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बच्चे को ढूंढ रही डॉगी ने रात को खटखटाया गेट

एक किस्सा आपसे साझा करता हूं, जो ममता का है, सुरक्षा का है, विश्वास का है और उस बंधन का है, जो दिखता नहीं है पर महसूस बहुत होता है। मेरा बेटा सक्षम मंगलवार की शाम किसी मोहल्ले से डॉगी का करीब दस दिन का बच्चा ले आया। सफेद और भूरे रंग का यह बच्चा बहुत सुन्दर था। मैंने उसे मना भी किया कि इसको वहीं छोड़कर आओ, जहां से लाए हो। इसकी मां परेशान हो जाएगी। उसने जवाब दिया कि यह मां के साथ गलियों में भटकेगा। कभी खाना मिलेगा और कभी नहीं। इससे बढ़िया है कि हम इन बच्चों को पाल लें। मैं इसकी सेवा करूंगा।

मैं जीवों के प्रति उसकी संवेदना को जानता हूं और मुझे इस बात का भरोसा है कि वो इस बच्चे की सही से देखभाल कर लेगा। क्योंकि मैंने सक्षम को गलियों में घूमते डॉगी को रोटी खिलाते, पानी पिलाते, उनके घावों पर दवा छिड़कते हुए कई बार देखा है। उसने मरने वाले डॉगियों को अपने दोस्तों की मदद से मोहल्ले से दूर कहीं खेत में ले जाकर दबाया है। डॉगी ही नहीं, उसने मृत मिले पक्षियों का भी अंतिम संस्कार किया है।

सक्षम ने अपनी मां की मदद से उसके लिए गत्ते का डिब्बा तलाशा और उसमें गद्दी और कपड़ा रखकर उसको पूरी तरह सुरक्षित करने का इंतजाम किया। उसको खिलाने पिलाने के लिए बर्तन भी रख लिए। रात को सोने से पहले उसको उसी डिब्बे में अच्छी तरह नरम गद्दे पर बैठाकर कपड़ा ओढ़ाया गया। हम सभी सो गए, पर डॉगी का वो बच्चा रोने लगा।

मुझे सक्षम पर बहुत गुस्सा आया। मैंने उसे कहा, मैंने तुम्हें पहले ही कहा था कि वो अपनी मां के बिना नहीं रह सकता। अब रो रहा है, शोर मचा रहा है, किसी को सोने नहीं दे रहा, अब वहीं बैठकर उसे चुप कराओ। उसको एक बार फिर कपड़ा उसे ओढ़ाकर चुप करा दिया, लेकिन करीब आधा घंटा बाद से, वो लगातार रोता रहा।

कई बार तो मैंने महसूस किया कि वो ठीक किसी इंसानी बच्चे की तरह अपनी मां को बुला रहा है। बड़ा दुख हो रहा था, पर सवाल था कि रात को उसकी मां को कहां ढूंढा जाए। नींद तो कब की उड़ चुकी थी और सक्षम तो दिनभर दौड़ता रहता है, इसलिए उसकी नींद पर इस बात का कोई असर नहीं पड़ता कि कोई शोर मचा रहा है या फिर रो रहा है।

तभी रात करीब तीन बजे मुझे आभास हुआ कि किसी ने घर के गेट को खटखटाया है। मैंने सोचा, ऐसे ही हवा की वजह से हुआ होगा। करीब दस मिनट बाद फिर ऐसा आभास हुआ। नींद तो पहले से ही नहीं आ रही थी। मां को जगाया कि गेट पर चलकर देखा जाए कि कौन है। मैंने बरामदे की ग्रिल से झांककर देखा तो आश्चर्य हुआ कि एक डॉगी गेट के नीचे से भीतर की ओर देख रहा है। लगा कि उसकी चमचमाती आंखें, हमसे कोई उम्मीद पाले हैं।

हमें समझते देर नहीं लगी कि यह कोई और नहीं बल्कि इस बच्चे की मां है। मैंने सक्षम को जगाया और बताया कि इस बच्चे को तलाशते हुए उसकी मां आ गई है। उसको यह बच्चा वापस करना होगा, नहीं तो पाप लगेगा। वैसे भी किसी मां से उसके बच्चे को अलग करके अच्छा नहीं किया। वो बच्चे को अपने साथ रखना चाहती है, क्योंकि वो जानती है कि बच्चे को उसकी और उसे बच्चे की जरूरत है।

आपको एक बात और बता दूं कि बच्चे को लेने के लिए गेट खटखटाने वाली डॉगी ने इस बात को बहुत अच्छे से महसूस किया होगा कि रात को इंसानों को जगाना अच्छी बात नहीं है। इसलिए उसने गेट को एक बार ही खटखटाया और फिर करीब दस मिनट बाद ऐसा किया। वह न तो गेट के सामने भौंकी और न ही गेट को बार बार खटखटाया। इससे एक बात तो समझ में आती है कि हमारे आसपास रहने वाले जीव, समझ रखते हैं और वो काफी हद तक यही कोशिश करते होंगे कि इंसानों को तब तक परेशान न किया, जब तक कि हद पार न हो जाए।

