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क्या नदियों में जमी काई ने मार डाले थे विशालकाय डायनासोर और पक्षी

70 मिलियन ईयर पहले धरती पर लंबी गर्दन वाले सायरोपोड, भयंकर थेरोपोड्स, मगरमच्छ, छिपकलियां और विशाल पक्षियों का राज था। ये सभी तेजी से सूखने वाली नदियों में पानी पीने आते थे। क्या इनको पानी पर खिलने वाले छोटे से शैवालों ने खत्म कर दिया। नदी वाले क्षेत्र में इन विशालकाय प्राणियों की सामूहिक कब्रों की श्रृंख्ला से यह संकेत मिले हैं।

उत्तर पश्चिमी मेडागास्कर में मिले जीवाश्मों की सीरीज के आधार शोधकर्ताओं ने इस तरह का अंदेशा व्यक्त किया है कि हानिकारक शैवाल से आकर्षित होकर ये विशाल जीव मौत का शिकार हुए थे। साइंस मैगजीन में प्रकाशित एक रिपोर्ट में वाशिंगटन डीसी के स्मिथसोनियन इंस्टीट्यूशन में जीवाश्म विज्ञानी निकोलस पेनसन के हवाले से कहा गया है कि इन सभी जीवाश्म में शैवाल की मौजूदगी के संकेत समान रूप से मिलने चाहिए।

हालांकि पेनसन इस स्टडी का हिस्सा नहीं थे, लेकिन उन्होंने चेताया कि इन जीवाश्म में शैवाल की मौजूदगी को साबित करना काफी कठिन है। इस तरह के बोन बेड्स शोधकर्ताओं के लिए रहस्य बन जाते हैं। इतने सारे विशालकाय जीव एक साथ कैसे मरे होंगे। बाढ़ और ज्वालामुखी भी साल में कभी-कभी आते हैं।

शोधकर्ताओं ने यह भी संदेह व्यक्त किया कि इन जीवों की मौत सूखे से हुई होगी और इसके बाद मूसलाधार बारिश से उफान पर आईं नदियों की गाद में ये दफन होते चले गए। सेंट पॉल के मैकालेस्टर कॉलेज में भू वैज्ञानिक रेमंड रोजर्स का कहना है कि क्या मैंने कभी ऐसे जीवाश्म पैकेज से बनी चट्टान देखी है।

रोजर्स इस साइट पर लगभग दो दशक से काम कर रहे हैं। रोजर्स और उनके सहयोगियों ने टेनिस के तीसरे हिस्से के आकार वाले सिंगल बेड से लगभग 1200 नमूनों की सूची तैयार की है। समय के साथ शोधकर्ताओं की टीम ने इन विशालकाय प्राणियों की मौत की वजह सूखे को मान लिया।

रोजर्स कहते हैं कि इनकी मौत की वजह कुछ भी हो, लेकिन यह सब बहुत तेजी से हुआ होगा। उड़ते पक्षी अपने ट्रैक पर एक के बाद एक गिरे होंगे, जिसने बोन बेड्स की कई लेयर बना दीं। ़बड़े और छोटे सभी तरह के जीव वहीं दफन हो गए, जहां वो मारे गए थे। यानि मौत ने इनमें किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं करते हुए सबको एक ही जगह दफना दिया।

रोजर्स ने जीवाश्म विज्ञानियों बैठक में विशालकाय जीवों के जीवाश्मों की स्थिति की जानकारी देते हुए बताया था कि वो धनुष के आकार में बैठे हुए मालूम होते इन जीवों की गर्दन ऐंठी हुई थी। वहीं असामान्य तौर पर कार्बोनेट क्रस्ट, जो ठीक उसी तरह हैं, जो काई के संपर्क में आने वाले किसी भी गाद, मिट्टी या अन्य पदार्थ में मिलते हैं। वहां मृत पक्षियों की बड़ी संख्या मिली है, जिससे पता चलता है कि विशालकाय जीवों को मारने वाली खतरनाक काई है, जो समर में एक ही जगह पर बार-बार पैदा होती है।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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