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तक धिनाधिनः मुस्कराइए, आप त्रिवेणीघाट पर हैं

हमें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई क्या कह रहा है। यह हमें पता है कि हम जो भी कुछ कर रहे हैं, वो बहुत अच्छा है और कम्युनिटी से कनेक्ट करता है। हम कम्युनिटी से ही आते हैं और उसके कल को संवारने के लिए पहल भी हमें ही करनी होगी। यह वो पहल है जो बताती है कि आने वाला कल बेहतर होगा, इस बात की पूरी संभावनाएं हैं।

उत्तराखंड के युवा फाइन आर्टिस्ट राजेश चंद्रा और उनकी टीम से मिलने के लिए रविवार सुबह हम ऋषिकेश के त्रिवेणीघाट पर थे। हम जानना चाहते हैं कि बदलते दौर में, जहां दुनिया के अधिकतर लोग टच स्क्रीन और क्लिक के इर्द गिर्द जमा है, वहां युवा कहां है। ‘कर लो दुनिया मुट्ठी में’ एक स्लोगन हम सुनते रहे हैं, जिसका मतलब मैं जो समझा हूं, वह यह कि सूचना तकनीकी के समय में हम सब एक दूसरे से आसानी से जुड़ रहे हैं। यहां यह बात मायने नहीं रखती कि कौन कितनी दूरी पर है। सारी सूचनाएं, जानकारियां पल पल में अपडेट होती हैं। यानी आपकी मुट्ठी में जो डिवाइस है, वह आपको पूरी दुनिया से जोड़े है। अभी यह नारा तो नहीं बदला, पर एक आम धारणा जरूर बन रही है कि दुनिया तो मुट्ठी में हुई या नहीं, पर इंटरनेट की भूलभुलैया और सोशल मीडिया की मुट्ठी ने युवाओं को जरूर जकड़ लिया है। यह धारणा सही है या गलत। इसका जिक्र करके ही आपसे आज का संवाद पूरा करूंगा।

इस वक्त हम जानना चाहते हैं कि युवाओं के बारे में आम नजरिया, क्या वाकई सही है। क्या अधिकतर युवा वही सब कुछ कर रहे हैं, जैसा कि हम सोचते हैं। उनके गोल क्या हैं। अपने करिअर को आगे बढ़ाने के साथ -साथ सोसाइटी के लिए वो क्या सोचते हैं। क्या वाकई वो कुछ कर रहे हैं। उनकी इस सोच को बढ़ाने के लिए क्या कुछ किया जा सकता है। इसके साथ ही और भी बहुत जिज्ञासाओं को लेकर मानव भारती तक धिनाधिन की टीम रविवार सुबह ऋषिकेश त्रिवेणीघाट पहुंची।

तक धिनाधिन के मुख्य मार्गदर्शक और मानवभारती सोसाइटी के निदेशक डॉ. हिमांशु शेखर जी के साथ सिविल सर्विसेज परीक्षा के जानकार अभिषेक वर्मा जी भी ऋषिकेश आए। डॉ. हिमांशु शेखर जी जेएनयू से एमफिल तथा दिल्ली यूनिव्रर्सिटी से एजुकेशन व साइकोलॉजी में डॉक्टरेट हैं और करीब 35 वर्ष से शिक्षा और समाज पर कार्य कर रहे हैं।

त्रिवेणीघाट पर राजेश चंद्रा को फोन लगाया तो उन्होंने बताया कि इस समय नावघाट के पास हैं, वहां आ जाइए। बता दूं कि फाइन आर्टिस्ट राजेश चंद्रा हर संडे अपने साथियों के साथ गंगा किनारे पड़ी पॉलिथिन और कचरे को इकट्ठा करते हैं, बिना किसी शोर और प्रचार के। फिर से, घाट पर बड़ी संख्या में लोग स्नान और पूजा पाठ में व्यस्त दिखे। गंगा की एक धारा अब घाट से होकर जा रही है, जो सुकून देती है। मुझे याद है कि ऋषिकेश के निवासियों ने गंगा की धारा को घाट के पास लाने की मांग कितनी तेजी से उठाई थी। अब लगता है कि गंगा की धारा घाट को छोड़कर नहीं जाएगी।

