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देहरादून ने मेरठ को पीछे छोड़ा, आप भी जानिये किस शहर में कितना वायु प्रदूषण

देहरादून शहर कभी अपनी खास आबोहवा के लिए मशहूर था। लगातार बढ़ते जनसंख्या और यातायात दबाव ने शहर में वायु प्रदूषण को इस स्थिति तक पहुंचा दिया है कि इसने मेरठ को भी पीछे छोड़ दिया। देहरादून शहर में वायु प्रदूषण विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के तय मानक से दस गुना ज्यादा हो गया है। वहीं ऋषिकेश शहर के हालात भी लगातार बिगड़ रहे हैं, वहां यह स्थिति 5.8 गुना है। #Breathelife कैंपेन के जरिये लोगों को वायु प्रदूषण के खिलाफ कुछ करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। 

 

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दुनियाभर के 3000 शहरों से लिए एयर क्वालिटी और हेल्थ के डाटा के आधार पर यह तथ्य उजागर किया है। संगठन की एक विज्ञप्ति में कहा गया है कि ये 3000 शहर दुनिया की करीब 40 फीसदी शहरी आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं। दुनिया के हर देश और हर कोने के एयर पॉल्युशन का डाटाबेस तैयार किया गया है। 

इस स्टडी में वायु में फैले प्रदूषण के उन सूक्ष्म कणों की स्थिति को सामने लाया गया है, जो शरीर को नुकसान पहुंचाते हैं और जिनका प्री मेच्योर डेथ और क्लाइमेट चेंज से सीधा संबंध है। दो साल से एकत्र किए जा रहे डाटाबेस में लगभग सभी देशों को शामिल किया गया है। इसके जरिये एयर पॉल्युशन के स्तर और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के बीच सहसंबंध को जाना गया है। इस डाटाबेस को तैयार करने में यूके की यूनिवर्सिटी ऑफ बाथ की मदद ली गई है। 

रिपोर्ट के अनुसार देहरादून में पार्टिकुलैट मैटर 2.5 का लेवल 100 माइक्रो ग्राम प्रति घन मीटर (100 µg/m3) है। जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन की गाइड लाइन के अनुसार इसका स्तर 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक सुरक्षित माना जा सकता है। ऋषिकेश में यह स्थिति 59 माइक्रो ग्राम प्रति घन मीटर है, जबकि मेरठ में 69 माइक्रो ग्राम प्रति घन मीटर है। यहां क्लिक करके जानें-  किस शहर में कितना वायु प्रदूषण

#Breathelife कैंपेन के जरिये लोगों को उनके शहर में वायु प्रदूषण की स्थिति बताई जा रही है। स्वच्छ वायु से ही बेहतर स्वास्थ्य के लिए जागरूक किया जा रहा है। क्या आप भी अपने शहर में वायु प्रदूषण को कम करने, बेहतर स्वास्थ्य और अपने पर्यावरण बचाने के लिए ग्लोबल कैंपेन #Breathelife से जुड़ेंगे। यदि हां तो क्लिक कीजिए- #Breathelife पर। 

 

 

 

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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