Blog Livecareer

दून के साइक्लिस्ट की कहानीः आप भी बन सकते हैं साइकिलिंग के सचिन तेंदुलकर

देहरादून के रहने वाले करीब 28 साल के विजय प्रताप सिंह ने 2015 में एमबीए कम्पलीट किया और बैंक में जॉब करने लगे। पर, उनको भागदौड़ वाली पेशेगत मजबूरी ज्यादा दिन तक नौकरी नहीं करा पाई। जॉब छोड़ दिया और उन्होंने वो किया, जिसमें उनका मन रमता था। उन्होंने एडवेंचर टूरिज्म में साइकिल के हैंडिल थाम लिए।

पैडल पर पैडल चलाते हुए निकल पडे़ कच्चे-पक्के रास्तों पर। कहते हैं धीमे धीमे ही सही, मैं अपनी उस राह पर आगे बढ़ रहा है, जिसके सपने देखता था। हाल ही देहरादून से हिमाचल की स्पीति घाटी और वहां ऊँचाई वाले गांवों की साइकिल यात्रा से लौटे विजय प्रताप ने डुगडुगी से बात करते हुए अपने अनुभव साझा करने के साथ ही, साइकिलिंग में अवसरों का जिक्र किया।

उनका कहना है कि साइकिलिंग एक उभरता हुआ गेम है। अगर आप इसको प्रोफेशन के तौर पर लेते हैं, तो देखिएगा कि वर्तमान में, क्रिकेट को जहां लाखों लोग खेल रहे हैं, वहीं साइकिलिंग में नेशनल लेवल पर हजारों लोग ही हैं।

आप इसकी सीरियसली अडॉप्ट करते हैं तो आप साइकिलिंग के सचिन तेंदुलकर बन सकते हैं या कोई बड़ा नाम हो सकते हैं। यहां आपके लिए ज्यादा संभावनाएं बन सकती हैं। क्योंकि साइकिलिंग में अभी इतनी कम्पीटिशन नहीं है। बहुत ही कम लोग हैं, जो साइकिलिंग को अडॉप्ट करके आगे आ रहे हैं।

आप साइकिलिंग को करिअर के रूप में अपना सकते हैं। यूरोप के देशों में देखिए, यहां अपने ही देश में हिमाचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर में मनाली से लद्दाख तक साइकिलिंग एक्पीडिशन होते हैं। इसमें सैकड़ों युवा साइकिलिंग गाइड, एक्सपर्ट मैकेनिक के रूप में काम कर रहे हैं और अच्छी सेलरी प्राप्त कर रहे हैं।

उत्तराखंड में साइकिलिंग एक अच्छा करियर ऑप्शन हो सकता है। यहां इतने अच्छे पहाड़ हैं, ट्रेल हैं, आप साइकिल पार्क बनाइए, साइकिल रेस में जाइए, यहां इस फील्ड के लिए काफी संभावनाएं हैं, अगर कोई चाहे।

इसी साल 24 जून को देहरादून से अपने साथी हिमेश के साथ, साइकिल से स्पीति घाटी की ओर रवाना हुए। वाया नाहन, शिमला, किन्नौर जिले के रिकांगपियो होते हुए स्पीति पहुंचे विजय का कहना है कि वो कौन सी राह है, जिसमें मुश्किलें नहीं हैं। यह हमारे पर निर्भर करता है कि मुश्किलों का सामना कैसे करते हैं। हम पूरे इंतजाम के साथ साइकिल से सफर पर जाते हैं, इसलिए कोई दिक्कत नहीं होती।

वैसे आपको बता दें, विजय प्रताप की मार्केटिंग एवं इंटरनेशनल बिजनेस में एमबीए की पढ़ाई उनकी संस्था Adven Thrill को आगे बढ़ाने में खूब काम आ रही है। कहते हैं कि मैं अपनी पढ़ाई को अपनी पसंद के प्रोफेशन में इस्तेमाल कर रहा हूं। साइकिलिंग, माउंटेनियरिंग, ट्रेकिंग, वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी करना मुझे अच्छा लगता है और इसको ही मैंने व्यवसाय बनाया।

उत्तराखंड में साइक्लिस्ट ग्रुप पहाड़ी पैडलर्स के साथ भी जुड़े हैं। नियोविजन के संस्थापक गजेंद्र रमोला ने इस ग्रुप की स्थापना की है। यह ग्रुप राज्य में उन स्थानों तक साइकिल यात्रा करता है, जहां पर्यटन की संभावनाएं हो सकती हैं। इसका मकसद राज्य में संयमित, अनुशासित पर्यटन को बढ़ावा देकर स्थानीय स्तर पर आजीविका के विकल्पों पर फोकस करना है।