हम आगे बढ़ रहे थे नावघाट की ओर। अचानक हमारा ध्यान घाट के एक हिस्से पर गया, जहां कुछ बच्चे किताबें कॉपियां लेकर बैठे हैं और कुछ युवा उनको पढ़ा रहे हैं। एक-एक युवा के साथ तीन-चार बच्चे। कोई बच्चा लिख रहा है और कोई कुछ समझ रहा है और किसी बच्चे का ध्यान घाट की चहल-पहल पर है। हमें समझते देर नहीं लगी कि यह युवाओं का ग्रुप है, जो बच्चों को पढ़ा रहा है। डॉ. हिमांशु शेखर जी ने कहा, हमें इनसे बात करनी चाहिए। ये बहुत अच्छा काम कर रहे हैं।

जब हम डोईवाला से चले थे तो इस बात की कोई उम्मीद ही नहीं थी कि त्रिवेणीघाट पर गंगा स्नान के साथ एक और पुण्य का काम, जिसको शब्दों की सीमा में नहीं बांधा जा सकता, देखने, सुनने और सीखने को मिलेगा। त्रिवेणीघाट पर बच्चों को पढ़ाने वाले एक युवा को अपना इंट्रोडक्शन देते हुए हमने कहा, यूं ही चलते चलते आपको और बच्चों को देखा तो कुछ जानने की इच्छा हो गई। क्या अपने बारे में बताएंगे।

हमें एक बच्चे को कुछ समझा रहे करीब 19 साल के युवा गीत सुनेजा से मिलवाया गया। गीत ने हाल में इंटरमीडियेट साइंस स्ट्रीम में 97 परसेंट स्कोर किया है और डीयू में एडमिशन के लिए एप्लाय कर रहे हैं। करीब एक साल से हर संडे बच्चों को पढ़ाने यहां आते हैं। यहां मायाकुंड और आसपास रहने वाले बच्चे पढ़ने आते हैं। ये बच्चे नजदीक ही राजकीय स्कूलों में पढ़ते हैं।

गीत बताते हैं कि 10 पास करने के बाद से ही सोच रहे थे कि कुछ ऐसा किया जाए, जो कम्युनिटी के अच्छे के लिए हो। सबसे बड़ा चैलेंज यह है कि जो आप सोचते हैं, उसको शुरू कैसे करें। कुछ दोस्तों से बात की, कई ने कहा, पढ़ाई पर ध्यान लगाओ। बाद में कर लेना यह सबकुछ। निराशा भी हुई पर हमने हिम्मत नहीं हारी। कुछ ऐसे भी दोस्त मिले, जिन्होंने मॉटिवेट ही नहीं किया, बल्कि यहां पढ़ाने भी आए। हमारे ग्रुप का नाम है ‘बिलीव इन स्माइल्स’। यह कार्य आज इस स्थिति में है, अगर गीत सुनेजा, यहां नहीं है तो भी बच्चों को पढ़ाने के लिए टीम संडे को हर हाल में पहुंचेगी। इस टीम में ज्यादातर युवा 12 व 10 पास हैं या इन क्लास में पढ़ रहे हैं। इनमें पारस रतूड़ी, वर्णित कौर, निराली असवाल, मधुर सुनेजा, सुव्रत भारद्वाज, परिधि तयाल, मान्या सुनेजा शामिल हैं।

