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स्पाइडर ने लकड़बग्घे को ठग लिया

यह उत्तरी नाइजीरिया की कहानी है। एक लकड़बग्घा अपनी गुफा में बच्चों को खाना खिलाकर लौटा ही था कि कहीं से एक बड़ा स्पाइडर बच्चों के पास पहुंच गया। उसने बच्चों से पूछा, क्या तुम्हारी माता पिता घर पर हैं। बच्चों ने कहा, नहीं वो घर पर नहीं हैं। स्पाइडर ने कहा, मैं तुम्हारा अंकल हूं। तुम्हारे पापा ने मुझे यहां भेजा है। मैं काफी थका हूं, जब तुम्हारे मम्मी- पापा खाना लेकर आएं तो मुझे जगा देना। बच्चों ने कहा, ठीक है, आप सो जाओ। स्पाइडर ने गुफा के किसी कोने में जगह देखी और सो गया।

दोपहर में लकड़बग्घा खाना लेकर पहुंचा और बच्चों से कहा, तुम सभी मिलकर खा लेना। बच्चों ने कहा, ठीक हैं, हम सभी मिलकर खा लेंगे। लकड़बग्घा के जाने के बाद बच्चों ने स्पाइडर को जगाया और कहा, अंकल उठो। पापा ने हम सबको खाना दिया है, आओ कुछ खा लो। स्पाइडर तो खाने के ही इंतजार में था, उसने बिना समय लगाए खाना चट कर दिया। बच्चों के हिस्से में थोड़ा सा खाना ही आया। खाने के बाद स्पाइडर फिर से कोने में जाकर सो गया।

शाम को लकड़बग्घा फिर गुफा में पहुंचा और बच्चों को कुछ खाने के लिए दिया। लकड़बग्घा ने बच्चों से कहा, तुम सब मिलजुल कर खा लेना। बच्चों ने फिर से वही जवाब दिया, हां, हम सब मिलकर खा लेंगे। बच्चों ने स्पाइडर को उठाते हुए कहा, अंकल खाना आ गया है। पापा ने कहा है कि तुम सब मिलकर खा लेना। आप भी आइए। स्पाइडर तो इंतजार ही कर रहा था, उसने कुछ ही देर में आधे से ज्यादा खाना चट कर दिया। बच्चे फिर भूखे रह गए।

कुछ देर बाद लकड़बग्घा गुफा पर पहुंचा तो बच्चों ने कहा, हमें भूख लगी है। कुछ खाने को दो। लकड़बग्घा ने कहा, अभी तो तुम्हें दो बार खूब सारा खाना खिला चुका हूं। तुम्हारा पेट अभी भी नहीं भरा। बच्चों ने कहा, वो अंकल हैं न, जिन्हें आपने भेजा था, उनको भी तो खाने के लिए दिया था। वो ही हमारा काफी खाना खा गए। कोने में आराम कर रहे स्पाइडर ने बच्चों और लकड़बग्घे की बात सुन ली। वह चुपचाप से वहां से खिसक कर पास ही रह रहे डॉगी के घर पहुंच गया।

उधर, लकड़बग्घे ने बच्चों ने पूछा, मैंने तो किसी को नहीं भेजा था। कहां है वो, बताओ। बच्चों ने कोने की तरफ इशारा करते हुए कहा, वहां आराम कर रहे हैं अंकल। लकड़बग्घे ने कहा, वहां तो कोई नहीं है। अच्छा तो मुझे ठगकर चला गया वो। अभी पकड़ता हूं उसको। दूसरी तरफ स्पाइडर डॉगी के पास पहुंचा, उस समय तक डॉगी अपना खाना निपटा चुका था। डॉगी ने उससे कहा, मेरे पास तुम्हें खिलाने के लिए कुछ नहीं है। स्पाइडर ने जवाब दिया, मुझे कुछ नहीं चाहिए। मैं पहले ही काफी खा चुका हूं।

तभी लकड़बग्घा वहां पहुंच गया और उसने पूछा, तुम दोनों में से कौन है, जो मेरे बच्चों को खाना खा गया। स्पाइडर ने डॉगी की तरफ इशारा कर दिया। बस फिर क्या था लकड़बग्घा डॉगी की ओर झपटा। डॉगी कुछ समझ नहीं पाया था, लेकिन उसने लकड़बग्घा को अपनी ओर गुस्से में आता देखकर भागने में ही भलाई समझी। वह घर के पिछले दरवाजे से भाग लिया। वहां अकेले रह गए स्पाइडर ने समझा कि अब डॉगी बहुत जल्दी वापस आने से रहा। वह डॉगी के बिस्तर पर आराम करने लगा।

 

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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