काफी समय हो गया, मैं बाइक राइड नहीं करता। मैंने जब से साइकिल को थामा है, तब से अपने सपने पूरे करने के लिए पहाड़ की चढ़ाई व ढलान पर घूम रहा हूं। अपने घर से करीब 14 किमी. दूर आफिस तक आना और जाना साइकिल पर ही होता है। मैं काफी समय से यह कर रहा हूं, इसलिए किसी खास एक्सीपीडिशन के लिए मुझे किसी विशेष तैयारी की जरूरत नहीं पड़ती।

स्पीति घाटी तक का साइकिलिंग टूर पूरा करके 19 जुलाई 2021 को देहरादून लौटे विजय प्रताप बताते हैं कि उनका साइकिलिंग एक्सपीडिशन (Cycling Expedition) केवल देहरादून से हिमाचल प्रदेश में स्थित स्पीति घाटी तक का था।

वहां से भी हम साइकिल पर ही देहरादून लौटे हैं, पर, उस रास्ते से नहीं, जिससे होकर गए थे। हम रास्ते में रुकते हुए, लोगों से मिलते हुए, उनसे साइकिलिंग पर चर्चा करते हुए आगे बढ़ते रहे। बताते हैं कि स्पीति में कुछ महिलाओं को साइकिलिंग एडवेंचर में गाइड किया।

हिमाचल प्रदेश स्थित स्पीति घाटी में साइकिलिंग एक्सपीडिशन। फोटो साभार- विजय प्रताप सिंह

उन्होंने डुगडुगी से देहरादून से स्पीति घाटी के सफर पर चर्चा की। बताते हैं कि कोविड-19 के कारण लगभग डेढ़ साल से हमने एडवेंचर टूर नहीं किया था। स्पीति घाटी का कोई प्लान पहले से नहीं था। पहले चार राज्यों से कुछ प्रतिभागियों को आना था। पर, वो नहीं आ पाए। हमारा यह टूर पूरी तरह व्यक्तिगत था।

देहरादून से वाया नाहन, शिमला, सराहन, रामपुर, नारकंडा, रिकांगपीओ, स्पीति घाटी के काजा में पहुंचे। हमने काजा उपमंडल में दुनिया के सबसे ऊंचे गांव कौमिक, सबसे ऊँचे पोस्ट आफिस हिक्किम को देखा।

हिमाचल प्रदेश स्थित स्पीति घाटी में चिचम पुल के पास साइक्लिस्ट विजय प्रताप सिंह एवं उनके साथ हिमेश। फोटो

बताते हैं कि हम एशिया का सबसे ऊंचाई पर बने चिचम ब्रिज से होकर आगे बढ़े। (मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, यह पुल 14 हजार फुट की ऊंचाई पर सांबा-लांबा नाले पर बना है। काजा और चिचम के बीच की दूरी 60 किलोमीटर थी। पुल बनने से गांव और काजा उपमंडल के बीच की दूरी 25 किमी कम हो गई है।)

साइक्लिस्ट (Cyclist) विजय और उनके साथी ने लगभग 800 किमी. से ज्यादा साइकिल चलाई। इस दौरान काफी दूरी स्पीति घाटी के गांवों तक जाने में तय की। साइकिल से एक दिन में कितनी दूरी नापने की क्षमता के सवाल पर उनका कहना है कि यह मार्ग की स्थिति और व्यक्तिगत की क्षमता पर निर्भर करता है।

अगर, ऊँचाई, ढलान वाले रास्ते हों, तो एक दिन में 150 से 180 किमी. तक का भी सफर हो सकता है, पर यही सफर मैदानी राह पर हो, लगभग ढाई सौ किमी. तक हो सकता है।

बताते हैं कि स्पीति वाले रूट पर ऊँचाई, ढलान के साथ कहीं-कहीं ऑफ रोड साइकिल चलानी पड़ी। कई जगह तो सड़क ही नहीं थी, इसलिए हमने रोजाना 80 से 90 किमी. साइकिल चलाई। हमें जहां गांव दिखते, वहां कैंपिंग करते थे।