हमने गीत को बताया कि राजेश चंद्रा और उनके साथियों से मिलने जा रहे हैं। उनके साथ तक धिनाधिन कार्यक्रम होगा, जिसमें कुछ उनकी सुनेंगे और कुछ अपनी सुनाएंगे और बातचीत के क्रम को आगे बढ़ाएंगे। ‘बिलीव इन स्माइल्स’ के संयोजक गीत ने कहा, जरूर। कुछ देर में क्लास की छुट्टी कर रहे हैं। बहुत अच्छा लगेगा। यहां से हम आगे बढ़े और राजेश चंद्रा और उनके साथियों से मुलाकात हो गई। हमने तय किया कि टीन शेड में नहीं बल्कि किसी पेड़ की छांव में तक धिना धिन करेंगे।

वट वृक्ष की छांव के पास ही सीढ़ियां दिखीं, शायद इनसे होकर मायाकुंड जा सकते हैं। राजेश चंद्रा और गीत के साथी व बच्चे सीढ़ियों पर बैठ गए। हमने सबसे तक धिना धिन का अर्थ जानने की कोशिश की। किसी ने कहा, यह तबले की थाप है, जो सुनने में अच्छी लगती है। हमने बताया कि तक धिनाधिन वो थाप है, जो निरंतर रहेगी तो आनंद प्राप्त होगा। तक धिनाधिन ठीक किसी नदी की अविरलता की तरह है, जिसमें बाधा के लिए कोई जगह नहीं है।

हम चाहते हैं कि जिंदगी का तक धिनाधिन जारी रहे, एजुकेशन का तक धिनाधिन चलता रहे, हर चेहरे पर मुस्कराहट के तक धिनाधिन में कोई रूकावट न आए, अच्छे स्वास्थ्य और बहुत सारी खुशियों, नॉलेज शेयरिंग का तक धिनाधिन अपना सफर पूरा करता रहे, यह हमारा प्रयास है।

हमने राजेश चंद्रा से एक इमेजनरी सवाल पूछा, आप कलर्स से खेलते हो, कलर्स हैं तो आर्ट है, कलर्स के बिना क्रियेटिविटी नहीं। अगर दुनिया में एक ही कलर होता तो कैसा लगता। राजेश ने जवाब दिया, बिना कलर के जिंदगी नहीं है। रंग तो किसी भी कला के लिए अत्यंत आवश्यक हैं। परिधि ने कहा, कलर है तो लाइफ है। कलर के बिना कुछ नहीं। सम्यक जैन ने कहा, जिंदगी उबाऊ हो जाती है।

हमने कहा, हम कलर की ही बात नहीं करते, आप जो भी कुछ देखते हैं, समझते हैं… इन सबकी यानी डायवर्सिटी की बात करें, जैसे खानपान में विविधता, व्यवहार में विविधता, वेशभूषा में विविधता, नॉलेज में विविधता, रूप, रंग में विविधता…। इस पर गीत सुनेजा ने जवाब दिया, हम सब यहां बैठे हैं, यह भी डायवर्सिटी है। हमारे साथ कुछ बड़े बैठे हैं, कुछ बच्चे हैं, कुछ युवा हैं…। हम सबकी एजुकेशन अलग-अलग है, हमारा व्यवहार अलग-अलग है। हमारी सोच अलग-अलग है। हमारे अनुभव एक दूसरे से कम या ज्यादा हैं, हम सबके नाम भी अलग – अलग हैं, यहां तक कि कम्युनिकेशन का तरीका भी अलग है। यह सब भी डायवर्सिटी है। डायवर्सिटी जरूरी है। सभी ने तालियां बजाकर गीत की बात का समर्थन किया।

गीत ने कहा, जब हमने घाट पर बच्चों को पढ़ाना शुरू किया तो कुछ लोग ऐसे मिले, जिन्होंने हमें क्रिटीसाइज किया। सोशल वर्क में आपको चार में से एक ही व्यक्ति ऐसा मिलेगा, जो आपको सपोर्ट करेगा। शुरू में ऐसा हुआ कि हम बच्चों को पढ़ाना शुरू करेंगे या नहीं, ऐसा होता रहा, लेकिन आज हम स्टेबिलिटी के साथ यह काम कर रहे हैं। पहले छह- सात महीने में मैं अकेले ही आता था। 40 बच्चे आते थे एक साथ, जिनको पढ़ाना टफ होता था, लेकिन टीम जुड़ती गई और नये साथी आए। हमारे पास 40 में से 15 बच्चे हैं, लेकिन ये 15 ऐसे हैं, जिनमें सीखने की चाह है।