खैर, हमने गेट खोलकर देखा तो उस बच्चे की मां के साथ दो और डॉगी हमारे गेट के सामने खड़े थे। जैसे ही हमने गेट खोला, वो सब अपनी ही जगहों पर खड़े होकर पूंछ हिलाते रहे। मैंने सुना है कि डॉगी जब भी पूंछ हिलाता है, तो समझो वो खुश हो रहा है। एक बात बड़ा हैरान करने वाली है कि अपने बच्चे को ढूंढने के लिए इस डॉगी ने इन दो और साथियों को कैसे राजी किया होगा। वो उसके साथ, ठीक उसी तरह थे, जैसे कि कोई इंसान मदद के लिए अपने साथियों को लेकर कहीं जाता है।

शायद, उसने अपने अंदाज में उनको बताया होगा कि मेरा बच्चा नहीं मिल रहा, उसको ढूंढने में मदद करो। वो भी किसी अच्छे दोस्त की तरह उसकी मदद में जुट गए। हो सकता है कि हमारे घर आने से पहले उन्होंने आसपास की, बहुत सारी गलियों का चक्कर लगाया हो। मेरे लिए यह बताना मुश्किल है कि उन्होंने उस बच्चे को कहां-कहां ढूंढा होगा।

हमने एक बार फिर गेट बंद करके उस बच्चे को गेट के किनारे से निकालने की कोशिश की। ऐसा इसलिए किया, क्योंकि हम यह सोच रहे थे कि कहीं अपने बच्चे को देखते हुए डॉगी हमलावर न हों, लेकिन हमारा ऐसा सोचना गलत था। उसको जैसे ही गेट के किनारे बने रास्ते से निकाला, उसकी मां ने उसको बाहर की ओर खींच लिया। अब जो नजारा पेश आया, वो आंखें नम करने वाला था। हमने एक जीव में अपने बच्चे के प्रति ममता और नाराजगी को खूब देर तक देखा।

जैसे ही वो बच्चे अपनी मां के पास पहुंचा, खुशी से उछलने लगा, जबकि घर में वो एक कदम चलने को राजी नहीं हुआ। डॉगी ने उसको दूध पिलाया और फिर जीभ से चाटकर उसको स्नेह किया। । एक बार उसने गुर्राते हुए उसको जबड़े में लेने की कोशिश की और फिर उसे छोड़ दिया। हमें डर लगा कि वो इसे काट न ले। लेकिन फिर उसको चाटकर स्नेह करना शुरू कर दिया।

इससे लगा कि शायद वो उसको डांट रही है कि अकेले रहोगे तो इंसान उठाकर ले जाएंगे। हम गली में रहते हैं और हमें यही रहना चाहिए। तुम तो बच्चे हो, मां के साथ रहो। इंसानों का कोई भरोसा नहीं है। क्या तुम जानते हो, तुम्हारे बिना मैं कितनी परेशान हो गई थी। वो तो अच्छा हुआ कि तुम मिल गए।

वहीं साथ आए, दो अन्य डॉगियों ने उस बच्चे को अपने पीछे थोड़ा दूर तक दौड़ाया। वो कभी उसको पंजों से सहला रहे थे और कभी गुर्रा कर उसको डांट रहे थे। ऐसा हमें महसूस हो रहा था। कुछ देर वो उन दो डॉगी के साथ खेला और फिर वो तीनों बच्चे को लेकर उसी गली की ओर दौड़ लगाने लगे, जहां से उस बच्चे को लाया गया था। वो तीनों आगे-आगे और बच्चा उनके पीछे दौड़ रहा था।

पहले, नरम बिस्तर में सुरक्षित होने के बाद भी वो रो रहा था। अब, रात को खुले आसमान में सड़क पर होने के बाद भी उसको कोई तकलीफ नहीं हो रही थी। वो अपनी मां के पीछे पीछे ठीक किसी हिरण की तरह मजे से कूदते हुए दौड़ रहा था।

जब वो उन डॉगी से काफी पीछे रह गया तो मैंने आवाज लगाई, अरे यह तो पीछे छूट गया। वो तीनों डॉगी मुड़कर मेरी तरह आते दिखे। मैंने उनसे कहा, वहीं रहो और जाओ। वो पूंछ हिलाते हुए उस बच्चे को साथ लेकर दौड़ लिए, अपने ठिकाने की ओर। इस बार वो बच्चा उनके बीच में दौड़ता नजर आया। इस तरह एक बच्चे को उसकी मां ने ढूंढ निकाला। यहां हमने महसूस किया कि स्ट्रीट एनीमल्स की अलग ही तरह की दुनिया है। वो वहीं खुश हैं, जहां रहते हैं। उनको अपने साथी पसंद हैं और अपने बच्चों से उतना ही लगाव है, जितना कि एक इंसान को होता है।

बच्चा चाहे इंसान का हो या फिर किसी जीव का, अपनी से मां से सीखता है। वो हर पल मां के आसपास मंडराता है। मां उसकी आंखों से थोड़ा भी दूर हुई नहीं, वो स्वयं को असुरक्षित महसूस करता है। हर बच्चे के लिए अपनी मां का साया सुरक्षा है, ऐसा मैं बचपन से सुनता और समझता आया हूं। मैं आज भी अपनी मां से थोड़ा दूर नहीं होना चाहता, क्योंकि मेरी लिए मां के पास जाने, उनसे बातें करने का मतलब है, परेशानियों और चिंताओं को भुला देना। वहीं मां की ममता का आकलन शब्दों में नहीं किया जा सकता। इस किस्से को लिखने के लिए थोड़ा बहुत सकारात्मक स्वतंत्रता ली गई है।

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Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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