हिमाचल प्रदेश स्थित स्पीति घाटी में साइकिलिंग। फोटो साभार- विजय प्रताप सिंह

लंबी दूरी पर निकले साइक्लिस्ट को किन बातों का ध्यान रखना चाहिए, पर बताते हैं कि साइक्लिस्ट के पास बॉडी को रीचार्ज करने के साधन यानी पर्याप्त मात्रा में पानी और खाद्य सामग्री होनी चाहिए। उनको पता होना चाहिए कि रास्ते में किन स्थानों पर पानी की उपलब्धता है। किन स्थानों पर रात्रि विश्राम करने की सुविधा होगी या कैंपिंग कर सकते हैं।

हिमाचल प्रदेश स्थित स्पीति घाटी में साइकिलिंग के दौरान कैंपिंग । फोटो साभार- विजय प्रताप सिंह

कैंपिंग हमेशा गांव, शहर यानी आबादी के पास ही करनी चाहिए। धूप से बचने का चश्मा, दुर्घटना में बचाव के लिए हेल्मेट का होना अत्यंत जरूरी है। आप रात्रि में साइकिलिंग कर रहे हैं तो ध्यान रहे, आपके कपड़े रिफलेक्टिंग करने वाले हों, ताकि वाहन चालक को आप अंधेरे में भी दिखाई दे सकें। सड़क के बीच में नहीं, बल्कि सुरक्षित तरीके से साइड पर चलिए।

कैंपिंग के सवाल पर उनका कहना है कि लंबी दूरी के समय आपके पास पर्याप्त संसाधन होने चाहिए। हम एडवेंचर फील्ड से हैं, इसलिए जानते हैं कि संसाधनों की व्यवस्था करना तथा इनका सही इस्तेमाल कैसे किया जाता है। हम रास्ते में कैंपिंग के लिए टैंट और बहुत जरूरी सामान ही लेकर चलते हैं। उतना ही सामान रखिए, जितना लेकर आप साइकिल चला सकें।

साइकिलिंग टूर में शेड्यूल में मौसम का दखल

उनका कहना है कि साइकिलिंग टूर के शेड्यूल में मौसम का ज्यादा ध्यान रखना पड़ता है। स्पीति घाटी में जिन इलाकों में हम साइकिलिंग कर रहे थे, वहां ज्यादा बारिश नहीं पड़ती। वहां धूप तेज रहती है और मौसम शुष्क रहता है।

यहां ऑक्सीजन एवं पानी की कमी की समस्या का सामना करना पड़ता है। इस स्थिति में हम सुबह ठंडे मौसम में साढ़े चार बजे से दोपहर करीब 12 बजे तक रास्ता तय करते थे। करीब एक बजे तक लंच ब्रेक लेकर करीब दो घंटे विश्राम करते थे। इसके बाद करीब दो या तीन बजे से रात्रि करीब आठ बजे तक साइकिलिंग करते थे।

साइक्लिस्ट ग्रुप पहाड़ी पैडलर्स के संस्थापक गजेंद्र रमोला।

…जब 50 किमी. साइकिल चलाने के बाद मिली एक कप चाय

किसी गांव के नजदीक पहुंचने पर वहां कैंपिंग करते थे। इस सफर के दौरान किन्नौर जिला से स्पीति घाटी में प्रवेश के दौरान शाम के करीब छह बजे थे। एक जगह रुककर हम चाय पी रहे थे। हम बिल्कुल सुनसान इलाके में थे। वहां 50 किमी. की दूरी तक कोई गांव नहीं था।

हम अकेले थे, वहां पानी का कोई स्रोत भी नहीं दिखाई दिया। हमारे पास पानी की केवल दो बोतल बची थीं। खाने के नाम पर थोड़ा मिल्क पाउडर था।

पर, राहत की बात थी कि वहां कुछ दूरी पर बीआरओ के वर्कर्स के टीन शेड बने थे, उस समय वहां कोई नहीं थी। मैंने और साथी हेमेश कुमार के पास, यहां रुकने के अलावा कोई और विकल्प नहीं था। हमने टीन शेड में सोने के लिए सफाई की।

हमने मिल्क पाउडर में पानी घोलकर पीया। किसी तरह वहीं रात काटी और सुबह करीब 50 किमी. साइकिल चलाई, तब एक गांव के पास पहुंचकर हमारी सुबह की चाय का इंतजाम हो पाया। हमारे लिए वाकई, वो समय बड़ा चैलेंजिंग था, हमें उस दिन चाय की कीमत पता चली। हम तो एक कप चाय के लिए तड़प रहे थे।