19 साल के गीत धारा प्रवाह कह रहे थे और सब शांतभाव से उनको सुन रहे थे। कहते हैं, लर्निंग के लिए कोई उम्र नहीं होती। सीखने और सिखाने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। यहां आप हमें जो बता रहे, कुछ चीजें आप हमें सिखाओगे और कुछ आप हमसे सीखकर जाओगे। यह बहुत छोटा सा प्रॉसिजर ( प्रक्रिया) है, जिसे हमें सभी को फॉलो करना है। ऐसे ही लाइफ आगे बढ़ती है। इन बच्चों में सीखने की चाह है और हमारे में सिखाने की। इनसे भी हम चार चीजें सीखते हैं। ये बच्चे ही हैं, जिनके माइंड में टेंशन के लिए कोई जगह नहीं है। थ्री इडियट सबने देखी होगी, कल की कोई चिंता नहीं करनी, केवल आज के लिए जी लो, सफिशियेंट है। अगर हम आज ढंग से जी लिए, तो कल अच्छा होगा ही, इस बात की पूरी संभावना है। यह इन्होंने हमें सिखाया और हम इनको पढ़ाई का कुछ सीखा देते हैं। ऐसे ही सब आगे बढ़ते रहेंगे।

इसी के साथ हमने सबको ‘जंगल में तक धिनाधिन’ की एक कहानी, ‘सतरंगी का अभिमान’ सुनाई। इस कहानी के जरिये विविधता का महत्व बताने की कोशिश की गई। अब बारी थी बच्चों से कुछ सुनने की। हमने कहा, कोई भी कुछ सुनाए। कविता, कहानी, संस्मरण, अनुभव… जो भी आपको अच्छा लगे, सुनाइए। मानव ने हमें ऋषिकेश में एक फैशन शो का किस्सा सुनाया, जिसमें वो शामिल हुए थे।

हर्ष ने कविता सुनाई
बालक हूं मैं वीर निराला, नहीं किसी से डरने वाला।
सपना है मेरा फौजी बनना, देश को आगे बढ़ाऊंगा।।

बिटिया अनीशा ने
‘कक्कू माने कोयल होता, लेकिन यह तो दिन भर रोता
इसलिए हम इसे चिढ़ाते, कहते इसको सक्कू, नाम है इसका सक्कू’

सार्थक नेगी ने कविता
‘रानी बिटिया चली घूमने, दिल्ली से से आगे बढ़ी’।
बच्चों की कविताओं का सबने खूब आनंद लिया।

हमने परिधि से पूछा, क्या अपने ड्रीम को शेयर करेंगी। परिधि क्लास 10 की स्टूडेंट हैं। कहती हैं मम्मी पापा का नाम रोशन करना ही मेरा ड्रीम है। इसके लिए मैं मेहनत कर रही हूं और मुझे सफलता मिलेगी, ऐसा पूरा विश्वास है। सभी ने तालियां बजाकर परिधि की बात का समर्थन किया।

बिलीव इन स्माइल्स टीम के सम्यक जैन, जिन्होंने 12 पास आउट किया है और इंजीनियरिंग में दाखिला लेने की तैयारी है, कहते हैं कि हम कहीं पर भी रहें, लेकिन बच्चों को पढ़ाने, उनके साथ लर्निंग के सिलसिले को हमेशा जारी रखना चाहेंगे। यह बहुत अच्छा लगता है। संडे को बेस्ट बनाना है किसी सोशल कॉज के साथ। संडे को सुबह आठ बजे उठकर, 12 बजे नाश्ता करने, दोपहर तीन बजे खाना खाने से ज्यादा अच्छा है कि संडे को कुछ प्रोडक्टिव बनाया जाए। आज हम जो भी कुछ कर रहे हैं, यही सब जीवन का आनंद है, यह जारी रहना चाहिए। लाइफ में सेल्फ सेटिशफेक्शन बहुत बड़ी बात है।

