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वीडियोः यह कहानी संघर्ष के दौर में ताकत देगी

बाढ़ से जूझ रहे एक पौधे और मिट्टी की कहानी है, जिसमें सूझबूझ से पौधे की जान बच जाती है

देहरादून जिला के दूरस्थ गांव इठारना स्थित राजकीय इंटर कालेज में दूरस्थ गांवों के बच्चे पढ़ाई करते हैं। ये बच्चे पहाड़ की पगडंडिया, संकरे रास्ते और घने वनों से होते हुए कई किमी. का पैदल सफर करते हैं।

डुगडुगी की टीम ने बच्चों को एक कहानी सुनाई जो संघर्ष और कठिन दौर की चुनौतियों से लड़ना सिखाती है। बच्चों ने बड़े ध्यान से इस कहानी को सुना और इसके महत्व पर चर्चा की। कहानी का एक अंश इस प्रकार है-

पहाड़ में बारिश की वजह से सबसे ज्यादा दिक्कत तो नालों- खालों के किनारे खड़े छोटे-बड़े पेड़ पौधों को हो रही है, क्योंकि वो तो कहीं नहीं जा सकते। उनको हर मुसीबत का सामना एक जगह खड़े होकर ही करना है। उनको अपना अस्तित्व संकट में दिख रहा है।

मिट्टी कहती है, मैं तो पूरी कोशिश कर रही हूं कि कोई भी इस बाढ़ में न बहे। अब मैं कुछ कमजोर पड़ रही हूं। मेरा काफी हिस्सा पानी में बह चुका है। अगर तुम अपनी मदद के लिए खुद तैयार नहीं होगे तो मैं भी क्या कर सकती हूं।

पूरी कहानी के लिए देखिये यह वीडियो…

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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