमने भी तो मेरे साथ ऐसा ही व्यवहार किया है। क्या चूहे लोहे का बॉक्स कुतर सकते हैं। जब चूहे ऐसा कर सकते हैं तो तुम्हारे बेटे को भी तो चील उठाकर ले जा सकती है। उसकी बात सुनकर दोस्त को अपनी गलती का अहसास हो गया। उसने कहा, मुझसे गलती हो गई। मैं अभी तुम्हारा लोहे का बॉक्स देता हूं, मेरे बेटे को वापस कर दो। उसने तुरंत लोहे का बॉक्स वापस कर दिया और अपने बेटे को वापस ले गया।

 

 

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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