सम्यक ने बताया कि पांच जून को पर्यावरण दिवस पर बिलीव इन स्माइल्स की ओर से ऋषिकेश में साइकिल रैली निकाली जाएगी। आप सबको आमंत्रित करते हैं पर्यावरण के इस पर्व पर।

सिविल सर्विसेज परीक्षा विशेषज्ञ मानव भारती स्कूल के शिक्षक अभिषेक वर्मा ने –
तेरी मेरी सबकी बात लिखेंगे।
हम ही तो कल इतिहास लिखेंगे।
सूरज के रथ हम चढ़ेंगे जरूर।
हाथ जो बढ़ाएंगे तो चांद नहीं दूर।
सूखे बादलों पर बरसात लिखेंगे।
हम ही तो कल इतिहास लिखेंगे।

इस गीत से अपनी बात की शुरुआत करते हुए सम्यक के सवाल, इच्छाशक्ति कैसे बढ़ती है, का जवाब दिया। उन्होंने कहा कि आप किसी लक्ष्य को हासिल करना चाहते हैं। इसके लिए मॉटिवेशन के साथ यह अत्यंत जरूरी है कि आप किसी भी टास्क के लिए यह अवश्य सोचें कि आपने इस पर पूर्ण सफलता हासिल करनी है। यदि पूर्ण सफलता का विचार कही भी बाधित होने की आशंका है तो पहले बाधाओं से दूर रहने की कोशिश करें। पहले स्वयं को तैयार करें। आप कोशिश करेंगे तो इच्छा शक्ति बढ़ेगी, क्योंकि आप जो भी कर रहे हैं अपनी प्रबल इच्छा से कर रहे हैं। आपको ऐसा पूर्ण विश्वास है कि आप लक्ष्य हासिल करेंगे, हर हाल में, तो पूरे मनोयोग से जुट जाएं। अधूरे मन से कुछ नहीं करना।

हरिद्वार में शिखर पालीवाल के संयोजन में बनीं बीइंग भागीरथ टीम के ऋषिकेश संयोजक और फाइन आर्टिस्ट राजेश चंद्रा, ऋषिकेश में गंगा तटों पर सफाई के लिए हर संडे अभियान चलाते हैं। उनके साथ संजय नेगी, सागर राजभर, मानसी पौखरेल, मोहिनी पौखरेल, अनूप जेठुड़ी, आकाश सिंह, अखिल श्रेष्ठ आज भी त्रिवेणीघाट पर सफाई अभियान में जुटे थे। युवा आर्टिस्ट राजेश ने फाइन आर्ट में ग्रेजुएशन किया है, कहते हैं कि पर्यावरण है तो हम हैं। वो चाहते हैं कि हम सब जगह खुशियों के रंग बिखेरे, हर चेहरे पर मुस्कान लाएं, ताकि आने वाले कल को किसी पर निर्भर न रहना पड़े।

मानवभारती संस्था के निदेशक डॉ. हिमांशु शेखर ने कहा कि राजेश चंद्रा, गीत सुनेजा और आप सभी युवा, बहुत बड़ा काम कर रहे हैं। यहां जितने भी वॉलिंटियर हैं, वो अपने कार्य को डाक्यूमेंट करें। ऐसा होता है कि जब आप किसी को कुछ देते हो, तो आपको उससे ज्यादा मिलता है। शिक्षा और समाज की 35 साल की जर्नी में, बहुत सारे युवाओं के साथ मिलकर कार्य किया। कम से कम 30 ऐसे युवाओं को देखा, जिनको दुनिया की बड़ी यूनिवर्सिटी ने फुल स्कालरशिप के साथ पीएचडी, मास्टर्स करने का मौका दिया। जबकि उनके बराबर योग्यता, मार्क्स वालों को अवसर नहीं मिल पाया।

