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छोटे बच्चों को मौसम के हिसाब से पहनायें कपड़े

मौसम हमेशा बदलता रहता है और सभी के कुछ फायदे वहीं कुछ नुकसान होते हैं। ऐसे में अगर बच्चों का खानपान और उनके कपड़े मौसम के अनुसार रहेंगे तो वे खुश रहेंगे और आपको भी परेशानी नहीं होगी।
छोटे बच्चों की हर बात का बहुत ज्यादा ध्यान रखना पड़ता है। उनकी दवाइयों से लेकर उनके खाने की चीजें सब डॉक्टर की सलाह पर ही दी जाती हैं। ऐसे ही विशेषज्ञों का मानना है कि उन्हें मौसम के अनुसार और आरामदायक कपड़े ही पहनाने चाहिए। गर्मी के मौसम में बच्चों को ठंडक देने वाले सूती कपड़े पहनाएं और सिंथेटिक कपड़ों को पहनाने से बचें। सिंथेटिक कपड़े बना सकते हैं बीमार
सिंथेटिक कपड़ों से बच्चों को घमौरियों के साथ ही दाने भी हो सकते हैं। इसमें उन्हें गर्मी भी ज्यादा लगेगी।
धूप में बाहर निकलते समय छोटे बच्चों को लंबी स्लीव्स के हल्के कपड़े पहनाएं और सिर को ढकने के लिए कैप लगाएं या फिर टॉवल से ढक कर रखें। कपड़े की नैपी शिशु के लिए ज्यादा आरामदायक हो ती हैं। ये गर्मी और डिस्पोजेबल नैपी से होने वाली रैशेज से भी बचाती हैं। अगर आपको डायपर पहनाना ही पड़े तो फिर बच्चों को ठंडे वातावरण में रखें और तापमान के अनुसार उचित कपड़े पहनाएं। सर्दियों में शिशु के कपड़े गरम, नरम और आरामदेह होने चाहिए साथ ही बच्चे के हाथ-पैर गरम रखने के लिए उसे दस्ताने और मोजे पहनाने चाहिए।
बच्चे को कपड़े हमेशा तापमान के हिसाब से ही पहनाने चाहिए।बच्चे को सीधा ऊनी कपड़ा पहनाने के बजाय पहले एक सूती कपड़ा पहनाना चाहिए। बच्चों के कपड़ों की क्वालिटी का ध्यान रखें और बच्चों के कपड़े धोने के लिए माइल्ड सोप कर इस्तेमाल करें।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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