ऊंचाई वाले  ऊबड़ खाबड़ सिंगल लेन पर मदद को बढ़े हाथ

बीच रास्ते से वापस लौटने की बात कभी दिमाग में नहीं आई, क्योंकि हमने यह सफर आगे बढ़ने के लिए ही शुरू किया था। एक बार हम ऊँचाई वाले उबड़ खाबड़ रास्ते पर थे। हमारी साइकिल पर सामान भी लदा था। हमने देखा कि हमारे रूट पर कई गाड़ियां खाली जा रही हैं।

सामने से या पीछे से आता कोई वाहन हमारे पास से होकर गुजरता तो हमारा संतुलन बिगड़ जाता। हमें बार-बार साइकिल रोकनी पड़ती। इससे हमारा रिद्म टूट रहा था। चढ़ाई पर फिर से साइकिल को आगे बढ़ाने में दिक्कत तो होती ही है।

कुछ लोगों ने हमसे कहा कि हम आपको आगे छोड़ देते हैं। पर, हमें तो साइकिल पर अपनी यात्रा करनी थी। जब इतना लंबा रूट साइकिल पर ही तय कर लिया तो कुछ दूरी चलने के लिए अपने ही बनाए नियम को कैसे तोड़ दें। हमने बड़ी विनम्रता से उनको धन्यवाद कहकर,मना कर दिया।

साइक्लिस्ट विजय प्रताप सिंह (पीछे) और डुगडुगी संवाददाता।

अगर साइकिलिंग को करिअर ऑप्शन न भी बनाएं तो भी एक व्यक्ति के लिए साइकिल कितना महत्व रखती हैं, पर साइक्लिस्ट विजय प्रताप का कहना है कि साइकिल सभी के लिए महत्वपूर्ण है। देश के बड़े बिजनेसमैन रतन टाटा जी, मुकेश अंबानी जी भी अपने पार्क में साइकिल चलाते होंगे। साइकिल स्वयं को शारीरिक रूप से फिट रखने का अच्छा साधन है। रनिंग की तरह इसमें सोचने की जरूरत नहीं है कि मुझे इतने किलोमीटर दौड़कर जाना है।

यदि आपके पास साइकिल है, मेरा घर क्लेमनटाउन में है तो मुझे मसूरी या रायपुर जाने के लिए सोचने की जरूरत नहीं पड़ती। मेरा मन जहां करता है, मैं साइकिल से जाता हूं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि आप पर्यावरण प्रेमी हैं, पेड़ पौधों की रक्षा करना चाहते हैं तो सबसे पहले साइकिल अडॉप्ट कीजिए

आप शहरभर की दूरी तो साइकिल से तय कर सकते हैं, इससे शहर को जाम से ही निजात दिलाएंगे। अगर शहर की 50 फीसदी आबादी साइकिल को अपना ले, तो शहर में जाम नहीं लगेगा

बताते हैं, जब मैं बैंक में जॉब करता था तो सड़कों पर ड्राइव या बाइक राइ़ड करते हुए जाम में फंसकर, आगे पीछे दौड़ती गाड़ियों की स्पीड से, उनसे बचकर गाड़ी चलाते हुए बहुत परेशान हो जाता था। अब मेरे साथ ऐसा नहीं है, मैं अब साइकिल से हजार किमी. की यात्रा के बाद भी स्वयं को फिट महसूस करता हूं

विजय प्रताप सिंह ने देहरादून से इंडिया गेट और वहां से वापसी की लगभग 500 किमी. की साइकिल यात्रा 26 घंटे में पूरी की थी। उस समय उनकी आयु मात्र 26 साल थी।

उनका कहना है कि अगर मुझे सहयोग मिलता है तो भविष्य की योजना कश्मीर से कन्याकुमारी तक और स्वर्णिम चतुर्भुज (Golden Quadrilateral), जो चारों मेट्रो सिटी दिल्ली, चैन्नई, कोलकाता, मुंबई को जोड़ता है, की साइकिल यात्रा करके वापस उत्तराखंड लौटना है। इसका उद्देश्य लोगों को पर्यावरण संरक्षण तथा अच्छे उद्देश्यों के लिए जागरूक करना रहेगा।

*स्पीति घाटी में साइकिलिंग एवं साइक्लिस्ट विजय प्रताप सिंह से विस्तृत वार्ता का वीडियो जल्द जारी करेंगे।

Keywords:- Cycling across India, Career in cycling , Cycling against traffic, cycling about cyclist, Documentary about cyclist, Cyclist around the world, Cyclist as a hobby, Adventure with cycle, Adventure cycle touring handbook , Cycle for adventure, What is cycle adventure

 

 

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button