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सिर का आकार दर्शाता है इंटेलीजेंस ?

शोध के अनुसार, जिन लोगों के सिर का आकार बड़ा होता है, वो अन्य लोगों की तुलना में अधिक बुद्धिमान होते हैं। बड़े सिर के साथ बड़े आकार के मस्तिष्क वाले लोगों की भविष्य में सफलता की अधिक संभावना होती है। वहीं इन लोगों के उच्च शिक्षा हासिल करने की संभावना होती है। 

यह इसलिए भी संभावित है, अन्य बच्चों की तुलना में बड़े आकार के सिर वाले बच्चे मौखिक और अंकों वाले तार्किक सवालों (रीजनिंग) में ज्यादा अंक हासिल करते हैं।  

यह निष्कर्ष यूके बायो बैंक के अध्ययन में सामने आया है। बड़े सिर वाले बच्चों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की निगरानी की जा रही है। उनके जींस को विश्लेषित किया जा रहा है। इस अध्ययन के निष्कर्ष स्वास्थ्य और बुद्धि के बीच संबंधों को रेखांकित करते हैं। आनुवंशिक अध्ययन में यह भी सामने आया है कि जो लोग लंबे और बड़े दिमाग वाले होते हैं, उनके स्वस्थ होने की अधिक संभावना होती हैं। यह रिसर्च लगातार दस साल से चल रही है। बौद्धिक रूप से मजबूत लोगों में अल्जाइमर,डायबिटीज और अन्य बीमारियों का जोखिम भी कम होता है। 

psyblog में प्रकाशित इस रिपोर्ट में अध्ययन के लेखक डॉ. सास्का हैगेनॉर्स के हवाले से कहा गया है कि यह अध्ययन मौजूदा सिद्धांत का समर्थन करता है, जिसके अनुसार बेहतर स्वास्थ्य वाले लोगों के पास उच्च स्तर का इंटेलीजेंस होने की संभावना है।” स्टडी के सह लेखक डॉ. स्टुअर्ट रिची कहते हैं कि यह अध्ययन इस बात का परीक्षण करता है कि क्या मानसिक क्षमताओं और एजुकेशन से लिंक रखने वाले जींस का संबंध कुछ विकारों से भी हो सकता है। यहां कई ओवरलैप पाए- उदाहरण देते हुए कहते हैं कि लंबे होने के लिए जिम्मेदार जीन का संबंध कॉलेज या विश्वविद्यालय की डिग्री प्राप्त करने से भी है। एक और उदाहरण देते हैं- हृदय रोग से संबंधी जीन वाले लोग कम तर्क करने की क्षमता रखते हैं। ”

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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