वजह जानते हैं, स्कॉलरशिप पाने वाले युवाओं ने इसी तरह का जैन्युन काम किया था, जैसा आप यहां कर रहे हैं। उन्होंने अपने सारे वर्क को डॉक्यूमेंट किया था। उन्होंने समाज में बदलाव के लिए अपने इनपुट दिए थे। निसंदेह आप जैसे युवाओं के लिए ही दुनिया की सभी बड़ी यूनिवर्सिटीज के दरवाजे खुलते हैं।

आप अपने अनुभवों को डाक्यूमेंट करें। सोशल मीडिया पर नहीं, बल्कि लिखित में डाक्यूमेंट करें। ये बच्चे आपके लिए केस स्टडीज हैं। आप इन पर काम करते हुए अपना इनपुट देते हो। आप इनमें कुछ बदलाव देखते हो। पहले ये बडे डिमॉटिवेटेड थे, आप इनको बड़ी मेहनत से पढ़ाई की ओर ले गए। आज ये आपसे कुछ प्रश्न पूछने की स्थिति में हैं। इनमें इस बड़े बदलाव की प्रक्रिया को आप डाक्यूमेंट करते हो तो ये आपकी जिंदगी में बड़ा काम आएगा।

इच्छा शक्ति कैसे बढ़ाएं और स्वयं को बाधाओं से कैसे दूर करें, के सवाल पर उन्होंने कहा कि जब भी आप कोई कार्य करते हैं, बीच-बीच में परेशानियां आती हैं। सफलता और असफलता का क्रम जीवन में चलता रहता है। कोई बात आपको मॉटिवेट करती है और किसी से आप डिमॉटिवेट होते हैं। आपको देखना यह है कि जिन बातों से आपके कार्य में बाधा आती है, उनको छोड़ना होगा। उन बातों की तरफ से आपका ध्यान नहीं जाए। उदाहरण के तौर पर सामने देखिए, मिठाई का डिब्बा पड़ा है। मैंने आपका ध्यान इस डिब्बे की ओर दिलाया है। अब कुछ लोग बार-बार उस डिब्बे की ओर देखेंगे, जिससे हमारे बीच संवाद में बाधा आएगी। यह ज्यादा ठीक रहेगा कि संवाद को बनाए रखने के लिए उस डिब्बे को वहां से हटा दिया जाए। इसी तरह कुछ बातें होती हैं, जो किसी भी कार्य में व्यवधान उत्पन्न करती हैं।

अंत में तक धिनाधिन की टीम आपसे कहना चाहती है कि राजेश चंद्रा के संयोजन वाली बीईंग भागीरथ और गीत सुनेजा की पहल बिलीव इन इस्माइल्स की टीमों और उनके कार्यों, उनकी सोच और प्रयास से हमने बहुत कुछ सीखा। ये वो युवा हैं, जो प्रेरणा बन गए। ये बच्चों के साथ नॉलेज शेयरिंग, उनके साथ संवाद, उनको अपने साथ लेकर चलने की एक ऐसी पहल कर रहे हैं, जिसका कारवां आज नहीं तो कल बहुत बड़ा होना है। तभी तो हम कहेंगे कि इन भागीरथ ने हर चेहरे पर अनंतकाल तक के लिए मुस्कराहट बिखेर दी। थैंक्यू राजेश, थैंक्यू गीत… और आपकी टीम। क्योंकि आपने हमें बताया कि युवाओं को कोई अपनी मुट्ठी में नहीं जकड़ सकता, क्योंकि युवा आज अपने युवा नजरिये और सोच के साथ कदमताल कर रहा है।

फिर मिलते हैं किसी और पड़ाव पर, तब तक के लिए बहुत सारी खुशियों और शुभकामनाओं का तक धिनाधिन।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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